जब मैं दहेज़ आदि कानूनों के पुरुष विरोधी होने के बारे में सोचता हूँ, वह पूर्णतः जली हुई स्त्री देह सामने आ जाती है| उस मामले में कोई क़ानूनी नहीं हुई थी| फिर भी यह क़ानून कुछ काम तो करता ही होगा| फिर देखता हूँ – दहेज़ की सूची बनाते लड़के लड़कियों को| एक मित्र ने कहा, अगर संपत्ति में हिस्सा न मिले तो कम से कम दहेज़ तो मिले| उन्हें एक ही सुधार चाहिए था – दहेज़ बेटी के नाम से हो|
स्त्री अधिकार और सुरक्षा क़ानूनों ने बहुओं के हित साधे, परन्तु बेटी के लिए अगर यह चुप रहा है| कितनी बेटियाँ संपत्ति में हिस्सा मांग सकती हैं| अनुमान के अनुसार, दहेज़ वाले झूठे मुक़दमे संपत्ति वाले सच्चे मुकदमों से अधिक हैं|
ससुराल में स्त्री की पहुँच बिना दहेज़ हो पा रही है, परन्तु मायके में स्त्री का स्वागत संपत्ति अधिकार को छोड़ देने के बाद ही संभव है| अगर बेटी न माने तो बेटी दामाद खलनायक बन जाते हैं| बेटियाँ यह भी जानती हैं कि मायका साथ न रहे तो ससुराल में उनकी स्तिथि कमजोर पड़ सकती है| अधिकतर मामलों में बेटियाँ माँ बाप कि त्रियोदशी से पहले संपत्ति का अधिकार छोड़ देती हैं|
स्त्री समर्थक क़ानूनों और बहु समर्थक विचारों ने दामाद कि स्तिथि को बेहद ख़राब किया है| दामाद बेटा तो कहलाने लगा पर उसकी स्तिथि माटी के आदरणीय माधो से घट कर घर के नालायक़ बेदख़ल बेटे की सी हो गई है| न घर के निर्णय में उसका कोई स्थान है, न संपत्ति में| ससुराल में जो देखता है, टॉमी टॉमी पुचकारता रहता है| बेचारा दुम न हिलाए तो दुत्कारा जाता है| दामादों की सबसे अधिक दुर्गति तब होती है जब ससुराल वाले उसे फूफा बना कर कौने में बिठा देते हैं| अगर बेचारा चाय भी माँग ले तो सोचता है कि दहेज़ मांगने का आरोप न लग जाए|
दहेज़ देकर दामाद खरीदना कब शुरू हुआ मुझे ज्ञात नहीं| परन्तु दामादों के लिए वह कोई खुशनसीब दिन तो न रहा होगा| पहले नौकरी पेशा दामाद खरीदे जाने लगे, बाद में बेटी की ख़ुशी के नाम पर दहेज़ आने लगा| लालचियों ने सम्मान तो ख़ैर छोड़ ही दिया, हत्यारे भी बने| बुरा हाल अब ये कि सारे दामाद टॉमी बने बैठे हैं| सात साल तक गले में ३०१ब का फंदा लटका रहता है| यह धारा स्त्री की हत्या की नहीं मृत्यु की बात करती है| परन्तु दामाद के लिए जरूरी रहता है कि किसी भी साढ़ेसाती से बचा रहे| पत्नी को मायके जाने से मना करने से लेकर पत्नी को मायके अधिक भेजना तक कुछ भी दहेज़ के आरोप के लिए काफी होता है| मायके गई पत्नी के वियोग में लिखा विरह गीत भी यातना का साक्ष्य बन सकता है| इस सब के लिए क़ानून कचहरी होना जरूरी नहीं| कोई भी दामाद मात्र आरोप की यातना से भी सिरह उठता है| जो भुगत चुके हैं, जानते हैं कि जमानत करवा पाना कठिन होता है| कोई समझदार वकील दामाद का मुकदमा मजबूत नहीं मानता|
पहले ज़माने में जिस प्रकार ससुराल जाती बेटी को पति और ससुराल की सेवा का पाठ दिया जाता था| आधुनिक धीर गंभीर माता पिता पुत्र को सलाह देते हैं कि हे लाल कुछ ऐसा न कर बैठना कि कारागार में बुढ़ापा कटे| कुछ परिवार बहू बेटे को इसलिए घर से विदा कर देते हैं कि कोई कहनी-नकहनी बात के चक्कर में थाना चौकी से बुलावा न आ जाए| बहू- बेटा भुगतें| जो बूढ़े माता पिता बेटियों के घर का खाना पानी न छूने की बात आज भी मानते हैं, बेटों के घर इसलिए नहीं जाते कि बेटे की ससुराल से कोई पंगा न हो|
एक दामाद इस बात से हैरान रह गया कि उसकी पत्नी का नौकरी पर जाना भी किस्तों वाला दहेज़ है| पत्नी से कुछ और दिन नौकरी करते रहने का आग्रह उसे हवालात ले आया| घबराहट होने लगती हैं यह सब सुन-पढ़कर|
इसके बरक्स बहुएं खुश हैं, ससुराल वाले गुपचुप मानते हैं, बेटी की तरह बहू कहीं कुछ लेकर नहीं जायेगी| कमाकर लाए या मायके से, घर में कुछ लाएगी ही| बहू को पता है, उसकी आवाज का दम ससुराल के पास पड़ौस को भी रुला सकता है|
बेटियों के लिए खीर पूड़ी बनाने वाली माँ कि जगह बहू के लिए चाय नाश्ता बनाती सासों की संख्या गुपचुप क्यों बढ़ रही है?