नॉन-प्रॉफ़िट!!
सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर अक्सर वितृष्णा भरी चर्चा होती है| खासकर तब जब वह अपनी किसी सेवा के लिए किसी प्रकार का मूल्य चुकाने या खर्चा उठाने के लिए कहें या कुछ दान दक्षिणा माँग लें| यह चर्चा सबसे पहले वह लोग करते हैं जो मुफ़्तखोरी के खिलाफ है| यह भी देखा जाता है कि मुफ़्तखोर विरोधी यह लोग, नॉन-प्रॉफ़िट, सामाजिक संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को मुफ़्तखोर मान कर अपने विचार रखते हैं|
सदा सरहनीय है कि सामाजिक कार्यकर्ता निजी रूप से बेहतर कार्य करें| परंतु क्या वह समाजसेवा के लिए घर-फूँक तमाशा देखें? क्या उनके पास भरने के लिए एक पेट, ढंकने के लिए के तन और सुरक्षा के लिए एक सिर नहीं है?
यह समझने की बात है कि समाज सेवा क्षेत्र किस प्रकार काम करता है|
आम तौर पर हम कल्पना करते हैं, सही प्रकार के समाज सेवक को झोलछाप, फटेहाल होना चाहिए|
आम धारणा में अक्सर अपने पैसे से भंडारा करतें, प्याऊ लगवाते, लक्ष्मी-नारायण मंदिर बनवाते, धर्मशाला बनवाते, विद्यालय बनवाते धन-कुबेर सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता हैं| परंतु ऐसा नहीं है| यह सभी काम यश, कीर्ति, सामाजिक स्तरता और आजकल कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व कानून के कारण हो रहे हैं|
वास्तव में मुझे वितृष्णा होती है जब किसी बड़ी कंपनी का विज्ञापन देखता हूँ, हमारा उत्पाद खरीदकर आप शिक्षा, स्वास्थ्य आदि आदि में योगदान देते है क्यों कि हमारे हर उत्पाद की बिक्री पर इतना इतना पैसा इन अच्छे कामों पर खर्च होता है| यह खर्च करना उनका कानूनन सामाजिक दायित्व है और ऐसा न करने पर कानून अपना काम करता है| मात्र इस दान दक्षिणा के लिए हमें उनका उत्पाद खरीदने की कोई आवश्यकता नहीं है| अपने कानूनी दायित्व का उत्पाद के प्रचार के लिए प्रयोग करना मुझे उचित प्रतीत नहीं होता|
राष्ट्रीय अन्तराष्ट्रिय धन कुबेर इस प्रकार के प्रचार समाचार आदि के रूप में प्रचारित करने में सफल रहते हैं कि वह अपनी संपत्ति का बड़ा प्रतिशत सामाजिक कार्यों में लगा रहे हैं| अक्सर ही ऐसा उनके स्वयं के नियंत्रण वाले “सामाजिक संस्थान” के माध्यम से लिया जाता है| प्रायः यह “सामाजिक संस्थान” उनके नियंत्रण वाले व्यवसायों के कानूनी सामाजिक दायित्वों का निर्वाहन भी कर रहा होता है| दोनों प्रकार के स्रोतों से आया धन, कानूनी सामाजिक दायित्व, यश, कीर्ति, प्रचार, प्रसार, व्यक्तिव निर्माण, सामाजिक झुकाव, राजनैतिक लगाव, और कानूनी बदलाव आदि काम आता है|
सामाजिक संस्थान प्रायः सोसाइटी, ट्रस्ट या कंपनी के रूप में काम करते हैं| आम धारणा के विपरीत, अधिकतर महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थान कंपनी होते हैं और आम प्रचलित नॉन-प्रॉफ़िट शब्द नॉन-प्रॉफ़िट कंपनी के लिए प्रयुक्त होता है जिसे आम समझ के लिए नॉन-प्रॉफ़िट संस्थान कहा जाता है|
मूल बात है कि यह संस्था आय उत्पन्न करते हैं परंतु लाभ नहीं| लाभ और आय का यह अंतर ही इस पूरे मुद्दे का मूल है|
सोसाइटी, समाज, सभा आदि का गठन प्रायः सदस्यों के आपसी हितों के संदर्भों मे किया जाता है| इनमें दान लेकर सामाजिक काम करने से लेकर, किसी व्यवसाय से धनार्जन करकर उस धन से सामाजिक कार्य करना शामिल है| मोहल्ला सभा, जाति सभा, मंदिर सभा, धर्मशालाएँ, आदि इस प्रकार के सोसाइटी होते हैं| बहुत से लॉबी समूह सोसाइटी हैं, जो संबन्धित व्यवसाय के हित साधन में काम करते हैं| पर्यावरण सुरक्षा, मानवाधिकार, वनवासी कल्याण आदि महत्वपूर्ण काम भी सोसाइटी कर रही हैं| भारत का क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड भी एक सोसाइटी है और हम सबकी आँखों के सामने पूर्ण व्यावसायिक तरीके से काम करते हुये भी यह आयोन्मुखी संस्था लाभोंमुखी संस्था नहीं है|
जब उद्देश्य में शुद्ध रूप से आपसी लाभ की भावना हो तो सहकारी समिति आदि का गठन होता है जो एकदम अलग बात है|
ट्रस्ट या न्यास का गठन किसी विशेष वर्ग के लाभ के लिए किया जाता है| इनमें से पब्लिक ट्रस्ट आम जनता या बड़े जन समूह के हिट और लाभ के लिए काम करते हैं| पब्लिक ट्रस्ट प्रसाद बेचने से लेकर अन्य प्रकार के लाभप्रद (आयप्रद पढ़ें) कार्य करते हैं और इस प्रकार होने वाली कमाई या आय को आम जनता के हित में निवेश या खर्च करते हैं| न्यासी अवैतनिक और वैतनिक हो सकते हैं, परंतु किसी न्यासी को लाभांश यानि लाभ में से हिस्सा नहीं मिलता|
सामाजिक क्षेत्र का सबसे बड़ा समुदाय वर्तमान कंपनी कानून की धारा 8 या पुराने कंपनी कानून की धारा 25, के तहत गठित कंपनी हैं| यह सामाजिक यानि नॉन-प्रॉफ़िट कंपनियाँ, वाणिज्य, व्यापार, कला, विज्ञान, खेल-कूद, शिक्षा, अनुसंधान, सामाजिक कार्यों, धर्म, दान-दक्षिणा, पर्यावरण, आदि आदि काम करतीं हैं| इनमें दिल्ली जिमख़ाना क्लब, रिलायंस रिसर्च इंस्टीट्यूट, इंडियन मोशन पिक्चर प्रोड्यूसर असोशिएशन, लघु उद्योग भारती, विश्व गुजराती परिषद, यूनाइटेड न्यूज़ इंडिया, ब क बिड़ला फ़ाउंडेशन, आदि बहुत से उदाहरण आप यहाँ (https://www.mca.gov.in/MCA21/dca/RegulatoryRep/pdf/Section25_Companies.pdf) ढूंढ सकते हैं| 1887 में गठित अलीगढ़ की भारतवर्षीय नेशनल असोशिएशन (U99999UP1887NPL000012) अब तक काम कर रही शायद देश में सबसे पुरानी नॉन-प्रॉफ़िट कंपनी है|
आम कंपनी से अलग इन्हें अपना लाभांश बांटने की अनुमति नहीं होती| यह अंतर ही इन्हें आम कंपनी से अलग करता है| शब्दों का हेर-फेर है| जब हम किसी भी वस्तु या सेवा को बेचकर या प्रदान कर कर उसके बदले कुछ धन जुटाते हैं तो इस से हमें कुछ आय होती है| नॉन-प्रॉफ़िट के मामलों में, खर्च से अधिक आय तो हो सकती है परंतु उसे कानूनन लाभ नहीं कहा जा सकता और इस लिए उस में से लाभांश नहीं दिया जा सकता|
यदि हम खर्च से अधिक आय को लाभ कहते हैं तो इस लाभ पर मूलतः निवेशक का अधिकार बनता है| आम भाषा में यह निवेशक सोसाइटी के सदस्य, अधिकतर मामलों मे न्यास के न्यासी, और कंपनी के अंशधारक होते हैं| आम लाभकारी संस्थान या कंपनी के मामलों में इन्हें लाभांश मिलता है|
अक्सर प्रश्न उठता है कि फिर कोई इन लाभांश रहित कंपनी में निवेश क्यों करेगा और निदेशक क्यों बनेगा? निवेश सामाजिक यश, कीर्ति, सदेच्छा, प्रतिष्ठा के लिए किया जाता है| बहुत से नॉन-प्रॉफ़िट में सदस्यता शुल्क आकर्षक रूप से अधिक होता है| निदेशक तथा अन्य कार्यकारी अधिकारियों व कर्मचारियों को बढ़िया वेतन भत्ते दिये जाते हैं| वरना कोई इतने महत्वपूर्ण, बुद्धि और श्रम युक्त कार्य क्यों करेगा|
सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य वह नॉन-प्रॉफ़िट करते हैं जो शुद्ध सनकीपन के कारण अस्तित्व पाते है और बड़े उद्देश्य पूरे करते हैं| इनके संस्थापक या निदेशक प्रायः खाली कम वेतन पर पूर्णकालिक या अल्पकालिक रूप से इन संस्थानों को समय देकर महत्वपूर्ण काम अंजाम देते हैं|
यदि आप किसी भी संस्था के काम से प्रभावित और प्रसन्न है और वह संस्था दान स्वीकार करती है तो उसे दान अवश्य दें जिससे वह उसके अधिकारी व कर्मचारी बेहतर वेतन भत्तों के साथ प्रसन्नता पूर्वक बेहतर काम कर सकें| इस बात से गच्चा न खाएं की यह बढ़िया काम करने वाला संस्थान अपनी किसी सेवा को महंगे दाम में बेचता है| उदाहरण के लिए, किसी विशेष कला का प्रचार करने वाला संस्थान उस कला को महंगे दाम में बेचकर कलाकार को बेहतर लाभ, सुविधा, प्रशिक्षण, व जीवनशैली दे रहा हो, या आपको मुफ्त ज्ञान बाँटने वाली संस्था कुछ ज्ञान किसी दूसरे को महंगे दाम पर दे रहा हो, या आप बढ़िया खादी महंगे दाम पर ले रहे हों|
अच्छे कामों का हिस्सा बनते रहें|