उपशीर्षक – दूरियाँ दो गज रहें
बुतों बुर्कों पर आह वाले, वाह वाले, नकाब लगाए बैठें हैं,
सूरत पर उनकी मुस्कान आती हैं, नहीं आती, ख़ुदा जाने|
जिन्हें शिकवे हैं शिकायत है मुहब्बत है, हमसे दूर रहते हैं,
दुआ सलाम दूर की भली लगती हैं, गलबहियाँ ख़ुदा जाने|
जाहिर है छिपकर चार छत आया चाँद, चाँदनी छिपती रही,
ये दूरियाँ नजदीकियाँ रगड़े वो इश्क़ मुहब्बत के ख़ुदा जाने|
जो नजदीकियाँ घटाते हैं बढ़ाते हैं, अक्सर दोस्त नहीं लगते,
हम खुद से दूर रहते हैं इतना, रिश्ते-नातेदारियाँ ख़ुदा जाने|
महकते दरख़्त चन्दन के बहकते हैं, भुजंग गले नहीं लगते,
गेंदा, गुलाब, जूही माला में नहीं लगते, गुलोगजरा ख़ुदा जाने|
दूरियाँ दो गज रहें, नजदीकियाँ चार कोस, इश्किया रवायत है,
बात करते हैं इशारों से अशआरों से, तेरी नैनबतियाँ ख़ुदा जाने|