प्रकाश का मार्गदर्शक


उसे लगता हैं, आज सुबह नहीं होगी| सुबह के इन्तजार में उसे नींद नहीं आती| जागना चाहता हैं| मगर बाहर घना अँधेरा है| अँधेरे से डरता नहीं है| हर चीज की इज्ज़त अपनी होती है| विरोध और विद्रोह का अपना अपना ब्रह्म-मुहूर्त होता है| बिना ब्रह्ममुहूर्त प्रातः कैसी? किस अन्धकार का नाश| काल अपनी व्यवस्था में बंधा है|

सुबह की खुली हवा में साँस लेना चाहता है| उसे लगता है, सुबह नहीं होगी, मगर सोया भी तो नहीं जा सकता| नींद से अधिक सोना, कैसे संभव है| अनिद्रा से अधिक गंभीर बीमारी है – अति-निद्रा|

जब तक ब्रह्ममुहूर्त न हो, वह चारपाई से नहीं उठ सकता| उसे मात्र करवट बदलनी है| करवट की आवाज अँधेरे को चौकन्ना कर देती है| अँधेरा खर्राटे से नहीं डरता| खर्राटे तो अँधेरे को ध्रुपद गायन जैसे लगते हैं| अँधेरा करवटों से चिंतित और आहटों से भयभीत होता है| अँधेरा जब तक चिंतित नहीं, भयभीत नहीं, चुपचाप रीतता जायेगा, बीतता जायेगा|

अँधेरा विश्राम काल है, विश्रांति काल नहीं| अँधेरा योजना का समय है, अमल का नहीं| अँधेरा शक्तिसंचार का समय है, शक्तिप्रदर्शन का नहीं| अँधेरा सकारात्मक विचारों में विचरण का समय है|

शांत चित्त होना ही तो शक्ति की साधना है| निःशब्द है वह और शांत है मंद पवन| निर्गंध है वह और महकती है पवन|

उस ऊर्ध्व दिशा में देखो तो सही| वह जो अन्धकार में सबसे अधिक चमकता है| वह भोर का तारा है| भोर के तारे तो विलुप्त होना होगा| भोर के तारे का छिप जाना, लालिमा का आना है| अरुण की लालिमा| प्रकाश का सारथी| अँधेरा प्रकाश का मार्गदर्शक है|

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