विश्वबंदी ३० मई – भाड़ में जाओ
सरकार के कटु आलोचक तो तालाबंदी के पहले चरण से लेकर आज तक सरकार की हर कार्यवाही को “भाड़ में जाओ” के रूप में अनुवादित करते रहे हैं परन्तु मुझे और अधिकांश जनता को सरकार की प्रारंभिक सदेच्छा पर विश्वास रहा| यह अलग बात है कि मोदी सरकार अपना काम इतना अधकचरा करती है, उसका परिणाम ख़राब ही रहता है| तालाबंदी के पहले चरण के समय जैसे ही ज़मात का मामला उठा था तभी लगने लगा था कि सरकार भाड़ में जाओ कहने के लिए रास्ता निकाल रही है| परन्तु ईद पर सरकार को शायद कोई मौका न मिला| खैर, सरकार ने आज अधिकारिक तौर पर तालाखोल की अधिसूचना कुछ इस तरह जारी की है कि उसे सरलता से “भाड़ में जाओ” के रूप में अनुवादित किया जा सके|
पहला काम यह है कि आगे किसी भी प्रकार का निर्णय उसे न लेना पड़े – अधिसूचना के अनुच्छेद पाँच के हिसाब से सभी कड़े निर्णय अब राज्य सरकार को लेने होंगे| वैसे यह उचित था कि इस प्रकार का निर्णय प्रारंभ से ही राज्यों के अधिकार क्षेत्र में रहता जो संविधानिक रूप से सही भी था/है|
देश में बीमारों और मृतकों की संख्या तेजी से बढ़ी है और आगे की लड़ाई की कोई योजना सरकार की तरफ से सार्वजानिक नहीं की गई है| सब रामभरोसे हैं – शायद इसीलिए मंदिर मस्जिद सबसे पहले खोले जा रहे हैं| याद रहे दुनिया भर में सबसे अधिक संक्रामक बीमारियाँ धर्मस्थलों और तीर्थस्थलों से ही फैलती हैं| करोना के मामले में ईरान, इटली, इस्रायल, इण्डिया सभी के अनुभव इसकी पुष्टि करते हैं| धर्मस्थलों और तीर्थस्थलों के साथ ही शापिंग माल, होटल, भोजनालय सब खोले जा रहे हैं| शराब के बाद धर्मं, बाजार, भोजन और पर्यटन भारतीय अर्थ व्यवस्था का प्रमुख आधार हैं| सरकार पर इन्हें खोलने के बहुत दबाब रहा है वर्ना इन सब से जनता का अंधविश्वास उठने का खतरा था|
सभी से अनुरोध है कि नकरात्मक रहें और सुरक्षित रहे, सकारात्मकता की अति घातक परिणाम देती है|