मेरा चिट्ठा गहराना मेरी आत्म – अभिवयक्ति है, जिसमें मेरी सोच – प्रक्रिया और विचार – विमर्श के झलक मिलती है| मेरे हर्ष, शोक, आक्रोश, क्षोभ और अंतरदृष्टि का दर्पण बन कर यह चिट्ठा उभर रहा है| मेरे हृदय की बाल सुलभ कोमलता एवं चपलता इसका केंद्र – बिंदु है| साथ ही सामाजिक सरोकार, राजनैतिक अस्थिरता, सामयिक विषमतायें मेरे मस्तिष्क में उथल – पुथल मचा देने के बाद इस चिट्ठे में उभर आती है|
मेरे विचार बहते पानी की तरह परिवर्तनशील मगर अस्थायी नहीं हैं और निरंतर शुद्ध व् परिष्कृत होते रहते हैं| जब कभी भी किसी कारण से मेरे हृदय में स्पंदन उत्पन्न होता है तो मेरी अभिव्यक्ति काव्यात्मक हो सकती है|
जब कभी भी रोजगार से जुड़े कार्यों की अधिकता होती है तो मेरे लेखन में उसका प्रभाव स्पष्ट झलकता है| उस समय विधि सम्बन्धी आलेखों की प्रबलता होती है| यद्यपि निवेशक जागरूकता सम्बन्धी लेखन मुझे पसंद है|
हर बात को गहराई से समझने और लिखने के मेरे प्रयास के कारण ही मैंने इस चिट्ठे के बारे में उप – शीर्षक दिया है;
गहराई में डूब कर तैरने के लिए तैयार..