अगर कोई जिन्दगी की लड़ाई में हार जाए तो कायर? मगर वो कौन है जो पलायन कर जाते हैं कभी न लड़ने के लिए? किसी ने कहा, आत्महत्या से बेहतर है संन्यास ले लेना? किस तरह का सन्यास- सन्यास में तो परिवार छोड़कर दुनिया को अपनाना होता है, क्या कोई कायर कर पाएगा या वो जो अपनी आज की लड़ाई हार रहा हो| हर पलायन भी तो हार नहीं है, जैसे बुद्ध का पलायन, कृष्ण का रणछोड़ हो जाना, या अर्जुन का कर्तव्यविमूढ़ हो जाना|
सदी भर पहले भगत सिंह अंगेजो के हाथों गिरफ्तार हो जाते हैं और उनके वरिष्ठ चंद्रशेखर आज़ाद गिरफ़्तारी या फ़र्जी हत्या से पहले खुद को गोली मार लेते हैं| दोनों में से कोई कतई कायर नहीं था| पुराणों में देवी सती पिता द्वारा पति के अपमान से क्षुब्ध होकर आत्मदाह करतीं है – पुनर्जन्म और पुनः शिव से विवाह| पुराण तो उन्हें नहीं कोसते| कहने वाले तो जौहर, समाधि और संथारा को आत्महत्या कहते हैं और मणिपुर/भारत सरकार आमरण अनशन को| खैर, यह सब मेरा मुद्दा नहीं है| मुद्दा है – मरने वाले को कायरता की गाली|
हम नहीं जानते आत्महत्या करने वाले संघर्ष क्या थे? मार्ग क्या बचे थे उसके पास| बिना जाने कोई भी निर्णय दे देना – वो भी अपमानजनक निर्णय!!
लोग कहते हैं अच्छे दोस्त और अच्छा परिवार हो तो आत्महत्या नहीं होतीं| क्या वाकई? अक्सर आत्महत्या करने वालों के हँसमुख और बेहद अच्छे दोस्त होते हैं जो कहते है – चल चाय पी कर आते हैं| दुनिया में जितने छात्र आत्महत्या करते हैं, उन सबके पास दुनिया के सबसे अच्छे माँ बाप होते हैं – और यह कतई अच्छी ख़बर नहीं होती| आत्महत्या के विकल्प पर विचार करते हुए व्यक्ति को जब कोई कहता है कि तू फालतू सोच रहा हैं इतना| ज़मीन खिसक जाती हैं पैरों के नीचे से, उस वक़्त मरने के लिए फांसी की जरूरत नहीं पड़ती|
“मेरा दिल दरवाज़ा आपके लिए खुला है”, क्या कोई हो सकता है इतना महान जिस पर दुनिया अपना दिल खोल कर रख दे| फेसबुक पर पोस्ट करने से पहले भरोसा तो बनाओ और हिम्मत करो ये कहने की, “आ बैठ, ऐश्वर्य हम दोनों मिलकर चार दिन बाद कूद मरेंगे|” इतना कहने ले फेसबुक पोस्ट नहीं कलेजा लगता है| वो चार दिन उसके बाद चार साल बनते हैं|
बेहतर है, तनाव और आत्महत्या की भावना से मनोचिकित्सकों को निपटने दें| और हाँ, मनोचिकित्सकों में तो खुद आत्महत्या की दर बहुत होती है|
ऐश्वर्य मोहन गहराना
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