अलीराजपुर का भगोरिया


होली के एक सप्ताह पूर्व भारत के प्राचीनतम निवासी भील और भिलाला आदिवासी जातियां अपने सदस्यों को अपना जीवनसाथी चुनने का अवसर प्रदान करतीं है| यह वह सुविधा है, जो आज सभ्य भारतीय समाज में सुलभ नहीं है, माँगनी पड़तीं है| भगोरिया एक अनुशासित प्रक्रिया है, जिसमें होली से ठीक पहले के सप्ताह में लगने वाले स्थानीय हाट (साप्ताहिक बाजार) भगोरिया मेले और उत्सव में बदल जाते हैं| खरीददारी, उत्सव, नाचगाना, और छोटे छोटे मनोरंजन के साथ प्राचीनता का नवीनता के साथ संगम देखते ही बनता है| इस वर्ष मुझे भगोरिया मेलों में शामिल होने का अवसर मिला|

चित्रों में भगोरिया – भ्रमण

भगोरिया के साथ प्रचलित रूप से मध्यप्रदेश के झाबूआ जिले का नाम जुड़ा हुआ है| झाबूआ दरअसल जिला बन जाने के कारण प्रसिद्ध हुआ और प्राचीन अलीराजपुर राज्य को अपना महत्व हासिल करने के लिए 2008 में स्वतंत्र जिला बनने तक इन्तजार करना पड़ा| प्राचीन भील राज्य आली और मध्यकालीन राजपुर मिलन से अलीराजपुर की नीव पड़ी|[i] वैसे भगोरिया का आयोजन मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के सभी आदिवासी बहुल जिलों झाबूआ, धार, खरगौन, अलीराजपुर आदि में होता है| जितना दूर दराज क्षेत्र में जाते हैं, भगोरिया अपने अधिक मूल रूप में दिखाई देता है|

चांदी के महत्वपूर्ण भारी भरकम गहनों के लदी असाधारण सौंदर्य की धनी भील और भिलाला कन्याएं एक सामूहिक गणवेश में झुण्ड के झुण्ड मेले का आनंद लेने आतीं हैं| हर झुण्ड की लडकियां आज भी एक जैसे रंग के भिलोंडी लहंगे और ओढ़नी पहनतीं हैं| परन्तु इस सामूहिकता में एकलता की थाप भी यदा कदा दिखाई देती है| जैसा कि हमेशा होता है, लड़कों में आधुनिक परिधानों का शौक मेले के पारंपरिक सौंदर्य को थोड़ा कम कर देता है| परन्तु कुछ लड़के फैंटे, कड़े और कंडोरे पहने दिखाई देते हैं|

उमरिया के भगोरिया में आती भिलाला कन्यायें

उमरिया के भगोरिया में आती भिलाला कन्यायें

मध्यमवर्गीय आधुनिकता के थपेड़े, सार्वजानिक प्रेम अभिवयक्ति को कम कर रहें हैं| पहली निगाह के प्रेम का स्थान अब पुराने प्रेम की कभी कभार वाली अभिव्यक्ति ने ले लिया है| ज्यादातर सम्बन्ध पारवारिक और सामाजिक पूर्व स्वीकृति से ही तय होने लगे हैं| दापा (वर पक्ष द्वारा दिया जाना वाला वधुमूल्य) कई बार भगोरिया से भागने के बाद भी देना पड़ता है|

यदि आप उस प्राचीन रूमानी इश्क़ और स्वयंवर के लिए भगोरिया आना चाहते हैं तो न आयें| न ही यह दिल्ली के प्रगति मैदान में होने वाले बड़े मेलों की तरह सजावटी है| मगर बहुत कुछ है भगोरिया में जो देखने और शामिल होने लायक है|

उमरिया:

सोंडवा विकासखंड का उमरिया गाँव बढ़िया सड़क और बाजार के कारण आकर्षित करता है| यह आम भारतीय कस्बों के बाजार जैसा ही है| सम्पन्नता के कारण यहाँ पर आने वाले लोगों में आत्मविश्वास दिखाई देता है| हम भारतवासी मेलों में सबसे अधिक भोजन की ओर आकर्षित होते हैं| यहाँ पर बढ़िया पकौड़े हर पांचवी दुकान पर मिल रहे थे| हाट में दुकान सँभालने और हाथ बंटाने वाली महिलाओं का काफी अच्छा अनुपात था| यहाँ पर भगोरिया के लिए निर्धारित मैदान भीड़ के कारण छोटा पड़ रहा था और आपात स्तिथि के लिए निकास नहीं था| पास के गांवों से भील और भिलाला समुदाय के लड़के लड़कियों के जत्थे लगातार आ रहे थे| जिन परिवार में बच्चे छोटे हैं वह ही पारवारिक इकाई के रूप में आते देते हैं| वृद्ध दंपत्ति में साथ आते में दिखाई दिए| लड़के लड़कियां अपने अपने अलग अलग समूह में आते हैं| आप सौन्दर्यबोध और सम्पन्नता के आधार पर आसानी से भील और भिलाला लड़कियों को पहचान सकते हैं|

यहाँ हम जैसे पर्यटकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है| बड़े बड़े कैमरे सबसे अधिक फोकस उन भारी भरकम चांदी के गहनों की ओर कर रहे हैं, जिन्हें खरीदना आज आसान काम नहीं है| हाट में आये स्थानीय दुकानदार जागरूक हैं|  आदिवासी सामान की दुकान पर आदिवासियों और बाहरी लोगों का जमघट है| हमने यहाँ के स्थानीय गायकों के भगोरिया गीत भी पेन ड्राइव में खरीदकर लिए|[ii]

वालपुर:

इस से पहले वालपुर गाँव में मुझे अपेक्षागत रूप से अधिक ग्रामीण झलक दिखाई दी| इस छोटे से गाँव में इसके आकर से दो तीन गुना बड़ा हाट लगा था| बहुत से लोगें ने भगोरिया के उसी तरह से पंडाल लगाये थे जैसे दिल्ली में भंडारों के लगते हैं| यह शायद भील बहुल इलाका है, सम्पन्नता कम है और स्वभाव की सरलता अधिक| टूटी फूटी सड़क, बहुत सारी धूल के बाद भी वालपुर मुझे आकर्षित करता है| यहाँ स्थानीय जरूरत का साधारण सामान अधिक है| मैं मुख्य चौराहे पर रखे पत्थर पर खड़ा होकर चारों तरफ देख रहा हूँ| भीड़ अनुशासित है, मगर पुलिस भी अधिक है| ताड़ी पीकर आये लड़के लड़कियां भी अधिक है| एक पुलिसकर्मी मुझे कहता है, जब तक आप शांत है, बहुत सुरक्षित है; किसी की भावना को हल्की सी चोट आपके लिए बहुत हानिकारक हो सकती है| यहाँ लोग जब तक सरल हैं, सब ठीक है मगर क्रोध जगाने के स्तिथि में बहुत भड़क सकते हैं| लड़कियां बहुत शांत शर्मीली सहमी हुई और कम आत्मविश्वास में हैं| लड़के हर कदम पर पुलिस से बचकर चलते हैं| थोड़ी थोड़ी दूर छोटे छोटे समूह में लोग मस्ती में नाच रहे हैं| झाबूआ नर्मदा ग्रामीण बैंक के परिसर में भी दो बड़े ढ़ोल, लम्बी बांसुरी और अन्य वाद्य बज रहे हैं| लोग नाच रहे है| इसके बराबर में तरह तरह के आधुनिक और प्राचीन झूले लगे हैं| थोड़ी दूर मैदान में कई बड़े बड़े ढ़ोल हैं और उनके चारों ओर घूम घूम कर नाच चल रहा है| धुल कदम ताल के साथ बहुत ऊपर तक उठ रही है| धूल के अलावा प्रदूषण नहीं है|

वालपुर भगोरिया में बांसुरी

वालपुर भगोरिया में बांसुरी

रतालू बहुत बिक रहा है| रतालू दक्षिण अमेरिका से आलू के आने तक भारत का मुख्य खाद्य रहा है| सब्जियाँ, मछलियाँ, मांस, सूखी मछलियाँ सब अलग अलग गलियों या इलाकों में बिक रहीं है| पकोड़े और बड़ी बड़ी जलेबियाँ सबसे अधिक भीड़ बटोर रहे हैं| मैं खांड के कंगन और हार देख कर उधर जाता हूँ| यह होली की पूजा में देवता पर चढ़ेंगे, प्रसाद में खाए जायेंगे| मैं बताता हूँ दिल्ली में खण्ड के खिलौने  दिवाली पर बिकते है; दुकानदार कहता है… पढ़ लिख कर तो सब लोग उल्टा काम करते हैं, दिल्ली वाले पढ़े लिखे होते है| उसकी पत्नी “इनका” मुझे फ़ोटो लेने के लिए आग्रह करती है| बाद में हँसकर कहती है, भगोरिया नाचने गाने का त्यौहार है, लड़कियों के फ़ोटो लेने का नहीं|

हल्की सी बातचीत पर लोग अपनेपन से बात करते हैं| आपके गुलाल लगाते हैं और आपसे लगवाते हैं| पुलिस शाम की साढ़े पांच बजे मेले को बंद करा देगी| पूरे प्रशासनिक अमले को अगले दिन अगले गाँव के भगोरिया इंतजाम भी करना है| हम लोग चल देते हैं| अगले दिन पता चलता है, हम लोगों के निकलते ही पुलिस ने लाठियां चलाई, कुछ लड़की छेड़ने का मामला था| बताने वाला लड़का पूछता है अगर लड़की से बात भी नहीं कर पाएंगे तो भगोरिया कैसे होगा? साथ ही मानता है कि लड़की छेड़ने के मामले बढ़ते जा रहे हैं|

पर्यटकों से:

पर्यटक अपनी सुविधा से भगोरिया के लिए किसी भी स्थान होने वाले हाट में जा सकते हैं| आपको सुविधा और संस्कृति में सामंजस्य बिठाने की कोशिश करनी होगी| मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम भगोरिया के अवसर पर स्विस टेंट की व्यवस्था करता हैं| जहाँ सुविधाजनक रूप से रहा जा सकता है| अगर आप साथ में कट्ठीवाड़ा जाने का कार्यक्रम बनाते हैं तो यह सुखद अनुभव होगा|

सुझाव:

विकास और जनसँख्या विस्फ़ोट के साथ आज मेले आदि के लिए बड़े मैदान की कमी होती जा रही है| इसके लिए मेले स्थल के निकट बड़े मैदान की व्यवस्था की जरूरत है| हर हाट में आदिवासी हस्तशिल्प और खान-पान आदि को थोड़ा प्रोत्साहन मिलना चाहिए| आदिवासी गीत संगीत पर वालीवुड का असर देखा जा रहा है, मगर उसके प्रोत्साहन के लिए भगोरिया मेले माध्यम बन सकते हैं| क्या ताड़ी को गोवा की फैनी की तरह प्रोत्साहित किया जा सकता है?

सभी चित्र: ऐश्वर्य मोहन गहराना

[यह यात्रा मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा आयोजित की गई थी]

[i] आली और राजपुर से मिलकर बने अलीराजपुर शब्द में मुस्लिम हस्तक्षेप न खोंजें| यह भील राज्य आली का अवशेष है|

[ii] लगभग १०० भगोरिया गीत हमें मानसी ट्रेवल के दुर्गेश राजगुरु (सिसोदिया) – डिम्पी भाई ने खरीदकर उपहार में दिए| आपका हार्दिक धन्यवाद|

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