उपशीर्षक – संशय और भूकम्प
शुरूआती गर्मियों उदास छुट्टियाँ का रविवार बचपन में बड़ा भारी पड़ता था| रसोई पर कुछ खास करने का दबाव रहता तो अनुभव बदलते मौसम में गरिष्ट से बचने की सलाह देता| पंद्रह दिन में किस्से कहानी, किताबें, पतंगे, पतझड़ और खडूस हवाएं नीरस हो चुके होते – ककड़ी, खरबूजा, तरबूजा, खीरा, शर्बतों, और कचूमारों का सहारा भी कोई बहुत दिन तक आकर्षित नहीं कर पाता| दिल के राजा आम अभी बहुत दूर हैं| यहाँ तक आम पना भी अभी उपलब्ध नहीं दिखता|
लॉक डाउन में सबसे बड़ी बात यह कि घर में कोई सहायक नहीं, साफ़ सफाई, रसोई बाजार सब घर के लोगों को ही करने हैं साथ में अपने अपने दफ्तरों के काम भी करने हैं| टेलीविजन की आवाज कम करने के लिए कहने का खतरा भी गंभीर है – आखिर बच्चे क्या करें?
मित्रों के साथ दिन में राज्यों के मुख्यमंत्री राहत कोष में दिए गए योगदान को सामाजिक जिम्मेदारी खर्च न मानने की केंद्र सरकारी घोषणा पर चर्चा हुई| हम सब स्वयं-इच्छा योगदान को जबरन सरकारी कर बनाये जाने के सरकारी क़ानून से दुःख महसूस करते रहे हैं, इस बुरे दौर में सरकारी अहम् बेहद चिंता का विषय है| आम राय यह रही कि सरकार को इस बुरे दौर में राज्यों के मुख्यमंत्री राहत कोष में दिए योगदान को सामाजिक जिम्मेदारी खर्च मान लेना चाहिए था – कम से कम कुछ समय के लिए|
सुबह पंजाब में निहंग सिखों के समूह द्वारा पुलिस अधिकारी के हाथ काटने की घटना से बेहद अधिक दुःख हुआ| मुझे यह भारत के विरुद्ध और उससे अधिक मानवता के विरुद्ध युद्ध की घोषणा जैसा लगा| कट्टरपंथी हिन्दू मुस्लिम सिख देश को डुबो देंगे|
दिन घटना विहीन जा रहा था तभी मोबाइल हाथ से गिरा और आधी स्क्रीन चकनाचूर – काँच की एक छोटी किरच अंगूठे में लग गई| निकालने के देशी नुस्खे अजमाकर चुके ही थे कि मुआ भूकम्प आ धमका| बैठे ठाले यह भूकम्प मुझे ६ से ज्यादा का लगा और यह मानकर कि पहाड़ों या विदेश में केंद्र होगा मुझे ८-९ की आशंका हुई| भला भगवान् का, ३.१ का भूकम्प बताया जा रहा है| उसके बाद भयभीत दिल्ली का दिल बैठा हुआ लग रहा है| वैसे भी दिल्ली के दिल वाले इश्क, कबाब, शराब, शबाब, चाट पकौड़ी बिरयानी के अलावा डरपोक ही होते हैं|
भूकम्प के चलते कुछ दोस्तों रिश्तेदारों से बात हुई|