मेरे पिछले ब्लॉग के बाद कुछ मित्रों में मुझसे बातचीत करते हुए असहमति जताते हुए कहा है कि जब भी भावनाओं को आहात करने वाली कोई भी टिपण्णी सामने आती है तो प्रबुद्ध वर्ग क्षमा याचना की मांग तो करता है है|
प्रथमतः, मुझे यह बात समझ नहीं आई| एक पुराना दोहा पढ़ा था:
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥
पूरी कथा से तो आप सभी प्रबुद्ध जन अवगत होंगें ही| भगवान् विष्णू ने इस मिथकीय घटना क्रम में एक श्रेष्ठ उदहारण प्रस्तुत किया है| उन्होंने भृगु द्वारा हमला किये जाने के बाद क्षमा की मांग नहीं की न ही किसी अन्य प्रकार का दबाब नहीं डाला|
मैं यह नहीं कहता कि क्षमा की आशा नहीं करनी चाहिए; परन्तु क्षमा मंगवाने के लिए किसी भी प्रकार का दबाब डालना, बल प्रयोग की धमकी देना, चरित्रहनन करना, बल प्रयोग करना आदि गलत है|
क्षमा किसी के भी ह्रदय परिवर्तन का प्रतिफल होना चाहिए; गले पड़ी मुसीबतों, मूर्खों और मवालियों से पीछा छुड़ाने की गरज का परिलक्षण नहीं| इन दिनों तो हमारे लोकतंत्र का काम ही माफ़ी मंगवाना या प्रतिबंध लगवाना रह गया है| हालत यह है कि साधारण तथ्यों से भी लोगों की भावनाएं आहात हो जाती हैं| अगर आप कह दें की “सूरज पूरब से निकलता है” तो देश में हंगामा हो जाएँ| कहना चाहिए “सूर्यदेव पूर्व दिशा से उदय होते हैं”|
हम रोज ही किसी न किसी को “सॉरी” बोलते हैं; मुझे नहीं लगता ही दस में से एक बार भी हम यह याद रख पाते हैं कि हमने क्यूँ क्षमा प्रार्थना की| यह सिर्फ अपनी शालीनता प्रदर्शन का माध्यम होता है| हमारा कोई ह्रदय परिवर्तन नहीं होता| क्या इस तरह के आदतन क्षमा याचने से कोई लाभ होता है?
इसी प्रकार, जब कोई गुंडा मवाली सामने से लड़ने आ जाता है तो भी हम क्षमा याचना कर लेते हैं| क्या हम उस गुंडे को गुंडा मानना बंद करते हैं|
कई बार कानूनी कार्यवाही की धमकी दी जाती हैं| यह कई बार हास्यास्पद हो जाती है जब कि सामने वाले की टिप्पणी, अपने सभी सन्दर्भ और प्रसंगों के साथ काफी हद तक सही प्रतीत होती है| हम केवल इसलिए न्यायलय में वाद नहीं कर सकते कि हमारी “आत्म – मुग्धता” को ठेस लगी है| न्यायालय “आत्म – सम्मान” के लिए वाद सुनता है, “आत्म – मुग्धता” के लिए नहीं| बहुधा, इन दोनों स्तिथियों में कोई विशेष अंतर नहीं होता, इसलिए बचना चाहिए| क्योंकि हर कोई न्यायलय के चक्कर काटने से नहीं डरता| खासकर तब जब, उसे पता हो की मुक़दमे की धमकी गीदड़ – भभकी है|
बहुमत का जबरदस्त दबाब आज की भीड़तंत्र में क्षमा मंगवाने का बड़ा तरीका हो गया हैं| क्या एक आदमी का सत्य १०० करोड़ के दबाब से झूठ बन जाता है| कभी नहीं| यह दबाब उस एक आदमी को यह बताता है कि उसका सामना १०० करोड़ जाहिल – गंवारों से हो गया है और न्याय कि अब आशा नहीं बची है| अपने को बचाने के लिए या तो भाग जाओ या हथियार उठा लो|
कई बार क्षमा मंगवाने के लिए मारपीट भी की जाती है| आज देश के सड़कछाप (और सोशल मीडिया छाप) राजनीतिज्ञ और टका – छाप अपराधी तत्वों के लिए यह बड़ा आसन तरीका हो गया है| लोग फर्जी नाम रख कर आये दिन ऐसा कर रहे हैं| हाल में विश्व भर के मिडिया में इस प्रकार की धमकियों के भारतवर्ष में चलन को लेकर काफी चर्चा है| कहा जा रहा है कि भारत में एक ऐसा कट्टरपंथी तबका है जिसे अपनी बात मनवाने के पिटाई करने से लेकर बलात्कार और हत्या करने की धमकी देने में लाज शर्म नहीं आती है| ऐसी भी जानकारियां आ रही हैं कि इसमें प्रबुद्ध कहे जाने वाले डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट जैसे लोग भी अपने नकली नामों के साथ शामिल हैं| विभिन्न संस्थाओं ने नकली नामधारी इन लोगों का डेटाबेस भी तैयार करना शुरू कर दिया है|
मेरी समझ में जबरन क्षमा मंगवाना आतंक फ़ैलाने का प्रथम पायदान है|
जैसा मैंने पहले ही कहा है कि क्षमा मंगवाने का एक ही उचित तरीका हैं, सामने वाले के ह्रदय परिवर्तन का प्रयास करना| ह्रदय परिवर्तन के कई माध्यम हो सकते हैं:
१. हम सामने वाले के सामने अपने कृत्य से ऐसे उदहारण रखें कि उसे खुद से आत्मग्लानि हो|
२. हम वह तथ्य भली प्रकार से सामने लायें जिन्हें वह शायद नजर अंदाज कर गया हो|
३. आपस में बैठ कर एक दुसरे की बात समझें और अपने अपने पक्ष की गलत बातों को सुधारें|
४. सामने वाले पक्ष की गलत बातों को नजर अंदाज करते हुए समस्त समाज को भली प्रकार से सही बातों की जानकारी दें| जब सामने वाला पक्ष देखेगा कि उसके दुष्प्रचार का सद्प्रचार से मुकाबला किया जा रहा है तो वह स्वमेव शांत हो जायेगा|
कुल मिला कर मेरे विचार से क्षमेच्क्षा (क्षमा मंगवाने की जबरदस्त इच्छा रखना) क्षमा-शीलता का धुर विरोधी है|
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