छोटे बच्चे सोते हुए अच्छे लगते हैं और जागते हुए बहुत अच्छे| बस उन्हें रोना नहीं चाहिए| मगर छोटा बच्चा ठीक से सो जाये यह अपने आप में एक पूरी प्रकिया है| आपके धैर्य और समझदारी की परीक्षा बच्चे सोते समय ही लेते हैं| जब सोता हुआ बच्चा मुस्कराता है तो आपको अनन्य प्रसन्नता, आनंद, संतोष और स्फूर्ति का अनुभव होता है| अगर किसी को लगता है कि बच्चे को ठीक से सुलाना सरल है तो उसे खुशफ़हमी है और अगर लगता है कि बच्चे को ठीक से सुलाना कठिन है तो अपने आप में सुधार करने की जरूरत है|
छोटे बच्चों की सोने की आदतें तेजी से बदलती हैं| मगर कुछ बातें लगातार चलतीं रहती हैं| छोटे बच्चे शाम को अकेले नहीं रहना चाहते| सूरज ढलते ही उन्हें अपने बड़ों का साथ चाहिए| उसके बाद उम्र और आदत के हिसाब से कुछ आहार, कुछ बातचीत और सोने की शानदार तैयारी|
सबसे जरूरी है बच्चे को शाम को कहीं घुमाने ले जाया जाये| इस से बच्चा दुनिया को रोज जानता समझता है और शरीर के साथ साथ अपने दिमाग को भी थकाता है| इस बीच घर के दुसरे सदस्य खाना बनाने और बिस्तर ठीक करने जैसे काम निपटा सकते हैं| बच्चा पार्क, सड़क, मंदिर, सब कुछ पसंद करता है| इस से आपका भी टहलना होता है और सामाजिक दायरा बढ़ा सकते है| छोटा सा बच्चा अपने लिए ही नहीं आपके लिए भी नए दोस्त बना सकता है| घर आकर उसे अपनी भाषा में अपना अनुभव घर के बाकी सदस्यों को सुनाने दीजिये| उसे अपने को व्यक्त करने का मौका मिलेगा और आपको उसे समझने का| उस से बातें करते करते सब लोग खाना खा सकते हैं और आपस में भी बातें कर सकते हैं|
मुझे हमेशा लगता है बच्चे के लिए सबसे कष्टकारी काम है घर के बाकी सदस्यों को टेलीविज़न से चिपके हुए देखना| अब अगर बच्चे को टेलीविज़न देखने की आदत लग जाये या आप बच्चे को कहानियां या गाने कुछ सुनाएँ| आखिर टेलीविज़न आपका रक्तचाप और मोटापा बढ़ाने के अतिरिक्त कुछ नहीं करता|
बच्चों के साथ सबसे मजेदार बात यह है कि आप उन्हें एक ही क़िस्सा रोज अलग अलग तरीके से सुना सकते हैं| मेरा ख्याल है, बच्चे को कहानी सुनाते समय उसके उपर नींद न थोपी जाये| उसे सकारात्मक तरीके से क़िस्सा कहानी सुनाते रहिये| वो अपने आप सो जायेगा|
बच्चे को सोते समय दूध पिलाना हम भारतियों की बहुत पुरानी आदत है| दूध पानी कम से कम सोने के आधा घंटे पिला देना चाहिए| सोने से पहले बच्चा मॉल – मूत्र आदि के निवृत्त हो जाना चाहिए|
मगर जरूरी बात तो रह ही गयी| बच्चे के लिए बिस्तर की तैयारी| बच्चा कुछ अलग नहीं चाहता| बेशक, पिता के मुकाबले माता के पास सोना अधिक पसंद करता है| आप जिस बिस्तर तरह के बिस्तर पर भी सोते हैं, बच्चा सो लेगा| मुझे नहीं लगता कि अलग तरह का बिस्तर देना चाहिए| बेहद अच्छा हो कि माता पिता रात में देखते रहें कि उसे कोई जरूरत तो नहीं है| ज्यादातर छोटे बच्चे किसी भी जरूरत की स्तिथि में रो कर या किसी भी और तरह से माता पिता को अपनी जरूरत बताते हैं| अगर आपको बच्चे की बात समझ नहीं आती या आपको रात में जागना दिक्कत लगता है तो उसे आप डायपर पहना सकते हैं| मैं यह जरूर कहूँगा कि न तो बच्चे को आदतन डायपर पहनाएं न उसे डायपर की आदत डालें| जिस बच्चे को आप आदतन डायपर पहनाएंगे तो बहुत सम्भावना है कि आपके बुढ़ापे में वो आपको डायपर पहनने के लिए कहे| जब भी आप बाहर जाएँ, ज्यादा थके हों, बच्चे की तबियत ठीक न हो तो बढ़िया क्वालिटी का डायपर पहनाने में संकोच नहीं करना चाहिए| किसी भी डायपर को बहुत लम्बे समय तक न चलायें| बच्चे के बाकी कपड़ों का ध्यान रखना भी जरूरी है| खासकर इस बदलते मौसम में जब बच्चों को रजाई में गर्मी लगती है और उसके बाहर ठण्ड लगती है|
टिपण्णी: यह पोस्ट इंडीब्लॉगर द्वारा पैम्पेर्स बेबी ड्राई पेंट्स के सहयोग से किये गए आयोजन के लिए लिखी गई है| आप उनके प्रचार को यहाँ देख सकते हैं: