घृणा – समाज और राजनीति


घृणा भारतीय समाज और राजनीति का स्थाई भाव रहा है| इस घृणा के ऐतिहासिक कारण बताए जाते हैं| हम अपनी घृणा और प्रेम के लिए अपने कारण चुन लेते हैं| हमें याद रहता है कि किस राजवंश ने सिख गुरुओं को कष्ट दिए, परन्तु यह भूल जाते हैं कि हिन्दू संत मीराबाई को किस राजवंश ने कष्ट दिए| हम कुतर्क करते समय, मीराबाई के कष्ट पारवारिक बताकर मौन रह जाते हैं तो प्रह्लाद के कष्ट देने वाले पिता को हम सहस्त्रब्दियों से बुरा कहते रहे हैं| यहाँ तक कि राम के पिता दशरथ के प्रति हमारी राय से स्वयं राम को भी कष्ट होने लगता होगा| 

हमारे अल्पकालिक इतिहासविज्ञ इस बात पर आपत्ति रखते हैं कि पाठ्य पुस्तकों में मुग़ल वंश पढ़ाया जाता हैं, परन्तु शिशोदिया वंश नहीं पढ़ाया जाता, पर आपने तो कछवाह वंश भी नहीं पढ़ा|  मुझे विश्वास हैं, आपको एक बारगी उदयपुर-चित्तौड़ का शिशोदिया वंश या आमेर का कछवाह वंश याद नहीं आएगा, क्यों? क्यों कि घृणा की राजनीति को इन वंशों से नहीं इनके कुछेक वंशजों के ही लेना देना है| 

आखिर इन वंशों को याद क्यों करना है? क्या मात्र इसलिए कि इनका इतिहास मुग़लों के इर्दगिर्द घूमता है? इन दोनों वंशों का गौरवशाली इतिहास है, जिस पर हम बात नहीं करना चाहते| हमारे पास याद रखने के लिए गौरवशाली हिन्दू वंशों की कोई कमी नहीं है| अगर केवल मुग़लों को पढ़ाए जाने के ऊपर कोई कोई टिपण्णी दर्ज़ करनी है तो उनके समर्थकों या विरोधियों से आगे बात करने में हम क्यों असफल हैं?

हमने मौर्य, गुप्त, आदि वंश भी वंशक्रम के साथ पढ़े हैं| हम क्यों नहीं पूछते कि हमको उनके वंशक्रम क्यों याद नहीं? दिल्ली पर सर्वाधिक काल तक राज करने वाले तोमरों का ज़िक्र क्यों नहीं उठता? वास्तव में देखा जाए तो वर्धन वंश के बाद सीधे सल्तनत की बात होती है – ग़ुलाम वंश की बात होती है? अगर किसी को दिल्ली केंद्रित इतिहास की बात करनी है तो तोमरों को बात करनी चाहिए थी,पर हम नहीं करते| आखिर तोमर वंश का शांत सरल इतिहास हमारी घृणा ग्रंथि को पोषित नहीं करता| हम तोमरों और दिल्ली सल्तनत की कड़ी, पृथ्वीराज चाहमाना की बात कर कर रह जाते हैं| इसके बाद तोमर बाद में दिल्ली सल्तनत के मित्र के रूप में दिखाई देते हैं| 

भारत के इतिहास के नाम पर हम दिल्ली केंद्रित रहे हैं| इसका कारण दिल्ली को भारत का केंद्र और इसकी सत्ता को भारत की केंद्रीय सत्ता मानना मात्र नहीं है| छः सौ वर्ष राज करने वाले अहोमवंश का काल दिल्ली एक किसी भी सल्तनत और  मुग़ल काल के समलकीन और उनसे से लम्बा है| इसी समय के विजयनगर साम्राज्य की भी बात आम जन तक नहीं पहुंचती| 

इतिहास प्रायः बेहद अच्छे या बेहद बुरे शासकों को याद रखता है| परन्तु इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी शासन तंत्र और राजवंश अपने से ठीक पहले वाले राजवंश की चरित्रहत्या करना चाहता है| इस प्रकार उस वर्तमान शासन की छवि जनमानस में श्रेष्ठ बनाये रखने में मदद मिलती है| ब्रिटिश राजवंश के लिए मुग़ल वंश का चरित्र हनन आवश्यक था| १८५७ में जब उन्होंने देखा कि कमजोर और नाकारा हो चुके मुग़ल वंश का झंडा उस समय तक भी भारत का बुलंद प्रतिनिधि है, तो उसका चरित्र हनन और उसके विरुद्ध घृणा ब्रिटिश साम्राज्य के हित में थी| आज भी यह घृणा राजनैतिक लाभ दे रही है| 

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