सुनसान सड़क पर
देर शाम
टहलते हुए
गुनगुना रहा था
कोई पुराना प्रेम गीत
.
लाठी लहराते
सामने से आते
सिपाही ने
दूर से
कान के
पास कुछ पीछे
ललचाती लम्पट तीखी
नजर से
किया कुछ
बलात्कार सा
.
अचानक
अचानक
सहमी मरियल सी
श्याम वर्ण किशोरी ने
पीछे से कसकर
कंधे पर
पकड़ा
कान में
शब्द से आये
बचा लीजिये
निगल जायेगा
हाथ थाम लिए
दिल थम गया
.
मोड़ से
गुजर कर
सांसे ली गयीं
लड़की झुकी
मेरी ओर
आँखे नम थीं
चेहरा रक्तहीन
.
अचानक
अचानक
हाथ उठा
उसके बांये
स्तन पर
यंत्रवत जड़ दिए
अपने हस्ताक्षर
.
राहत थी
आँखों में
हल्की पड़ती चमक
ने जैसे कहा हो
शुक्रिया श्रीमान
अस्मिता बख्श दी
.
अचानक
अचानक
पौरुष ने कहा
कलंक
निरे नपुंसक
.
अचानक
अचानक
रात को
आँख खुल गयी
चढ़ा हुआ था
तकिये पर
.
.
(कवि हूँ या नहीं हूँ| कविता करने का न वादा है, न दावा है| चित्र यद्यपि मेरा नहीं हैं मगर इस चित्र को भी कृपया “शब्द समूह” के साथ या बाद अवश्य पढ़े|)