“ऐसा लिखा तो शास्त्रों में हैं……पर मैंने व्हाट्सएप्प पर पढ़ा था|” अमेज़न के वैब सीरिज़ “पाताललोक” का यह संवाद अब तक सबने सुन-पढ़ लिया है| व्हाट्सएप्प पर यह भी आता ही रहता है कि हिन्दू धर्म आत्माओं के मिलन का धर्म है और तलाक जैसा घर तोडू शब्द हिन्दू धर्म में नहीं है| इस प्रकार के अधिकतर प्रचारों में स्त्रियों को तलाक़ और तलाक़ मांगने के लिए निशाना बनाया जाता रहता है| इसका कारण शायद यह हो कि हिन्दू पुरुष प्रायः बिना तलाक़ आदि के विवाह पलायन करते रहे हैं या पत्नी का निष्कासन करते रहे हैं| स्त्रियों को इस प्रकार के कोई अधिकार सामाजिक आर्थिक और पारिवारिक कारणों से हिन्दू धर्म में नहीं मिल सका है|
इधर मुझे सुप्रसिद्ध हिंदी लेखक जयशंकर प्रसाद का लिखा नाटक ध्रुवस्वामिनी पढ़ने को मिला| गुप्तकाल की पृष्ठभूमि वाले इस नाटक में ध्रुवस्वामिनी के विवाह मोक्ष और उसके उपरांत चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से विवाह का वर्णन है| ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के सभी साहित्यों की तरह इस नाटक की प्रस्तावना में लेखक ने अपनी विषयवस्तु ‘विवाह-मोक्ष’ पर ऐतिहासिक सन्दर्भों की समुचित चर्चा की है| उस चर्चा को यह दोहराने की आवश्यकता नहीं है| यदि कोई पढ़ना चाहता है तो “ध्रुवस्वामिनी’ किंडल पर मुफ्त या बहुत कम दाम में उपलब्ध है|
इस चर्चा से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि समाज के ठेकेदार अपनी सुविधाओं के हिसाब से नियमों को भूलते भुलाते रहते हैं| उदहारण के लिए रामायण में राम कई विधवा स्त्रियों का विवाह संपन्न कराते हैं परन्तु कलियुग का हिन्दू समाज विधवा विवाह लम्बे समय तक अनुचित मानता रहा है| राम अहिल्या को अपनाते हैं और राम व् कृष्ण इंद्र की पूजा नहीं करते, परन्तु हमारा समाज आज भी बलात्कार पीड़ित का मानमर्दन करता है और बलात्कारी दुष्ट को अपनाए रहता है| विवाह मोक्ष कदाचित इन्हीं पुरुषवादी सामजिक प्रवृति के चलते भुला डालने के लिए हासिये पर दाल दिया गया हो|
हजारों सालों के इतिहास में नियम बदलते रहे हैं और किसी भी नियम की निरंतरता मात्र हमारे वर्तमान विश्वास और अज्ञान में ही रही है| विवाह मोक्ष का नियम इसी प्रकार के नियमों में रहा है| परन्तु इतिहास में यह था इस से इंकार नहीं किया सा सकता| विवाह मोक्ष ने नियम जब पिछले सौ वर्ष में दुनिया भर में कई बार बने बिगड़े हैं तो सम्पूर्ण मानव इतिहास में भारी बदलाव से इंकार नहीं किया जा सकता|
ऐश्वर्य मोहन गहराना