भारत के हर घर और भोजनालय में अचार चटनी होते हैं| अलग अलग तरह के अचार खाने का चलन है| इसी प्रकार तरह तरह की चटनियाँ खाई जाती हैं – या कहें कि चाट पकौड़ी की पत्तलों के सहारे चाटी जाती हैं|
प्रायः इन्हें भोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जाता है| मगर भोजन अगर स्वादिष्ट बना तो भी अचार चटनी का महत्त्व कम नहीं होता| लगता है कि हमें लत है अचार चटनी खाने की|
अचार चटनी से भोजन में कैलोरी नहीं बढ़ती, परन्तु तत्त्व बढ़ जाते हैं| अगर आप अचार चटनी लेने से मना करें तो कई जड़ी बूटियों तथा अन्य सीमित मात्रा अवयवों के वंचित हो जाते हैं|
अगर चटनी न हो तो आप हरा धनिया, पोदीना, करीपत्ता, कमरख, अदरक, आदि अनेक तत्वों का समुचित उपयोग नहीं कर पाएं| इनकी सूची बहुत लम्बी हो सकती हैं अगर हम देश के हर घर में बनने वाली चटनियों का संग्रह करें जैसे मेरे घर में आप को करेले की चटनी मिल जाएगी| भांग की चटनी इसके सीमित प्रयोग से होने वाले लाभ प्रदान कर सकती है| इमली उत्तर भारत में चटनी के रूप में ही भोजन की थाली तक पहुँचती है तो कच्चा आम दक्षिण भारत में अचार के रूप में| कई प्रकार की मिर्च आदि चटनियों में ही खाने योग्य हो पाते हैं|
इसी प्रकार से बहुत सी मिर्च, करोंदे, लभेड़े, आम, अचार के रूप में ही खाए जा पाते हैं| तो बहुत से तत्त्व आदि अचार में प्रयोग होने के कारण खाए जाते हैं जैसे मैथी, कलोंजी, राई आदि| हींग वाला का तड़का मुझे बहुत प्रिय नहीं मगर हींग का अचार दिलखुश लगता है| बहुत से चटनियाँ है जो भुला दी गई हैं जैसे मैथीदाना की चटनी बेड़मी या कचौड़ी के साथ जानदार रहती है|
जिन घरों में बच्चों या बूढ़ों के कारण मिर्च आदि का प्रयोग मुख्य भोजन में नहीं होता, वहाँ अचार, चटनी और तड़के मिर्च के सीमित उपभोग की सुविधा प्रदान करते हैं| पुरानी दिल्ली का एक भोजनालय लौकी का अचार परोसता है तो आंवला अचार छोले भठूरे को रंगत देता है| शहर अलीगढ़ में मुर्गे का अचार भी मिलता है| तो चींटियो और टिड्डियों के अचार चटनी भी भारत भूमि में प्राप्त होते हैं|
अचार खाने से आप बेमौसम की सब्ज़ियों के पोषण को आप तक पहुँचाता है| आप आम तौर पर अनुपयोगी कूड़ा समझे जाने वाले भागों को भी अचार के रूप में प्रयोग कर सकते हैं जैसे फूलगोबी के डंठल| गाजर और कांजी का पानी वाला अचार होली पर भंग और ठंडाई से कहीं ज्यादा चलन में है|
आप के घर में कौन से अचार या चटनियाँ प्रयोग होते हैं?
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