कल जब बीबीसी हिंदी सेवा की रिपोर्ट पढ़ी कि हॉलीवुड अभिनेत्री एंजेलीना जोली को स्तन कैंसर नहीं है फिर भी उन्होंने अपने स्तन हटवाए हैं; मैं अपने माँ के बारे में सोच रहा था| कल 15 मई 2013 को मेरी माँ अगर जिन्दा होतीं तो 61वां जन्मदिन मानतीं| मगर 49 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गयी| उसके बाद मेरी छोटी बहन को लगभग 7 -8 साल के संघर्ष के बाद कैंसर में मात्र 31 की आयु में हमसे छीन लिया| आगे बढ़ने से पहले मैं बता दूँ कि ज्यादातर मामलों में कैंसर लाइलाज नहीं है; मेरी बहन ने पहली बार उसे 6 महीने में पछाड़ दिया था और उसके बाद उसने 6 साल स्वस्थ जीवन जिया|
जब मैं बीबीसी की रिपोर्ट पढ़ रहा था तो मुझे उस पर की गयी टिप्पणियों से विशेष परेशानी हुई| कुछ टिप्पणियाँ इस प्रकार थीं:
“किस किस अंग को हटवाएगी? ये संरचना है भगवान की शरीर तो त्यागना ही होगा एक दिन”
“अब बताइए सब औरतें यही सोचने लगी तो क्या होगा इस दुनिया का नीरस नीरस नीरस”
मुझे बुरा लगा| मैंने लिखा:
“मुझे बेहद दुःख है कि बेहद घटिया बातें “बकी” गयी हैं यहाँ पर| मेरी माँ, जिनका आज जन्म दिन होता, और मेरी छोटी बहन की मृत्यु स्तन कैंसर से 49 और 31 के उम्र मैं हो गयी| बेहद दर्दनाक होता है| जिनपर बीतती है वो ही जानते है| गलत बात है कि लोग दुनिया के नीरस होने और मौत से भागने की बात कर रहे है| बच्चे को स्तन पान कराने के बाद स्तन का कोई प्रयोग नहीं है और इसका रहना न रहना बेमानी है| रही बात मौत से भागने की तो जिन्हें मौत से ज्यादा प्यार है वो आत्महत्या कर लें”
इसके बाद बीबीसी हिंदी से श्री सुशील कुमार झा ने मुझसे बात की और उसे छापा| बीबीसी हिंदी ने उसे अपने फेसबुक पेज पर और सुशील जी ने इस अपने फेसबुक प्रोफाइल पर सबके साथ साँझा किया है| जिन पर अलग अलग लोगों के विचार आ रहे हैं|
मगर एक टिपण्णी जो मूल रिपोर्ट पर थी और अब हटा दी गयी है कि “बिना **** के कैसे लगेगी?” यह टिपण्णी मुझे रात भर जगाये रही| तो मेरा उत्तर प्रस्तुत है:
मैं नहीं जानता कि एंजेलीना जोली कैसी दिखेंगी और उनके बारे में जानकर किसी को क्या करना है| अगर आपको अंदाजा लगाने का ज्यादा शौक है तो मैं स्तन कैंसर से काफी ज्यादा पीड़ित एक महिला का शल्य चिकित्सा के बाद के तीसरे महीने का जिक्र कर रहा हूँ| (सलाह है: न पढ़ें)
जीवन का जीवन के लगभग सभी पिछले शारीरिक दर्द अब सिर्फ याद बन कर रह गए हैं| आज अब यदि कैंसर होने से पहले के सबसे तेज दर्द को याद करें तो वो इस दर्द को दस (10) मानने पर दो या तीन (2 या 3) के स्तर पर आयंगे| आज किसी भी पुराने दर्द और प्रताड़ना के लिए किसी से भी कोई शिकायत नहीं है| इंसान कितना भी ताकतवर हो वो दर्द नहीं दे सकता जो ईश्वर (अगर कहीं है) तो देता है| चिकित्सक दर्द की दवा बढ़ाते जा रहे हैं| नहीं!! चिकित्सक मरीज के लिए कोई दवा नहीं दे रहे; दवा इस बात की है कि मरीज शांत रहे, और तीमारदार शांति से सो सकें|
जब मरीज के सामने आप पहली बार जातें है तो ज्यादातर वो पहली नजर में ठीक ठाक लगती है| क्योंकि चिकित्सकों ने उसे काफी बेहतर खुराक लेने के लिए कहा है वरना वो कीमियो थैरपी को नहीं झेल सकती| कहते हैं कि कैंसर से जितनी मौत होतीं हैं उतनी ही इस कीमियो थैरपी से| इस समय मरीज को वो रासायन दिए जा रहे है जिनका प्रयोग विश्व युद्ध में रासायनिक हथियारों के रूप में किया गया था|
एक हल्की मुस्कान आपका स्वागत करेगी; मन में यह भाव है कि आ गया एक और…| चेहरे पर चमक होगी, बिना किसी श्रृंगार के यह महिला आपको अपने जीवन में सबसे ज्यादा सुन्दर लग रही हो सकती है| यदि आपकी निगाह में बारीकी है तो आप पाएंगे कि चेहरे पर कोई बाल नहीं है| ज्यादातर मामलों में सिर को ढक कर रखा गया है क्योंकि सिर पर भी बाल नहीं हैं| जहरीले रसायन सबसे पहले शरीर से बाल हटा देते हैं| सिर से पैर तक कहीं भी कोई बाल, रोंया, रोंगटा कुछ नहीं है| चिकनी चमक दार त्वचा है|
चेहरे के चारों ओर आपको एक प्रभा मंडल दिखाई देगा| जो किसी भी पहुंचे हुए सन्यासी महात्मा से अधिक होगा कम नहीं| आपको याद होगा कि महात्मा बुद्ध को बीमार, मृत और वृद्ध को देख कर संसार की क्षणभंगुरता का अहसास हो गया था| महात्मा बुद्ध ने जो तीनों चीजें देखीं थीं इस महिला ने एक साथ वह अवस्थाएं खुद से अपने इस जीवन में जी लीं हैं| जीवन का सारा सच आमने हैं: प्रथम और अंतिम|
अब शायद यह महिला अपने इलाज में प्रयुक्त रासायनिक विष के कारण कभी चाहकर भी माँ नहीं बन पाएगी| जीवन ने उसे सिखा दिया है कि उसका मातृत्व अब समाप्त हो गया है| अब उसके मन में जो विचार है वो मातृत्व और पितृत्व से ऊपर की बात है मैं उसे नहीं जानता| इसलिए नहीं लिख सकता| मगर यह महिला जानती है|
हर कुछ दिन बाद और ठीक होने की स्तिथि में जीवन भर हर साल बार बार इस मरीज को कुछ जांच करानी होंगी जिनमे उन्हें परमाणु – विकरण पैदा करने वाले तत्वों का घोल हर बार पीना होगा और कई बार जांच करने वाला चिकित्सक तीमारदार से कहेगा कि भाई ज़रा दूर बैठना, बच्चों को पास मत बिठाना| हाँ जी!! विकरण का खतरा है तीमारदार को, सोचें मरीज क्या झेल रहा हो सकता है|
साथ ही, मरीज की रेडिओ – थेरेपी भी चल रही है| इसमें शरीर के कैंसर प्रभावित अंदरूनी अंगों को जलाकर नष्ट कर दिया जाता है| जहाँ शल्य चिकित्सा संभव न हो या उन हिस्सों में कैंसर से लड़ना केवल कीमियो थैरपी के बस में न हो या किसी कोई अन्य कारण हो तो इसका प्रगोग करते हैं| आम भाषा में डॉक्टर इस सिकाई ही कहते है| मैंने एक चिकित्सा कर्मी से पूछा था कि कैसा महसूस होता होगा तो उसने जो कहा था मुझे वह पढ़ लें: “पहले आप किसी जलती मोमबत्ती के ऊपर हाथ रख कर खड़े हो जाएँ और फिर माइक्रो – वेब ओवन में पकते बैगन के बारे में सोचें|” जी नहीं! एक दिन में वो हाल नहीं करते मगर.. उस दयालू चिकित्सा कर्मी को मेरा प्रश्न बेहद नागवार गुजरा था|
बिना स्तन और बालों के यह महिला किसी पहुँचे हुए सन्यासी की तरह लगती है| जीवन की हर मलिनता, प्रेम, घृणा, पाप, पूण्य, मोह और लगाव अब इस महिला के लिए बेमानी है| न अब किसी के लिए मन में सहानुभूति है न खुद के लिए सहानुभूति की आवश्यकता है| धर्म और शिक्षा जिस मूलभूत सत्य को दशकों में नहीं सिखा पाते, जीवन के ये कुछ पल स्वयं सिखा देते हैं|
स्तन विहीन महिला, जिसके माँ बनने की सम्भावना नगण्य है, अब भी महिला और पुरुष के भेद से ऊपर है| नहीं! नहीं! वह नपुंसक बिलकुल नहीं है| अब वह मानव है, मात्र मानव|