जिन्दगी लम्बी हो या छोटी, सबसे बड़ी बात है कि उसे जी लिया जाये| मगर जिन्दगी जीना, किसी की भी जिन्दगी में एक मुश्किल काम है और अपनी जिन्दगी जीना उस से भी मुश्किल काम है, और जिन्दा दिली के साथ अपनी जिन्दगी जी लेना शायद नामुमकिन है| जिन्दगी को न जी पाने का अफ़सोस शायद हम सभी को उस वक़्त से होने लगता है जब हम अपनी जिन्दगी को समझने लगते है| जिन्दगी जी लेने के सपने देखते हुए हम जिन्दगी की फ़िक्र में जिन्दगी को मुश्किल बनाते रहते हैं|
कुछेक सपने हम सभी को होते हैं जिन्हें पूरा करने की फ़िक्र हमें लगी रहती है| जिन्हें पूरा करने से हमारा अहम् तो खुश होता है मगर हमारी अंतरात्मा नहीं| वो सपने, अपने होकर भी अपने नहीं होते| जैसे; दो प्रमोशन और मिल जाएँ, बेटा विदेश में नौकरी करे, बेटी को ससुराल में सास न मिले, अपने मकान में घर बने या न बने दो कमरे और बन जाएँ|
मगर हमारे दिल में एक हाशिया होता है जिस में उन सपनों की एक बकेट लिस्ट रहती है| वो सपने जो छोटे छोटे होते हैं और उन बड़े सपनों के सामने दम तोड़ते रहते हैं, जो उतने अपने नहीं होते| हाशिये के ये सपने आज एक बाजारवादी और उपभोक्तावादी युग में एक बड़ा धन्धा बन चुके है, इन बकेट लिस्ट सपनों को पुरा कराने के लिए ऑनलाइन उपचार तक यहाँ मौजूद हैं|
मगर इन सपनों में से ज्यादातर को पूरा करना कोई बड़ी बात नहीं है| अपने से थोड़ा अपनापन, थोड़ा वक़्त, थोड़ा दिल, और बहुत थोड़ा पैसा चाहिए| वो पैसा जो आपने अपने सुख – दुःख के लिए नहीं अपने लिए, और केवल अपने लिए बचा रखा हो|
आज अपने दिल के हाशिये पर के उन्ही छोटे छोटे कुछ सपनों की बात करते हैं|
- कुछ दिन के लिए एक छोटे से गांव में जाकर रहना: शहर की जिन्दगी में आप भागते रहते हैं, भले ही आप घर पर बैठ कर टीवी क्यूँ न देख रहे हों| आपको वो सकूं शहर में नहीं मिलता जो आपको दूर दराज के किसी गांव में सुबह सुबह खेतों में घुमने पर मिलता है, किसी चौपाल में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाने में मिलता है| जानता हूँ कि आज गांव में बहुत सी शहरी सुविधाएँ नहीं हैं मगर आज भी शांति है, सकूं है, जिन्दगी है|
- पैदल भारत भ्रमण के लिए निकल जाना: दो प्रश्न हैं; भारत भ्रमण ही क्यों और पैदल क्यों| भारत भ्रमण इसलिए कि मैं मरने से पहले उस देश को अच्छे से जान लेना चाहता हूँ जिसमें मेरा जन्म हुआ है| पैदल इसलिए क्योंकि पैदल यात्रा आपको आस पास के माहौल को बारीकी से पकड़ने और समझने का अवसर देती है|
- कुछ सौ पचास अच्छे रेखाचित्र बनाना: यह मेरा बचपन का सपना है| बचपन में मेरे हाथ खलील ज़िब्रान की एक किताब लगी थी, जिसमें उनके बनाये रेखाचित्र भी थे| बाद में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के रेखाचित्र देखे| तब से कभी कभी कुछ उकेर लेता हूँ| अब ठीक से रेखाचित्रण सीखकर इस विधा में अपने हाथ अजमाना चाहता हूँ| केवल अपने मन के संतोष के लिए, किसी नाम या दाम के लिए नहीं|
- एक छोटी सी किताब लिखना: किताब हमेशा मेरी दोस्त रहीं हैं| घर के एकांत से लेकर ट्रेन की उपरी बर्थ से लेकर लोदी गार्डन के कोने में बैठकर मैंने किताबें पढ़ीं हैं| कितना अच्छा होगा जब मैं इस दुनिया में नहीं रहूँ तब भी एक अनजान दोस्त मुझ से ठीक उसी तरह बात करे जिस तरह मैंने खलील ज़िब्रान, महात्मा गाँधी, विवेकानंद, मुंशी प्रेमचंद, और न जाने कितने और लोगों से बातें कीं हैं| आपके चले जाने के बाद भी कोई आपसे दोस्ती कर लेगा| यह सोचकर ही मुझे बहुत ख़ुशी महसूस होती है|
- संस्कृत और उर्दू दोबारा सीखना: बचपन में स्कूल में संस्कृत पढ़ी थी घर पर उर्दू| मगर बोलचाल और पढ़ाई लिखाई में इनका प्रयोग न होने के कारण इन्हें भूल गया हूँ| इन दिनों संस्कृत पर दोबारा ध्यान देना शुरू किया है| उर्दू पर भी साथ साथ ध्यान देना है| अगर कालिदास और ग़ालिब को उनकी अपनी भाषा में पढ़ लिया जाये तो आनंद और संतोष तो मिलना तय है|
टिपण्णी: यह पोस्ट इंडीब्लॉगर द्वारा आईडीबीआई फेडरल लाइफ इंश्योरेन्स कंपनी लिमिटेड के सहयोग से किये गए आयोजन के लिए लिखी गई है| आप उनके IDBI Federal Lifesurance Whole Life – Befikar Umar Bhar Advert प्रचार को यहाँ देख सकते हैं: