एनडीटीवी – नाशुक्रा दिल तुझे वफ़ादार


भारतीय पूंजी बाजार में अगस्त 2022 का चौथा यानि बीतता हुआ सप्ताह इस बात के लिए पढ़ाया जाएगा जब प्यार वफा की बातें करने वालों ने अपनी पहली मुहब्बत एनडीटीवी को “नाशुक्रा दिल तुझे वफ़ादार” कह कर विदा लेते दिखाई दिए| इस बात पर बहस होती रही कि क्या मात्र “रवीश कुमार” के लिए एनडीटीवी कब्ज़ा किया जा रहा है| पर एनडीटीवी को बचाने के लिए कोई दिलदार आगे आता न दिखा|

या तो रवीश कुमार एनडीटीवी छोड़ रहे हैं और उनके दिलदार जानते हैं, आक्रमणकारी के हाथ केवल सती कुंड की राख़ लगेगी, या फिर उनके दिलदार अपने नाशुक्रे दिलों के साथ उन्हें अधर में छोड़ रहे हैं| 

वास्तव में यह कहने के पर्याप्त कारण है कि भारतियों को अभिव्यक्ति की आजादी शब्द से कोई सरोकार नहीं है वरना भारतीय समाचार माध्यम विज्ञापन मुक्त, अनुदान मुक्त, दान मुक्त और स्वामित्व मुक्त जैसे व्यवसायिक तौर तरीकों में सफल हो चुके होते| 

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इस बात पर बहस कोई मायने नहीं रखती कि रवीश कुमार एनडीटीवी की सबसे महत्वपूर्ण या इकलौती संपत्ति हैं| किसी भी बौद्धिक सेवा व्यवसाय में मुख्य मानव संसाधनों का मूल्य व्यवसाय के मूल्य का प्रमुखतम भाग होता है| एनडीटीवी ने अपने प्रमुख मुख्य मानव संसाधनों का कोई मूल्यांकन नहीं कराया होगा परंतु शेयर बाजार इस प्रकार के व्यवहारिक मूल्यांकन “पृष्ठ-मस्तिष्क” में अवश्य ही करता है| (इस प्रकार के मूल्यांकन की कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है|)

अदानी समूह द्वारा जिस प्रक्रिया द्वारा इस अधिग्रहण को अंजाम दिया गया है, उसमें कुछ भी आश्चर्य जैसा नहीं नहीं है| इस बाबत एनडीटीवी द्वारा दिए गए हर बयान को मैं मात्र इज्जत संभालने का औपचारिक व प्रतीकात्मक प्रयास मानता हूँ| सभी वैधानिक प्रक्रिया यथा समय पूरी हो जाएंगी| अदानी समूह ने समय का उचित चुनाव किया है| यदि प्रक्रिया के लिए उचित समय यानि नवंबर तक इंतजार करने से अनावश्यक चुनावी मुद्दा बन सकता था| 

जब आप कोई उधार नहीं चुकाते तो उसका परिणाम आपको भुगतना होता है|  एनडीटीवी/राय खेमे से अभी तक का सबसे मजबूत बयान उसके प्रमुख मानव संसाधनों द्वारा त्यागपत्र न दिया जाना ही है|

जब तक आपका ब्याज आपकी सहमति से और बाजार दरों के मुताबिक तय हुआ था और ‘महाजन’ ने उधार देते समय आपकी किसी मजबूरी का फायदा नहीं उठाया, तब आप शोषण का रोना नहीं रो सकते| इस समय प्रसिद्ध कहानी “सवा सेर गेंहू” याद करने वालों से मुझे सहानुभूति भी नहीं होती| 

पुराने महाजनों के मुक़ाबले आधुनिक महाजन इस बात का निर्णय कर सकते हैं कि उधार दिया गया पैसा वसूलने के लिए वह देनदार के मालिक होने का झुनझुना पकड़ें या दिए गए उधार को संपत्ति कि तरह बेच कर नगद अपने बैंक खाते में डाल लें| जब तक आप शेयर पकड़ कर कंपनी में कोई निर्णायक भूमिका में नहीं आते या उस कंपनी के व्यवसाय में निपुण नहीं है, शेयर पकड़ने के मुक़ाबले दिए गए उधार को संपत्ति की तरह बेच देना सरल सहज विकल्प है| एनडीटीवी के ऋणदाता ने यह विकल्प उचित ही प्रयोग किया है| 

अधिकतर ऋणी/देनदार उधार लेते समय सोचते हैं कि भविष्यत शेयर का झुनझुना पकड़ाकर उन्होंने ऋणदाता को मूर्ख बनाया है, पर ऐसा होता नहीं है| कॉर्पोरेट सैक्टर में हजार हस्ताक्षर के बदले हजार करोड़ उधार लेकर हँसने वालों को हमने खून के आँसू रोते देखा है| जिस प्रकार पिछले वर्षों में बैंकों ने हजार करोड़ के लोन पर मिट्टी लीपी है उसी तरह उनके ऋणी/देनदार मुफ्त में अपनी संपत्ति और कंपनी खोकर बैठें हैं|

सीधे सादे उधारों में दिवालिया कानून अपना काम करता है तो समझदार ऋणदाता ऋण के कानूनी कागजों मे भूमिगत परमाणुविक अस्त्र रखकर अपने हित संभालते हैं| एनडीटीवी की कहानी समझदार ऋणदाता की कहानी है| 

मजे की बात है, चौपड़ सज चुकी है और फिलहाल खेल जारी है| मुझे इस खेल में सबसे कम उम्मीद उन से है जो प्रेस कि आजादी के नारे लगाते है और यह दिल देंगे रवीश कुमार के गाने गाते हैं| 

इस समय खेल के नियम दोनों पक्ष के लिए बराबर हैं| यदि दोनों पक्षों के समर्थक मैदान में कूदें तब और मात्र तब ही, और दोनों पक्ष बराबरी पर खड़े हैं| अदानी के पक्ष में उनकी तमाम कंपनियाँ, को ही आने की अनुमति है और “राय” खुद नहीं खेल सकते मगर उन्हें एनडीटीवी के प्रसंशकों, दर्शकों, अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के झण्डाबरदारों को टीम मान लेना चाहिए| वह अपने पक्ष में कप्तान भी नहीं हो सकते| 

इस समय “राय” नाममात्र के प्रमोटर हैं तो अदानी नाममात्र के “बाहरी निवेशक”| अदानी इस समय कंपनी की आम सभा में महत्वपूर्ण मुद्दों पर वीटो क्षमता के साथ खड़े हैं| वह एक महत्वपूर्ण पेशेवर निवेशक हैं,| उनकी आकांक्षा  अच्छे लाभांश के साथ अच्छा व्यवसाय भी हैं| अखबारी मेज पर बैठ कर प्रक्रियागत अड़चन के ऊपर लिखना अकादमिक बचपना है| 

“राय” के पक्ष में सबसे बड़ी बात है उनका इस खेल में लंगड़ा होना और इस तरह अपनी बैसाखी के साथ ढाई पैर पर सुरक्षित हैं| जी, सेबी के आदेश के अनुसार उनका एक पैर टूटा हुआ है और जो बात बीते सप्ताह तक उन्हें डेढ़ पैर का बनाकर उनके विरुद्ध जाती थी, इस समय बैसाखी बनकर उन्हें ढाई पैर पर स्थिर खड़ा किए हुए है| अगर बैसाखी बेच दी या खरीद नहीं ली जाती तो उनका निजी पक्ष फिलहाल सुरक्षित है| अब मैदान में जीत लिए जाने के लिए दांव पर लगे हैं वह शेयर जो शेयर बाजार और निजी बाजार में उछल रहे हैं| इन शेयरों के मालिकान मुनाफ़े पर नजर रखे हुए हैं| 

इन उछलते शेयर की कीमत अदानी और बाजार के लिए मात्र दहाई में होगी, यदि “रवीश कुमार” व अन्य सिपहसलार चुपचाप एनडीटीवी छोड़ देते हैं| पर अदानी इस संभावना को पसंद नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा होने पर उनका खेल और निवेश शून्य हो जाता है| यहाँ तक कि यदि “राय” सुसमयपूर्व हटते हैं तो भी “अदानी” को तात्कालिक लाभ नहीं होगा| यही स्तिथि सट्टेबाजों और “राय” के लिए भी है| 

अब यदि खेल जारी रहना है तो एनडीटीवी के मानव संसाधनों और उत्पादनों में यथास्तिथि मानकर आंकलन करना होगा| 

यथास्तिथि में सेबी नियम के अनुसार अदानी को बाजार से एनडीटीवी के 1,67,62,530 शेयर खरीदने हैं| वह एक मूल्य घोषित कर चुके हैं और इस समय उनके सामने कोई भी प्रतिरोधी-प्रस्ताव आता नहीं दिखाई देता| बिना किसी प्रतिरोधी प्रस्ताव के भी, इस समय अदानी का प्रतिरोध असंभव होकर भी बेहद सरल है| यदि अदानी के लिए बाजार में इच्छित मूल्य पर शेयर न उपलब्ध हों| यानि एनडीटीवी बचाने की इच्छा रखने वाले आम दर्शक, समर्थक और अपने शेयर अदानी को न बेचें और घाटा उठाने की ठानकर भी बाजार में मूल्य प्रस्तावित मूल्य से अधिक बनाए रहें| 

एक दूसरा तरीका हो सकता है यदि, एनडीटीवी कुछ बेहतर परिसंपत्ति यानि मानव संसाधन हासिल कर ले और अपना मूल्यांकन बढ़ा ले| यदि एनडीटीवी अपना मूल्यांकन बढ़ा पाता है तो अदानी को सह-लाभ होगा बस उसे एनडीटीवी पर नियंत्रण लोभ संवरण करना होगा| 

सुविधा के लिए एक बात हम मानकर चल सकते हैं, एनडीटीवी अदानी के हाथ में पहली कंपनी होगी जो लोहे से सोना बनने कि जगह सोने से अगर पीतल नहीं तो चाँदी अवश्य बनेगी| पर ऐसा होगा नहीं, अदानी धंधे में धंधा करने के लिए हैं| मुझे नहीं लगता उन्हें बट्टा खाता खोलने में कोई रुचि है|

मोबाइल एप के उधार


अपने मोबाइल या लैपटाप में बहुत जरूरी से अधिक एप रखना मैं अगर पाप नहीं तो अनुचित अवश्य समझता हूँ| मेरे पास कोई बैंकिंग एप नहीं है, न ही कोई उधारखाता या सरकारी एप है| नियम सरल है – जो काम वेबसाइट से हो सकते हैं उनके लिए कोई एप नहीं| वेबसाइट भले ही मैं मोबाइल पर ही खोल लूँ, एप नहीं रखता| बिना मतलब अपने घर कोई जासूस या डाटा चोर बैठने का क्या मतलब| कुछ तथाकथित सामाजिक एप है जो बहुत डाटा खाते है और डाटा भी चुराते हैं| मैं सोच लेता हूँ डाटा बेचकर उनकी तकनीकि का प्रयोग कर रहा हूँ| 

स्पष्टतः कुछ मुफ्त नहीं हैं, कुछ सस्ता नहीं है; और सस्ता या मुफ्त नैतिक नहीं है| जब मैं किसी का काम मुफ्त करते समय उसे एक दिन अपना ग्राहक/यजमान बनाने की सोचता हूँ और भीख भी पुण्य/आशीर्वाद की कामना से देता हूँ, तो मुफ्त क्या हो सकता है? 

व्यवसाय, कॉर्पोरेट, तकनीक, मोबाइल, साइबर और मेटा की दुनिया का सबसे बड़ा भ्रम किसी सेवा, वस्तु, वाक्य, कथन, नृत्य, कला, विचार आदि आदि का मुफ्त या सस्ता होना ही है| 

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फिर क्या मोबाइल एप के उधार सस्ते हो सकते हैं? मेरे जान पहचान में कुछ लोग इस प्रकार के ऋणों का शिकार हो चुके हैं| 

पहली बात यह कि उधारी को मैं आपातकालीन प्रबंध मानता हूँ| मेरे लिए आपातकाल वह है जो जीवन-मृत्यु का प्रश्न है आराम, सहूलियत, बेहद सस्ता आदि कतई आपातकाल नहीं हैं| जी हाँ, मेरे पास क्रेडिट कार्ड है परंतु उसका उधार समय से पहले चुकाना मेरी परंपरा है| मैंने क्रेडिट कार्ड के केवल उसी उधार पर एक बार ब्याज दिया है जो वास्तव में आपातकालीन चिकत्सा संबंधी उधार था| 

दूसरे अगर आप गैर आपातकालीन उधार ले भी रहे हैं तो उसे चुकाने का धन या भविष्यत आय आपके पास हर हाल में होनी चाहिए| उस गैर आपातकालीन उधार के बदले में आपका बीमा भी हो कि आपका उधार संतान या संपत्ति को न चुकाना पड़े| यह समझने की बात है कि मैं व्यापार के लिए कार्यशील पूंजी के लिए उधार का समर्थक हूँ और इसकी सलाह देता हूँ| परंतु यह उधार हर चक्र में चुकाया जाना चाहिए या धंधा छोड़ देना चाहिए| ऐसा न होने पर धंधा ही नहीं, साख भी आपको छोड़ देगी| अन्य व्यापार संबंधी ऋण को मैं आवश्यकता के आधार पर ही देखता हूँ और अनावश्यक ऋण न लेने की सलाह देता हूँ|

तीसरे कार, फर्नीचर आदि ऋण नहीं लेने चाहिए| आजाद ख्याल और मस्त रहने के लिए गृह ऋण से बचना चाहिए| यह आपको बीस तीस साल के लिए बंधुआ मजदूर, बंधुआ किराएदार और बंधुआ मस्तिष्क बना सकता है| वैसे अगर मैं कभी व्यवसायी बनूँ तो उन लोगों को नौकर रखूँगा जिनके पास मोटे गृहऋण के साथ एक दो और ऋण हैं| जिन लोगों के पास भविष्य में बनने वाले घरों के लिए लिया गया गृहऋण हों, उन्हें दया का पात्र मानना चाहिए| कुछ शातिर धनलक्ष्मीभक्त गृहऋण का बहुत बढ़िया प्रयोग करते हैं और संपत्ति बनाने में सफल रहते, उनके प्रति मेरा पूरा आदर और शृद्धा है| आम जन उनकी अंधी नकल न करें, इसके लिए समय, शिक्षा और कौशल का निवेश करना होता है| 

चौथा ऋण लेकर न चुकाने वालों को में विशेष मानता हूँ| इनमें से जो व्यवसायिक सद्प्रयास के बाद भी ऋण नहीं चुका पाते, उनसे मुझे सहानुभूति है| शातिर ऋण चोरों को मैं चोर ही मानता हूँ, परंतु आदर भी प्रदर्शित करता हूँ ताकि मैं समाज में रह सकूँ| आशा है आप आदर करने और आदर प्रदर्शित करने का अंतर समझते हैं| 

यह सब तो मूल बात हुई,अब मुख्य बात पर आते हैं|

बहुत से एप तत्काल उधार की सुविधा देते हैं| यह सभी एक विशेष प्रकार से काम करते हैं| आपके मोबाइल के माध्यम से आपका ही नहीं, आपके सम्बन्धों और उनकी आदतों का भी पूरा पूर्ण चहुंमुखी चरित्रचित्रण बनाकर रखते हैं| इसके साथ चरित्र हनन का भी पूरा इंतजाम तकनीकि की मदद से यह कर सकते हैं| इस प्रकार के मोबाइल एप से आप तुरंत फुरन्त बड़ा उधार लेते हैं| वैसे यह उधार आम तौर पर एक लाख से कम का ही होता है| उनका चिन्हित ग्राहक समुदाय वह तबका है जिसे इतना भी उधार सरलता से न मिल सके| इसका अर्थ यह नहीं कि यह आर्थिक निम्न वर्ग को निशाना बनाते हैं| यह आम तौर पर मध्यवर्ग के उस तबके को निशाना बनाते हैं जिन्हें तत्काल ऋण प्राप्त करने की सुविधा न हो – जैसे कम या घटती आर्थिक साख (credit rating), पारिवारिक असहयोग, उधार से सकने वाले मित्रों संबंधियों की कमी, घटती आय, घटती या स्थिर आय के साथ स्थिर या बढ़ता खर्च, आपतकालिक  आदि| फिर कोई भी व्यक्ति दस से पचास हजार का कर्ज तब ही लेगा, जब मानसिक रूप से तात्कालिक आर्थिक या सामाजिक मुसीबत सामने हो| 

यह एप मुफ्त उधार नहीं देते, आपके मोबाइल के सभी आंकड़े, सूचना, संबंध, चित्र आदि उनके पास कहे अनकहे, अनुमति- बिना अनुमति जाते हैं| आप की महत्वपूर्ण सूचना पैन, आधार, जीएसटी, माता पिता का नाम, बैंक खाता, उम्र आदि यह आपसे पूछ ही लेते हैं| कुल मिला कर आप अपना पूरा व्यक्तित्व, चरित्र और जीवन उस छोटे से ऋण के लिए गिरवी रख देते हैं| 

एक पुरानी नसीहत है – गू खाओ तो हाथी का, चिरईया का नहीं, उधार लो तो लाख का, हजार का नहीं| मैं इस नसीहत को पूरी तरजीह देता हूँ|

वैसे पैर उनते फैलाए जिनती चादर हो, पैर बड़े हो तो चादर बड़ी करने पर ध्यान दें, छोटी चादर न फाड़ें| 

विश्व-बंदी १६ मई


उपशीर्षक – त्रियोदशी में करोना दावत

करोना काल की अच्छी उपलब्धियों में एक यह भी है कि देश में त्रियोदशी संस्कारों में भारी कमी आई है| परन्तु मेरे गृह नगर के बारे में छपी खबर चिंता जनक थी|

शहर के एक बड़े सर्राफ़ की माताजी का हाल में स्वर्गवास हुआ| इसके बाद स्वाभाविक है कि उनके पुत्र, और पुत्रिओं के परिवार इकठ्ठा होते| इसमें शायद किसी को कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए| परन्तु इस परिवार ने अपनी माताजी के लिए त्रियोदशी संस्कार का आयोजन किया, जिसमें शहर भर के काफ़ी लोग सम्मलित हुए| दो दिन के बाद सर्राफ़ साहब की करोना से मृत्यु हो गई| मृत्यु के समाचार के बाद सरकार ने तुरंत तीन प्रमुख थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू का ऐलान कर दिया जिससे कि बीमारी न फैले| साथ ही उन लोगों की जानकारी इकठ्ठा की गई जो त्रियोदशी में शामिल हुए थे| इस परिवार और समारोह में शामिल कई लोग करोना से संक्रमित पाए गए|

दुःख यह कि यह समाज का सभ्य और समझदार समझे जाने वाला तबका है| यह वह लोग हैं जो दूसरों के लिए आदर्श बनकर खड़े होते है|

इस पूरे इलाके में कर्फ्यू जारी है| कोई नहीं जानता कि सर्राफ़ परिवार के यहाँ मातमपुर्सी के लिए आए और बाद में त्रियोदशी समारोह में शामिल लोग कब कब किस किस से मिले| यह एक पूरी श्रंखला बनती है| यह सब जान पाना उतना सरल नहीं जितना लगता है| अलीगढ़ शहर ख़तरे की स्तिथि में अब लगभग एक महीने के लिए रहेगा| सरकार ने लगभग १५० लोगों के विरूद्ध मुकदमा कायम किया है|

कुछ अतिविश्वासी या अंधविश्वासी लोगों के कारण उनके सम्बन्धियों, मित्रों, परिवारों, पड़ौसियों, और यहाँ तक कि उनके आसपास से अनजाने में ही गुजर गए लोगों के लिए खतरा पैदा हुआ है|

अलीगढ़ वालों के समझदार होने का मेरा भ्रम इस समय कुचल गया है| मैं सिर्फ़ आशा करता हूँ कि जल्द सब ठीक हो|

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