वर्ष 2021 के सबसे महत्वपूर्ण कथेतर साहित्य में बिना शक “एक देश बारह दुनिया” का नाम लिया जा सकता है| मेरे लिए 2021 यह किताब करोना के बाद समय बर्बाद और मन खराब करने का सबसे बड़ा कारण रही| यही कारण है कि इस किताब को दो बार पढ़ जाने और लेखक के पुनः पुनः आग्रह के बाद भी मैंने इसपर नहीं लिखा| फिर भी दिमाग कहता रहा- आधा घंटा और सही|
यह किताब हमारी मोतियाबिंदी निगाह को वह चश्मा प्रदान करती है जिस से हम बहुत कुछ साफ देख सकते हैं| परंतु फिर भी नहीं देखेंगे| भारत में कृषि उत्पादन की सबसे महत्वपूर्ण भूमि – आधा हरियाणा और आधा पश्चिमी उत्तर प्रदेश विकास के नाम पर उगी आधी चौथाई बनी इमारतों और सड़कों की भेंट चढ़ गया| हो सकता है कुछ सालों में हम पुनः खाद्यान्न का आयात करेंगे| आखिर क्यों? जब हम राजधानी के इनते पास हो रहे कुविकास-प्रदूषण-कुव्यवस्था को नहीं देख रहे हैं तो शिरीष खरे तो दूर दराज में ही घूम रहे हैं|
वित्त, व्यवसाय, वाणिज्य, समाज शास्त्र, राजनीति शास्त्र, और सभी अंड-बंड-संड में एक अँग्रेजी शब्द पढ़ाया जाता है जिसे “स`स`टे`ने`ब`ल ड`व`ल`प`में`ट” कहते हैं| इस शब्द का धरातलीय अर्थ भारत के एक लाख सबसे महत्वपूर्ण लोगों (आयकर दाता, व्यवसायी, नेता, अधिकारी और मैं) में से कोई भी दिखा दे तो इस किताब की आवश्यकता को नकारा जा सकता था| फिर भी यह किताब देश के उन 84% लोगों को पढ़ लेनी चाहिए जिनकी आय सरकारी आंकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2021-22 में करोना के नाम पर घटी हैं| जिन्हें लगता है कि उनकी आय करोना के कारण घटी है तो वह भाग्यशाली 16% प्रतिशत के बारे में अवश्य सोचें| पर यह किताब आय से भी संबंध नहीं रखती|
किताब संबंध रखती है उन समझदारियों से जिसे आजकल विकास कहा जाता है| मैं मानता हूँ, विकास के छोटे से छोटे क्रम अग्नि, पहिये और कागज के प्रयोग से भी कुछ न कुछ तबाही आई है| पर विकास का यह क्रम वर्तमान समय में बहुत खतरनाक हुआ है| विकास अब परीक्षित के नागदाह युद्ध से कहीं अधिक हिंसक हुआ है| प्रकृति आज पलटबार के लिए सर्वाधिक विवश है|
पश्चिमी देशों ने अपने खतरे को शांति से पूर्व की तरफ धकेल दिया है| धनबल और ज्ञानबल उनके साथ है| परंतु यह देखना है कि पुरातन विश्वगुरु सदा-सम्यक हम क्या कर रहे हैं| क्या हम संतुलन बैठा पा रहे हैं? हमारे ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामाजिक कारक विकास के साथ मिलकर एक विनाशकरी भूमिका निभा रहे हैं| विकास हमारी आवश्यकता से कहीं अधिक भूख और लोभ हो चुका है| अब हम विकास नहीं कर रहे बल्कि खुद पर विकास थोप रहे हैं|
यह किताब विकास कि हमारी भूख और अपने देश के प्रति ऐतिहासिक, भौगोलिक और सामाजिक बेरुखी का चिट्ठा सामने रखती है| यह बहुत पास मुंबई से लेकर सुदूर छत्तीसगढ़ तक समस्याओं को टटोलती है|
इस तरह की जांच-परख एक समय में सामाजिक सरोकार रखने वाले समाचार पत्रों में छपती रहीं है| तस्वीर का दूसरा रुख देखने की मानवीय संवेदना धन और विकास के हाथों बिक जाने तक हम इन्हें अपने आसपास महसूस करते थे और इनके बारे में देखते पढ़ते भी थे| आज जरूरत है इन रिपोर्ट को पढ़ा जाये| आप इन्हें ठेठ पूंजीवादी नजरिए से पढ़ें या साम्यवादी नजरिए से, कोई फर्क नहीं पड़ता| पढ़ता इसलिए जरूरी है कि आपका अपना वाद भी इन सभी बातों का ध्यान रखने के लिए कहता है| यदि आप इन्हे पूंजीपतिवादी या भाग्यवादी नजरिए से पढ़ते हैं तो कुछ कहना बेकार है|
आप वर्तमान भले न सुधरे या बिगड़े, भविष्य इस बात पर जरूर निर्भर करता है| आप राम और कृष्ण के मंदिर दोबारा बना सकते हैं, बमियान में बुद्ध पुनः खड़े हो सकते हैं, आप ब्रह्मांड कि सबसे बड़ी सरस्वती प्रतिमा लगा सकते हैं| इन सबके लिए जनांदोलन हो सकते हैं| परंतु वैदिक संस्कृति को सरस्वती सभ्यता मानने के एड़ी- चोटी से ज़ोर के बाद भी आप माता सरस्वती को नदी रूप में वापिस नहीं ला सकते| अगर आपको लगता है कि गंगा नर्मदा मात्र पुराणों और मंदिरों में न रह जाएँ तो इस प्रकार कि पुस्तकें आपके लिए सरस्वती का वरदान हो सकती हैं|
यह पुस्तक मात्र नर्मदा के बारे में नहीं है| उन बारह विषयों कि बात करती है जो हमारे आसपास हैं, जिन्हें हम हाशिये पर छोड़ देते हैं| मैं अधिक लिखकर अपना और आपका समय नष्ट करने का इरादा नहीं रखता|
फिर भी यह पुस्तक हम बिल्कुल न पढ़ें| करना धरना तो हमें कुछ है नहीं| हम मात्र करदान और मतदान के हेतु बने हैं जो बचे खुचे समय में भोजन और संभोग करते हैं| अत्र कुशलम तत्र अस्तु||
पुस्तक: एक दुनिया बारह देश – हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर
लेखक: शिरीष खरे
प्रकाशक: राजपाल एंड संस
पृष्ठ संख्या: 199
प्रकाशन वर्ष: 2021
विधा: रेपोर्ताज
मूल्य: 258
आईएसबीएन: 978-93-89373-60-8