परिहास हास, विनय अनुनय,
गायन वादन, नृत्य अभिनय|
हे तपस्वी तेजोमय व्यवहारी,
मेनका बारम्बार हार कर हारी||१||
किया न तुमने सम्मान सत्कार,
दिया न नासिका कर्तन उपहार|
क्रोध काम संसार लोभ मोह,
किस किस का किया विछोह||२||
तुच्छ नीच स्त्री अधर्म,
देव लोक का वैश्या कर्म|
इन्द्र दूती सर्वनाश तुम्हारी,
विश्वामित्र इन्द्र[i] पर भारी||३||
स्त्री पड़ी तपस्या पर भारी,
मान श्रम परिश्रम सब संहारी|
छोड़ तपस्या तप पदवी भारी,
विश्वामित्र मुनि बने संसारी||४||
यह स्त्री भी क्या प्रेम पात्र,
ताडन तोडन, मरण वज्रपात|
प्रेमपाश में पड़े पुरुष मात्र,
कर न सके तुम घात आघात||५||
कपट कूट, धोखा षड़यंत्र,
देवलोक दिव्य यन्त्र मन्त्र|
इन्द्राचार छोड़ भूल मेनका,
भूली हाल मन का तन का||६||
नव जीवन ने ली अंगड़ाई,
पुत्री शकुंतला घर में आई|
कटु जीवन की कटु सच्चाई,
माता पिता का संग न पाई||७||
क्या जीवन सन्देश तुम्हारा,
पुरुषीय अहंकार सब हारा|
स्त्री वैश्या भोग निमित्त,
परन्तु लगाया तुमने चित्त||८||
काम पीड़ा का व्याधि अतिरोग,
विषद बल वासना बलात्कार|
विश्वास श्रृद्धा स्त्री जीवन सार,
आमोद प्रमोद आहार विहार||९||
कर न सके एक बलात्कार,
तुमने चुना कौन सा चित्र?
नव भारत का प्रश्न एक,
क्या तुम पुरुष विश्ममित्र||१०||
(कुछ दिन पहले मैंने पौरुष का वीर्यपात लेख लिखा था, आज लोग रावण ही हो जांये तो भी बहुत कुछ सुधर सकता है| लोगों ने रावण का चरित्र हनन तो कर लिया पर आशय नहीं समझा| अभी हाल में बलात्कार क्यों में इन्द्र का जिक्र कुछ लोगों को क्रुद्ध कर गया, मगर वो तथ्य मैंने पैदा नहीं किया; बड़े बड़े ग्रंथों में लिखा है| देश भर में बहुत सारा मंथन चिंतन हो रहा हैं और मैं भी अलग नहीं हो पाता हूँ| मैंने ब्रह्मचर्य का मुद्दा कई बार उठाया हैं, ब्रह्मचर्य का अर्थ पौरुषहीन या प्रेमहीन हो जाना नहीं हैं| जिस देश काल में लोग प्रेम, कामुक प्रेम, प्रेम वासना और बलात्कार में अंतर नहीं कर पा रहे हों, वहाँ सिर खपाना कहाँ तक उचित है?)
रेखाचित्र http://vintagesketches.blogspot.in/2009/09/menaka-vishwamitra.html से लिया गया है|
[i] सामान्यतः इन्द्र का तात्पर्य देवराज इन्द्र से ही है परन्तु शरीर की समस्त इन्द्रियों से स्वामी मन अथवा हृदय को भी इन्द्र कहा गया हैं| यहाँ पर दोनों अर्थ उचित हैं परन्तु मेरा इस स्थान पर इन्द्र शब्द का प्रयोग मन के लिए है| प्रसंगवश, बता दूँ कि कुछ लोग कामेन्द्रिय को भी इन्द्र के रूप में निरुपित करते हैं|