भारत में सामान्यतः सभी चेक और बैंक ड्राफ्ट की वैधता समय सीमा ६ महीने रही है| इसका तात्पर्य यह था कि कोई भी व्यक्ति विशेष किसी भी चेक और बैंक ड्राफ्ट का भुगतान उस पर डाली गयी दिनांक के छः माह के भीतर ही ले सकता था| इस अवधि के बाद, उसका भुगतान बैंक नहीं करता और हमें चेक लिखने वाले व्यक्ति से नया चेक लिखने का अनुरोध करना पड़ता है| इसी प्रकार प्रकार बैंक ड्राफ्ट को पुनः बनबाना या वैध करना पड़ता है|
इस सुविधा के कुछ लाभ थे:
१. आप ६ महीने में एक बार बैंक जाकर पिछले ६ महीने में प्राप्त सभी चेक का भुगतान प्राप्त कर सकते थे|
२. आप किसी व्यकि को एक चेक जमानत के तौर पर दे कर छः माह के लिए उधार ले सकते थे|
अब भारतीय रिज़र्व बैंक का कहना है कि उसकी सुचना के मुताबिक कुछ लोग इन चेक आदि को मुद्रा के रूप में प्रयोग कर रहे थे|
पहले चेक आदि की वैधता की अवधि शायद इसलिए अधिक रखी गई होगी क्योंकि अंतरराज्यीय व्यापार में इन मौद्रिक कागजातों को डाक द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता था और यह एक बेहद समय खर्च सेवा थी| मुझे लगता है कि पन्द्रह बीस वर्ष पहले तक, गोवाहाटी से गोवा तक डाक पहुँचने में पन्द्रह दिन का समय लगना तो सामान्य बात थी| इस कारण, चेक और बेंक ड्राफ्ट की वह वैधता समय सीमा उचित थी| उसके बाद धारक अपने बैंक में चेक जमा करता था और पुनः यह चेक अपने मूल स्थान थक की यात्रा करता था| जब चेक काटने वाले व्यक्ति का बैंक, उस व्यक्ति का खाता देखकर अनुमति देता था, तभी चेक धारक के खाता में धन राशि का हस्तांतरण होता था| इस कार्यवाही में उन दिनों दो तीन महीने लगने साधारण बात थी|
आज के समय में चेक का लेनदेन कोरियर सेवा या डाकघर की स्पीड पोस्ट सेवा के मार्फ़त होता है| सभी चेकों पर MICR (चुम्बकीय स्याही अंकन पहचान) अंकन होता है| जिसके कारण चेक को मशीन द्वारा ही निबटा लिया जाता है| साथ ही चेक छंटनी व्यवस्था [Cheque Truncation System (CTS) ] के आने से चेक के रूपचित्र के माद्यम से बैंक आपस में संवाद करने के उपरान्त चेक सम्बन्धी निपटान कर सकेंगे| इन सभी कारणों से चेक की वैधता समय सीमा घटा देना एक उचित निर्णय जान पड़ता है|