दिल्ली में गर्मी के रंग


दिल्ली में गर्मी का बड़ा रंग रहता है| 

छब्बीस जनवरी को दिल्ली में गर्मी का डर किसी इल्ली की तरह तितली बनने के लिए जोर मारने लगता है| उसके दो चार दिन बाद बीटिंग रिट्रीट तो खैर होती ही सर्दी की विदाई के लिए है| दिल तय नहीं करता कि सर्दी जाने का गम किया जाए कि गर्मी आने कि तैयारी| फिर भी हौसला रखा ही जाता है| वातानुशीलन और वातानुकूलन के इंतजमात दुरुस्त करने की खानदानी हिदायतें दिमाग में कुलबुलाने लगती हैं| मगर सर्दियों वाला आलस सिर पर तारी रहता है| 

फिर अचानक जब कोई कहे, आज पुरानी दौलत का चाट नहीं दिखी, तो एक हाथ पंखा झलने पर लग जाता है| यह दिल्ली की नजाकत है कि इस बेवक्त के मौसम को ऋतुराज बसंत कहकर सिर माथे लगा लिया जाता है| कुछेक भटकी जवानियों और सांस्कृतिक बुढ़ापों के अलावा इस मौसम का कोई पूछने वला नहीं| यह लोग अपने वक्त और उम्र के तकाजे के साथ दिल्ली के भीड़भाड़ वाले वीरानों में बसंत मना लिया जाता है| बूढ़ों की रूमानी यादों के सहारे जवान अपनी रूमानियत की नींव रखते हुये, गर्मी का शुरुआती जश्न मना लेते हैं| 

इन्हीं दिनों, कुछ खास रूमानी इलाकों में पहले पलाश और फिर अमलताश रंग बिखेरते हैं और दिल्ली के गिने चुने रंगमिज़ाज इनके सुर्ख और जर्द रंगों में अपनी ज़िंदगी में कुछ रंग भरने की आह नुमा बातें करते हैं| 

मौसम का भी क्या है कुछ मनचलों की बातें है वरना तो घर से निकले गाड़ी में बैठे, गाड़ी से निकले दफ़्तर जा बैठे वाली बदरंग, बदनुमा, बदजात ज़िंदगी जीने वालों के लिए तो बस सोहर से शमशान एक ही मौसम रहता है| वैसे तो सोहर और त्रियोदसी जैसे शब्द भी दिल्ली में नहीं रहते| 

अगर होली की आमद न हो तो कोई इसे न पूछे| होली भी इनकी क्या कहिए, बहुत हुआ कि दो चार फिल्मी इल्मी होली गीत सुन लिए, कहीं किसी शास्त्रीय कड़ी टपक गई तो चैती, होली के साथ गाँजा और ठंडाई को बदनाम किया और विलायती के दो चार घूंट हलक से उतार लिए, कुछ बचा तो गुलाल का तिलक लगाकर दो चार छायाचित्र उतार लिए| 

उधर फिर अचानक एक दिन समाचार सुनाई देता है, आज का तापमान अड़तीस पार कर गया| दूसरी तरफ से हमारे गौरसिंह फरमाते हैं, अभी तो कई दिन तक बहुत काम है अगले हफ्ते आते हैं आपका पंखा, वातशीतक, वातानुकूलन सब दुरुस्त करते हैं| उन्हें जब आना होता है तब आते हैं और उलहना यह कि जब बुलाने का सही समय होता है हम बुलाते नहीं| खैर उसके बाद दिल्ली में किसे गर्मी याद आती है? किसी दिन पैदल बाहर निकालना पड़े तो जरूर उन लोगों का ख्याल आता है जो गर्मी में सड़क पर रोजी रोटी के लिए लगे होते हैं| 

कई बार लगता है कि दिल्ली में गर्मी का आना बड़े मान की बात है| जिसके घर में पंखा तक न हो, आपके घर के दरवाजे पर कहता है, आप ने वातानुकूलन चालू नहीं किया अभी, हम तो बिना वातानुकूलन के मरने भी न जाएँ|

जिन्हें खाने पीने को न निकलता हो वो भी एक बार पहाड़ का हवाई टिकट निकाल कर कम से कम रद्द तो करवा ही देते हैं, कम से कम अपनी नौकरनी को दिखा ही देंगे कि बस जा ही नहीं पाये वरना तो इस साल का पच्चीसवाँ रासरंग तो पहाड़ वाले बंगले पर ही करने वाले थे| जिन्हें कुछ छूट मिल जाती है वो किसी सप्ताहांत कुछ न हो तो कहीं आसपास तक चक्कर आते हैं| 

इस सब के बाबजूद गर्मी का रंग बना रहता है| तरह तरह से शर्बत दुकानों में सजते हैं, लस्सी की फरमाइश रहती है, फ़ालूदा कुल्फ़ी के साथ न भक्षणे पर इज्जत का फ़ालूदा होने का खतरा रहता है| 

गर्मियों में सबसे नापसंद बात होती है बच्चों की छुट्टियाँ| उन्हें हिल्ले से लगाए रखने के लिए विद्यालय गृहकार्य के नाम पर बालशोषण थमा देते हैं| होता तो दरअसल यूँ हैं कि माँ बाप ढूंढते हैं वह विद्यालय जहां इतना काम मिले कि औलाद कहीं घूमने जाने के लिए न कह दे| फिर भी न माँ बाप का दिल मानता हैं न विद्यालय वालों की तिजोरी, कि गर्मी के तम्बू (समर कैंप, ही पढ़ें) के नाम पर छुट्टियों को वो सरकारी काम बना दिया जाता है जिसे कोई हाकिम नहीं मिलता| आपको नोएडा वाले रोहिणी और रोहिणी वाले द्वारका में गर्मी की छुट्टियाँ बिताने की शाही रस्म करते नजर आ जाएँगे| 

अपना इतना अपमान होते देख गर्मियों का पारा क्रोध से चढ़ता चला जाता है| 

निगाह मेघदूत पर लगी रहती हैं, मौसम के तमाम भविष्यवक्ता, अपनी पत्रा और रडार लेकर बैठ जाएंगे| अखबार में मानसून के नक्शे छपेंगे| असम की बाढ़ और मुंबई की बारिश की रस्मी खबरे खाने के साथ सजाई जाएंगी|

इस वक्त दिल्ली में ढंग के आम आमद होती है और कुछ दिन आम के कसीदे पढ़े जाते हैं| जामुनों को परे सरकाया जाता है, फालसे को पहचानने से इंकार कर दिया जाता है|

तभी एक दिन कुछ बारिश होती है और दिल्ली वाले राहत कि सांस लेते हुए शिकायत करते हैं कितना कीचड़ हो गया सड़क पर, पानी इतना भर गया है और जाम तो बस पूछो मत|

गर्मी रह रह कर लौटती है, जब तक कि सर्दी न आने लगें|

Advertisement

कृपया, अपने बहुमूल्य विचार यहाँ अवश्य लिखें...

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.