दिल्ली मेट्रो के इस स्टेशन पर मेट्रो के दरवाजे नहीं खुलते| इस स्टेशन हर गेट पर ताला है| यह स्टेशन आज देश में बढ़ती बेरोजगारी और उसके सामने सरकारों की बेचारगी का प्रतीक है|
पिछले कई दिनों से ऐसा हो रहा है| जो लोग मेट्रो स्टेशन पहुँचते हैं उन्हें पता लगता है कि दरवाजे बंद हैं| जो लोग मेट्रो में सफ़र करते हैं उन्हें इस स्टेशन पर ही पता चलता है कि दरवाजे नहीं खुलेंगे| अक्सर लोग इस उद्घोषणा को सुन नहीं पाते| कानों में मोबाइल की ऊँगली डाले लोग अपने दुर्भाग्य के आगे बेबस हैं| यहाँ तक कि नौकरी ढूंढने जाते लोग, बेटे की नौकरी की दुआ करते लोग, आरक्षण का विरोध और समर्थन करते लोग सब बेबस हैं| लाला की नौकरी को गाली देते लोग, कपड़े की दुकान पर मैनेजमेंट का जलवा दिखाते लोग, तकनीकि महारत से गैर-तकनीकि काम करते लोग नहीं जानते कि दरवाजे क्यों बंद हैं| किसी को नहीं पता, कि सरकार उनसे डरी हुई है| किसी को नहीं पता कि सरकार उनसे क्यों डरी हुई है| किसी को नहीं पता कि एक “क्या, क्यों, कैसे” उनकी जिन्दगी में बहार ला सकता है| वो सरकार के सामने देश के करोड़ो बेरोगारों के नुमाइंदे बन सकते हैं|
अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना इस देश का आदि धर्म है, राष्ट्रीय खेल है, राष्ट्रीय कर्तव्य है|
रेलवे को दो लाख श्रमशक्ति से वंचित कर घाटे में डाला जा रहा है| देश को पुलिस को दस लाख की श्रमशक्ति की कमी झेलने के लिए मजबूर किया गया है| देश के प्रधान न्यायालयों ने ही लगभग हज़ार श्रमशक्ति की कमी है| यहाँ तक कि देश की सेना में श्रमशक्ति की कमी की ख़बरें आती रहती है| देश के मात्र सरकारी संस्थान जिस श्रमशक्ति की कमी झेलने के लिए मजबूर हैं, लगभग उतने ही लोग देश में बेरोजगार हैं| क्या श्रमशक्ति के बिना देश तरक्की कर सकता है? शायद सरकारों को उम्मीद है किसी दिन देश के ये तमाम बेरोजगार हिमालय पर जाकर ताप करेंगे, ब्रह्मज्ञान अर्जित करेंगे और देश को तपशक्ति से विश्वशक्ति बना देंगे|
इस मेट्रो में यात्रा करते लोगों को पिछले पंद्रह दिन में नहीं पता कि दरवाजे क्यों नहीं खुलते| दरवाजे इसलिए नहीं खुलते क्योंकि सरकार को डर हैं कि आप नौकरी मांगने के लिए प्रदर्शन करते मुट्ठीभर देशद्रोहियों के साथ जाकर न खड़े हो जाएँ| वो मुट्ठीभर देशद्रोही जिनके साथ देश की संसद और विधानसभा में बैठा कोई शख्स नहीं हैं|
शौक बहराईची साहब का शेर है:
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा
अक्सर हम इसका मतलब नेता और अफसर से लगाते है, मगर इसका मतलब मतदाता से है| आप जो हैं, नेता इतने साल से आपको आपकी पहचान कराने में लगे हैं|
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सिलसिला जारी है…
सच कहा
हर तरफ बेरोजगारी हैं
हर तरफ लाचारी हैं ।
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