ख्वाब स्वादिष्ट घुमक्कड़ी के…


हर किसी के सपने एक जैसे नहीं होते| हर किसी की अलग दुनिया, अलग जन्नत होती है| पहले को पुरानी पथरीली इमारतों में जन्नत दिखती है तो दूसरे को कश्मीर की वादियों में, तीसरे को पुड्डुचेरी के समुद्रतट पर, चौथे को जेसलमेर के रेट के टीलों में, पांचवे को अलीगढ़ के गिलहराज (हनुमानजी) मंदिर की आरती में, छठे को पंचसितारा होटल के आलिशान स्नानागार में, सातवें को कुचिपुड़ी नृत्य की भाव-भंगिमाओं में, आठवें को लावणी गायन में तो नवें को गोलगप्पे के पानी में…

जी हाँ, वो नवां मैं हूँ, जिसे गोलगप्पे के पानी में जन्नत दिखती है, जिसे छोटी छोटी बातों में जन्नत दिखती है.. छोटी छोटी खुशियों में जीवन दिखता है, छोटे छोटे दोहों में महाकाव्य  दिखते हैं| | मुझे जन्नत दिखती है.. छोटे पुराने शहरों में मौजूद खाने पीने की छोटी दुकान में, जंगलों में ताड़ी पीकर गाये जाते भील – भिलाला लोकगीत में, नहर किनारे की ठण्डी हवा में, पिलखुन की घनी छाँव में, साइकिल से पुराने शहर की सड़क छानने में|

भारतीय संस्कृति करोड़ों जीवंत संस्कृतियों का समुच्चय, समन्वय और संगति है| अगर आप बड़े की तलाश में दिल्ली का लालकिला, गोवा के समुद्रतट, संजीव कपूर का खाना, एवरेस्ट की चोटियों में ही जन्नत ढूंढते हैं तो आप गलत शायद न हो मगर आप आधारभूत संस्कृति को नजरअंदाज कर देते हैं जो आपके आसपास हर गली नुक्कड़ पर बिखरी पड़ी है|

बिना शक गोलगप्पे इस देश की साँझा संस्कृति हैं मगर गोलगप्पे का पानी या उसमें प्रयोग होने वाली “भरत” देश की साँझा संस्कृति नहीं है| देश के हर शहर के गोलगप्पे अलग स्वाद रखते हैं| गोलगप्पे में अलग अलग तरह की भरत प्रयोग होती है|

महानगरों के लोग सूजी के गोलगप्पे पसंद करते हैं तो सामान्य शहरों में आटे के गोलगप्पे पसंद किये जाते हैं| अलीराजपुर में एक भील ने मुझे मैदा के गोलगप्पे खिलाये| अलीगढ़ में आपको होली के आसपास हरे रंग में आटे और सूजी के गोलगप्पे मिलेंगे, जिनमें भांग का हल्का प्रयोग रहता है|

आगरा अलीगढ़ में गोलगप्पे के पानी में हींग की जबरदस्त प्रयोग होता है| दिल्ली में जलजीरा को खट्टे – मीठे दो चार स्वादों में कम मसालों के साथ प्रयोग किया जाता है| पुरानी दिल्ली में गोलगप्पे का पानी तेज मसालों का स्वाद रखता है| अलग अलग शहरों में धनिये पोदीने की चटनी का पानी अलग ठंडा स्वाद देता है तो इमली का पानी आपकी जीभ पर मीठी खटास छोड़ता है| हर शहर के पानी और खासकर गोलगप्पे के पानी में स्वाद अलग होता है| गोलगप्पे के पानी शहर शहर रंग और रंगत बदलता है| होस्टल के दिनों में बीयर, वाइन, वोडका, नारियल पानी, आदि के साथ गोलगप्पे खाना एक शगल है जिसे आप स्वीकृति अभी नहीं मिली है| ज्यादातर जगह गोलगप्पे का पानी ठंडा रखा जाता है मगर आपको कुछ जगह पर गुनगुना पानी भी मिल जाता है| हल्की गुनगुनी रसम के साथ गोलगप्पा निखर कर आता है|

कहीं गोलगप्पे में उबला आलू भरा जाता है तो कहीं मटर के छोले, कहीं चना मसाला, कहीं केले का गूदा, कहीं बूंदी| उत्तर भारत में प्रायः यह सब ठंडा रहता है और कई बार बर्फ में ठंडा किया जाता है| हैदराबाद में मुझे गोलगप्पे में गर्म गर्म छोले खाने को मिले| कई बार मसाला गोलगप्पे, भरवाँ गोलगप्पे और गोलगप्पा चाट में पानी का प्रयोग नहीं होता और उनमे अलग अलग प्रकार की भरत और चटनियों का प्रयोग होता है| कई बार यह छोटी छोटी राज कचौड़ी का रूप भी ले लेते हैं मगर ज्यादातर इसमें बहुत प्रकार के परिष्कृत तरीकों का प्रयोग और दुकान पर उपलब्ध सामिग्री का प्रयोग होता है| मुझे एक बार गोलगप्पे में मूली की खुर्तल (सलाद) और हरी चटनी का खाने का मौका मिला|

जैसा कि मैंने पहले कहा, देश के हर शहर के गोलगप्पे खाना मेरा एक महत्वपूर्ण सपना है| मेरा सपना है जमीन में जन्नत ढूंढने का, मेरा सपना है, हर छोटे छोटे दिन में छोटी छोटी ख़ुशी ढूंढते जाने का, हर गली नुक्कड़ पर जन्नत जी लेने का|

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