ॐ भू भुव स्व|
वह ग्राह्य सवित्देव|
होवें शुद्ध प्रकाशित|
सुहेतु मम सद्बुद्धि ||
(गायत्री मन्त्र का यह मान्त्रिक अर्थ मैंने विक्रम संवत २०५० आषाढ़ शुक्ल पक्ष ७ दिन शनिवार को किया था| मूल संस्कृत मन्त्र की ही तरह इस पद्य की रचना में सावित्री छंद का प्रयोग करने का प्रयास किया है| मुझे संस्कृत नहीं आती अतः मैंने उस समय उपलब्ध हिंदी अनुवाद का सहारा लिया है|)
ॐ भूर्भुवः॒ स्वः ।
तत्स॑वितुर्वरे॑ण्यं ।
भ॒र्गो॑ दे॒वस्य॑ धीमहि। ।
धियो॒ यो नः॑ प्रचो॒दया॑त्॥