साम्राज्यवादी हिंदी


हिंदी भाषा को बहुत से लोग एक कृत्रिम भाषा मानते हैं जिसे उन्नीसवीं शताब्दी में हिन्दवी – उर्दू – रेखता से उधार लिए गए व्याकरण के साथ रचा गया| यदि हम व्याकरण की बात करें तो हिंदी का व्याकरण उर्दू से बेहद नजदीक है और बहुमत के अंधविश्वास के विरुद्ध संस्कृत व्याकरण से मेल नहीं खाता जैसे संस्कृत में तीन वचन होते हैं जबकि हिंदी – उर्दू में दो|

हिंदी कृत्रिमता का दूसरा आधार है, हिंदी का कोई अपना आधार क्षेत्र नहीं होना और इसका विकास बृज, खड़ी बोली, अवधी, भोजपुरी, मागधी, मगही, मैथली, मारवाड़ी, और तथाकथित हिंदी – परिवार की भाषाओँ के ऊपर अपने साम्राज्यवादी विस्तार से हिंदी ने लोकप्रियता पाई है| इनमें से एक समय में साहित्य – संस्कृति की भाषा रहीं ब्रजभाषा और अवधी का लगभग विलो हो रहा है और हिंदी परिवार की अन्य भाषाएँ अपने बचाव में प्रयासरत हैं| इस साम्राज्यवाद का सबसे पहला शिकार उत्तर – प्रदेश रहा है जहाँ की तीन प्रमुख भाषाएँ हिंदी विकास की भेट चढ़ चुकीं हैं – ब्रज, अवधी और उर्दू|

हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओँ का विकास हम भारत में सांस्कृतिक आदान – प्रदान और उससे उत्पन्न प्रतिक्रियाओं में देख सकते हैं| हिन्दवी – उर्दू को अपने समय की विभिन्न भाषाओँ से अपने शब्द मिले जिनमें संस्कृत अरबी फारसी अंग्रेजी पुर्तगाली और तमाम भारतीय भाषाएँ शामिल हैं| दुखद रूप से यह एक सरकारी और दरबारी भाषा रही और इसका आधार क्षेत्र सरकारी क्षेत्र और तत्कालीन राजधानियां रहीं| मगर इसे शीघ्र ही मुसलमानों से जोड़ दिया गया| उसका आम रूप जल्दी ही आर्यसमाज और कांग्रेसी आंदोलनों के साथ हिंदी के रूप में विकसित किया जाने लगा| यह उन भारतीय राष्ट्रवादी सामंतों की भाषा बनने लगी जिनका झुकाव हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रति था| पहले आर्यसमाजी स्वामी दयानंद सरस्वती और बाद में वैष्णव विचारधारा के धनी गाँधी जी इसके नेता थे|

इस बात के प्रमाण हैं कि प्रारंभिक हिंदी कैथी लिपि में लिखी जाती थी| मगर भारत का संविधान बनते समय हिंदी के लिए ब्राह्मणवादी देवनागरी का चयन किया गया| हिंदी शायद विश्व की एकमात्र आधिकारिक भाषा है जिसके लिए किसी राष्ट्र का संविधान लिपि (script) का भी निर्धारण करता है| अर्थात कैथी, रोमन, ब्राह्मी आदि लिपि में लिखी गयीं हिंदी भारत की आधिकारिक भाषा नहीं है| आम तौर पर भाषाएँ अपनी लिपि स्वयं चयन करतीं हैं|

हिंदी ने पहले उर्दू को मुसलमाओं की भाषा और बाद में पाकिस्तान की भाषा कहकर देश से निकालने का प्रयास किया| उसके साथ ब्रज और अवधी को गाँव – गंवार की भाषा कहकर तिरस्कृत किया जाता रहा है| आज जब हिंदी समूचे भारत में अपना आधिपत्य स्थापित करने में लगी है और अंग्रेजी को चुनौती दे रही है| अंग्रेजी और हिंदी का यह विकास भारत में छोटी और मझोली भाषाओँ के लिए खतरा बन कर उभर रहा है|

Advertisement

कृपया, अपने बहुमूल्य विचार यहाँ अवश्य लिखें...

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.