मैंने अपनी पिछले ब्लॉग पोस्ट में जब लिखा कि लोक संगीत को बचाने में नयी तकनीकि माध्यम हो सकती है तो किसी मित्र ने पूछा कि क्या आप पाश्चात्य संगीत नहीं सुनते? मैंने कहा, “नहीं, नहीं भाई, मेरा संगीत ज्ञान बहुत कमजोर है, जहाँ भी कोई लय, धुन, सुर ताल महसूस होती है, मैं संगीत सुन लेता हूँ|”
किन्ही साहब ने कहा, संगीत पसंद है तो गंग्नम स्टाइल में नाच कर दिखाओ| भाई!!, संगीत पसंद करना, सुनना अलग बात है| ये गाना बजाना, नाचना अपने बस में नहीं हैं| ये गाना बजाना नाचना, सब खुदाई नियामत हैं, मुझ जैसा आदमी इसे करकर कैसे पाप कर सकता है| खैर, उनका मन था तो कोशिश की और खुद पर हंस भी लिए|
अब HP Connected Music India वालों एक नया प्रश्न सामने ला खड़ा किया गया है| क्या कहा या लिखा जाये जब कोई मुझसे पूछे कि मेरे जीवन में संगीत का क्या स्थान है?
जब मेरा जन्म हुआ था तब थाली बजा कर ही तो पहली बधाई दी गयी थी| थाली का वो संगीत भले ही आज महत्व न रखता हो मगर संगीत को जीवन से परिचित करने वाली वह ध्वनि आज भी मुझे संगीत से जोड़ कर रखे हुए है|
बाबा का वह लयबद्ध संध्या हवन और मन्त्र पाठ, माँ की गयी मानस की चौपाईयां, कवितायेँ गुगुनाते पिता, रेडियो पर बजता विविध भारती के फ़िल्मी गाने, रोज गाने गाकर भीख माँगने वाली भिखारिन – अम्माँ; सारा जीवन ही संगीत से शुरू होता है| हमारे यहाँ परम्परा है, आमतौर पर, मृत्यु पर संगीत नहीं बजाया जाता| यदि मरने वाला बहुत बड़ा आदमी हो तो शहनाई की शोकधुन बजती है और अगर वह अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी कर कर गया हो तो उसकी बाजे गाजे से अंतिम विदा|
मुझे संगीत के लय, सुर, ताल, सरगम की समझ नहीं आई मगर मन के हर हेर – फेर पर अलग प्रकार का संगीत सुनने की आदत रहीं है| बचपन में भजन, सुगम, गजल, फ़िल्म, कव्वाली, लोक संगीत, सुनने को मिला तो किशोरवय में रसिया, आल्हा, से लेकर ठुमरी, टप्पा, कजरी, होरी से होते हुए ध्रुपद, धमार, ख्याल भी सुनने में अच्छे लगने लगे|
जब कैरियर बनाने का भुत सर पर चढ़ गया तो सुगम संगीत सुनना बंद कर दिया क्योकि बोल जल्दी ही ध्यान अपनी तरफ खिंच लेते थे| उन दिनों वादन यानि इंस्ट्रुमेंटल सुनने लगे| हिन्दुस्तानी ही नहीं कर्नाटक और वेस्टर्न क्लासिकल पर भी कान अजमाए|
आप पढने बैठे हैं, बाएं हाथ की तरफ पानी से भरा पात्र रखा है, टेबल लेंप की हल्की रोशनी किताब पर हैं, पीछे म्यूजिक सिस्टम पर हल्की आवाज में कर्नाटक संगीत का कोई राग बजाया जा रहा है, रात का जो पहर है उसी पहर का संगीत है, आप बेहद ध्यान से पढ़ रहे है| आपकी कलम से कागज़ पर आपकी असली या ख्याली महबूबा के लिये “मुल्ला: द ट्रान्सफर ऑफ़ प्रॉपर्टी लॉ” जैसी भारी भरकम पुस्तक से “मॉर्गेज” पर नोट्स तैयार किये जा रहें हैं| मजाल क्या है, नींद आ जाये, ध्यान भंग हो जाए, कमर टिक जाए, प्यास लग जाए और बाहर गली में पहरा देता चौकीदार आपकी गली में “जागते रहो” की आवाज लगा जाये| पढाई सुबह संगीत की धुन बंद होने पर ही रुकनी है|
जब हम अपनी इंटर्नशिप के लिए एक साहब के दफ्तर पहुंचे तो सोने पर सुहागा हो गया| साहब लोग पेशे से तो चार्टर्ड अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी वगैराह थे मगर उनके यहाँ बिना बैकग्राउंड म्यूजिक के जोड़-गुना नहीं होते थे| अगर कंप्यूटर में कोई गाना नहीं बज रहा होता तो अन्दर से जबाब तलब कर लिया जाता, “इस कंप्यूटर का इलेक्ट्रॉनिक टाइप-राइटर किस से पूछ कर बना दिया?”
आज संगीत हर जेब में पड़े मोबाइल में हैं, हर गोद में रखे लैपटॉप में हैं; और सुना जा रहा है| जब सुनता हूँ तो लगता है कि चोरी तो नहीं है, जिसने गीत लिखा, बोल दिए, म्यूजिक दिया, साज बजाये; क्या उनके घर उनकी मेहनत का फल पहुंचा होगा की नहीं? कोई दोयम दर्जे की रिकॉर्डिंग तो नहीं? सुगम संगीत के बड़े बड़े नामों को तो शायद कोई फर्क नहीं पढता हो मगर लोक संगीत, शास्त्रीय संगीत, उप – शास्त्रीय संगीत वाले कहाँ किस तरह से गुजरा कर पाते होंगे| सस्ते पायरेटेड म्यूजिक रिकॉर्डिंग ने मेरे हाथ में संगीत तो पहुंचा दिया है; मगर हम मुफ्त और सस्ते के फेर में केवल कुछ खास तरह के म्यूजिक ही सुन पाते हैं|
जरूरत ये है कि अच्छे लोग अच्छे संस्थान आगे आयें और हमें हर तरह का, हर रंग का हर मूड का संगीत एक जगह उपलब्ध कराएँ| हम अपना मूड बदलें, पलक झपके मन, समय, प्रहर, ऋतू, स्थान, के हिसाब से संगीत बज उठे… पंडवानी से लेकर पाश्चात्य तक सब| ज्यादा तरह का संगीत मिलेगा तभी तो ज्यादा तरह के संगीत का शौक पैदा होगा|
उम्मीद की किरण तो है, उम्मीद पूरी होना अभी बाकि है|