खुदरा बाजार का खुला खेल


 

 

 

 

२१ सितम्बर २०१२ जारी किये गए प्रेस नोट के साथ अब भारत भर खुदरा बाजार के रास्ते सरकार ने अब विदेशी पूंजीपतियों के लिए खोल दिए गए है| विदेशी पूँजीपति १०० मिलियन अमेरिकी डालर भारत में भेज कर भारत में अपना खुदरा व्यापार प्रतिष्ठान खोल सकता है| इस प्रतिष्ठान में उसका हिस्सा ५१ फीसद का होगा| इसका मतलब होगा कि किसी न किसी भारतीय पूंजीपति व्यापारी को ९६ मिलियन अमरीकी डालर उसके साथ लगाने होंगे| इस तरह ये १९६ मिलियन का भरी भरकम हाथी होगा| इस पूरी पूँजी में से ५० मिलियन डालर सम्बंधित मूलभूत ढांचे पर लगाये जायेंगे| ये दूकाने केवल १० लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में खोली जाएँगी| सरकार का कहना है कि सरकार कृषि उपज को खरीदने का पहला हक रखेगी| इसका मतलब ये है कि सरकारी खरीद का कोटा पूरा होने के बाद ये विदेशी खुदरा प्रतिष्ठान कृषि उपज खरीद सकते है| कूल खरीद का ३० फीसदी उन्हें छोटे और मझोले प्रतिष्ठान से खरीदना होगा| सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि इस खुदरा व्यापार में इंटरनेट पर की जाने वाली खुदरा बिक्री की अनुमति नहीं है| उसके लिए अलग नियम है|

अब देखते है क्या है इसके कानूनी और सामाजिक मायने:

खुदरा व्यापार को लेकर जो मूल आशंकायें छोटे खुदरा व्यापरियो से जुड़ी हुई है| लोगो को डर है कि इस से छोटे व्यापारी बेरोजगार हो जायंगे| खरीद से लेकर बिक्री तक कि नई तकनीकी और तौर तरीके कुछ न कुछ रोजगार तो शायद खत्म करें मगर साथ ही नयी तकनीकी नए तरह के रोजगार लाएगी जैसे कि कंप्यूटर और मोबाइल के आने से कुछ रोजगार खत्म हुए और कई नए शुरू हुए|

पहली बात हो यह है कि इनकी बिक्री कि दूकाने केवल बड़े शहर में खुलेंगी मगर इनको ये अनुमति दी गयी है कि ये अपनी खरीद कि दुकाने कहीं भी खोल सकते है| पहले खरीद की दूकान पर चलते है| यहाँ पर जो खरीद किसान से होनी है, वहाँ पर किसान और साधारण ग्राहक के बीच साधारणतः ३-४ बिचौलिए होते है, जो कि इन कॉर्पोरेट खुदरा व्यापारियों के यहाँ नहीं होते| ये लोग सीधे किसान और उत्पादक से माल खरीदते है| इस समय में रिलाइंस, मोर, बिग बाजार वगैरा कई कॉर्पोरेट खुदरा व्यापारी है| ये सभी अपना लाभ उठाने के लिए उत्पादक से सीधे ही बड़ी मात्र में माल खरीदते है और इस बड़ी मात्र उठाने के लिए ये लोग उन उत्पादकों में से भी बड़े उत्पादक और किसान के पास आते है| बिचौलियों (लोकप्रिय भाषा में थोक व्यापारी)के हिस्से जो लाभ बंट जाता था, वो अभी इन कॉर्पोरेट खुदरा व्यापारियों को पहुच जाता है| मेरी निजी मान्यता है कि इसका बड़ा हिस्सा इनके अपने लाभ खाते में जाता है न कि मूल उपभोक्ता को जाता है|  इस क्षेत्र में विदेशी निवेश आने से लाभ यह होगा कि कॉर्पोरेट खुदरा व्यापारियों में आपसी प्रतिस्पर्धा बाद जायेगी| वैसे अभी लगता यह है कि नए आने वाले विदेशी खुदरा व्यापारी या तो इन्ही पुराने देशी कॉर्पोरेट खुदरा व्यापार को खरीदेंगें अथवा इस समय चल रहे इनके थोक व्यापार खुदरा व्यापार में बदल दिए जायंगे| ये लोग अपने ब्रांड को बढ़ाने के लिए क्वालिटी पर ध्यान देंगे और इस तरह उत्पादकों को भी क्वालिटी पर ध्यान देना होगा| इस खेल में बड़े और मझोले उत्पादकों को अधिक लाभ होगा|

छोटे और सीमान्त किसान और अन्य उत्पादक विकास की इस दौड में एक बार फिर से बाहर ही छोड़ दिए गए है| छोटे किसान उत्पादक बिचोलियो (लोकप्रिय भाषा में थोक व्यापारी) के माध्यम से केवल ‘फुटकर” खुदरा व्यापरियो को ही माल बेच पाएंगे| जब कॉर्पोरेट खुदरा व्यापारी खरीद के समय मोल भाव कर सस्ते में माल खरीदेंगे तब सम्भावना है कि ये बिचौलिए अपने खरीद मूल्य और गिरा देंगे| मेरे विचार से उन लोंगो का ध्यान रखने के लिए अमूल जैसा एक नया सहकारी आन्दोलन खड़ा हो और सरकार तुरंत मंडी क़ानून और ऐसे ही अन्य कानूनों में भी सुधार करे| इस समय आवश्कता है कि देश भर में कोल्ड स्टोर खोलें जाएँ, जिनका अधिकतर प्रतिशत उत्तर प्रदेश के आगरा में ही स्तिथ है| सरकारी गल्ले (सरकारी वितरण प्रणाली) की पूरी व्यवस्था में सुधार किया जाये| देश भर में सामान की आवाजाही पर लगी रोकें हटाई जाएँ| एक बड़ी बात यह भी है कि देश भर में ट्रकों का आवागमन शहरी क्षेत्रों में दिन के समय लगभग प्रतिबंधित है, इस कारण परिवहन लागत बढ़ जाने से माल महँगा हो जाता है| देश भर में सरकार ने चुंगी तो काफी समय पहले समाप्त कर दी है, मगर कई तरह के टोल टैक्स, पुलिस की हफ्ता वसूली, गुण्डा टैक्स और नेतागर्दी मूल्यों को उपभोक्ता के लिए महँगा कर देती है और उत्पादक को माल दूर तक भेजने से रोकती है|

अब बिक्री की राह पर देखते है| कल्पना में एक तस्वीर उभर कर सामने आती है| एक बेहद बड़ी दूकान, तरह तरह का माल, बढ़िया मलट (पेकिंग), खुद चुनाव करने की आजादी, सुई से लेकर लंबी कार तक उसमें सजी हुई, आपको सहायता करने के लिए सजा धजा सहायक पलक पावडे बिछाकर तैयार| आप माल लीजिए, क्रेडिट कार्ड दिखाइए, माल आपकी गाड़ी में या फिर घर तक भी| मगर साहब, कहानी अभी शुरू हुई है| अभी तो पिछले दस पन्द्रह साल में हमारे भारतीय कॉर्पोरेट खुदरा व्यापारी बाजार पर पकड़ नहीं बना पाए| इनकी दुकाने विदेशी स्टाइल में सजी हुई है और आज तक बाजार पर पकड़ नहीं बनी है| सबसे बड़ी बात, हमारे यहाँ पानी हर कोस पर, बाणी दस कोस पर बदल जाती है| स्वाद तो क्या कहिये हर घर में अलग है| और ये स्वाद खाने, कपडे, रंग, ढंग सब में बदल जाता है| पूरे भारत को एक ढंग से माल नहीं बेचा जा सकता| अब या तो ये बड़े खुदरा वाले हमारा रंग ढंग बदल दें या हम इन्हें बदल ही देंगे| मगर यहाँ पर ध्यान रखने की बात है वो विज्ञापन और प्रचार दुष्प्रचार के हथियारों के साथ आयेंगे| हमारे आलू टिक्की को खराब बता कर आलू टिक्की बर्गर बेचने जैसा कुछ अभी होगा|

इस सबसे निबटने के लिए हमारे खुदरा व्यापारी से लेकर गली गली घूमने वाले फेरीवालों तक सबको धीरे धीरे बदलना होगा| बदलाब आ रहा है, पहले खुदरा व्यापारी कभी कभी आपसदारी में ही सामान आपके घर पहुचाते थे, आज लगभग हर खुदरा व्यापारी आपके घर सामन पहुँचाने की व्यवस्था रखता है| दिल्ली में तो कम से कम ठेले पर भी ज्यादा सफाई लगने लगी है| बोलचाल से ढंग बदल गए है| आज जब बिल मांगते है तो  ये बनिया भाई, भाषण नहीं सुनाते| बहुत से खुदरा व्यापारी आज टैक्स पैड माल बेचने का दावा करते है और बिल भी देते है| इस समय ये एक बेहद जरूरी बात है कि छोटे भारतीय उत्पादक/खुदरा व्यापारी अंपने ब्रांड विकसित करें और उन्हें देश व्यापी बनाने से पहले अपने मूल क्षेत्र में बेहद लगन के साथ प्रचारित करें| मैं अलीगढ शहर के अपने अनुभव से बता सकता हू कि लोग एकल ब्रांड की दुकानों को अधिक पसंद करते है; अलीगढ के अपने ब्रांड जलालीवाले, कुंजीलाल, ए-वन, बावा, आदि आज भी हल्दीराम का मुकाबला कर पा रहे है| मल्टी ब्रांड में आप अलीगढ में सहपऊ वालों का मुकाबला आसानी से नहीं कर सकते| आज इस तरह के स्थानीय ब्रांडों को अपना स्तर बनाये रखने पर और अधिक ध्यान देना होगा|

अगर हम ध्यान दें तो सर्वाधिक घाटे में हमारे आढ़ती और थोक व्यापारी रहेंगे| पूरी योजना उन्हें समाप्त कर देगी| भले ही राजनितिक लोग देशी खुदरा व्यापार के खात्मे की बात कर रहे है, मगर सच्चाई यह है कि राजनीति में बढ़ चढ कर हिस्सा लेने वाला यह तबका समाप्ति कि ओर है| इस समय नए आने वाले कॉर्पोरेट और विदेशी खुदरा व्यापारी इसी थोक व्यापार के हिस्से को खत्म कर कर अपना लाभ बनाने का प्रयास कर रहे है| मगर अभी देखना यह है कि कहीं हमारे गांव देहात के देशी खरीद बाजार की समझ न होने के कारण ये नए खुदरा व्यापारी भी कहीं इसी थोक व्यापारी तबके पर निर्भर न हो जाएँ|

यह सही समय है कि भारत का खुदरा अपने तरीके सुधार ले और बिचोलिये को खत्म करने के उपाय कर ले| चाहे यह सहकारी खरीद हो या लागत में कमी के उपाय| सरकार उनका साथ तभी दे पाएंगे जब कि वो सरकार के लिए आय का स्रोत हो और उनकी कर अदायगी कार्पोरेट खुदरा क्षेत्र से अधिक हो|

इस नए विचार से सबसे अधिक हानि बिचौलियों से भी अधिक उन गुमनाम लोगों को है जिनका काम अब एक बड़े स्तर पर मशीन करेंगी| पल्लेदार, रेहडी वाले और साधारण मजदूरों का एक बड़ा तबका अब और प्रकार के कार्यों के लिए रूख करेगा| मगर जो कुछ भी एक रात तो क्या एक साल में भी कुछ नहीं बदलेगा|

 

 

 

Advertisement

कृपया, अपने बहुमूल्य विचार यहाँ अवश्य लिखें...

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.