महान का निर्माण


अलीगढ़ से पुरानी दिल्ली की ईएम्यू ट्रेन चल चुकी है और नई दिल्ली की ट्रेन प्लेटफार्म पर सही जगह लेने के लिए आगे बढ़ रही है| जी हाँ, ठंडी सुबह का सवा छः बजा है| मैं सहमा, मगर एकदम चौकन्ना बैठा हूँ| मेरी आँख ट्रेन की खिड़की के बाहर मगर कान ट्रेन के अन्दर देख रहे हैं| “चाय ले लेना” अचानक आवाज आई| मैंने उनकी ओर देखा और डिब्बे के दरवाजे की और बढ़ गया| ट्रेन रुकते ही मैंने उस परिचित चायवाले को ढूढने के लिए नजर दौड़ाई| वो नहीं दिखा, किसी और से चाय लेकर मैं अन्दर आया| उन्होंने कप उठाया और उसकी गंध महसूस करते ही चाय बाहर फैंक दी| “काम अगर अपने हिसाब से न हो तो मत करो” मेरे लिए आकाशवाणी थी| किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की|

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उत्तर भारत में दिसंबर के बेहद ठंडी सुबह थी| बड़े दिन की छुट्टियाँ| सुबह सुबह पापा के साथ मैं मेरिस रोड इलाके में उनके हवेलीनुमा घर पर पहुंचा| लकड़ी की मजबूत पुरानी ऊँची कुर्सी पर खादी की शानदार लोई ओढ़े मोटी फाइल उलट – पुलट रहे थे| इशारे से बैठने के लिए कहा और अपने काम में लगे रहे| कमरे के एक कौने मैं एक शख्स टाइपराइटर के आगे शांत मूर्तिवत मगर चौकन्ना बैठा था| अन्दर से बिना कुछ कहे सुने हमारे लिए पहले पानी और बाद में तले हुए काजू बादाम के नाश्ते के साथ तुलसी अदरक की चाय आ गयी| यह उपक्रम और नाश्ता अलीगढ़ के पुराने परिवारों में खानदानी चलन की तरह आज भी होता है| मगर खास बात थी कि हमारे मेजबान ने अभी तक कोई शब्द नहीं बोला था; साथ में चाय न पीने के लिए माफ़ी मांगना तो दूर की बात थी| मैं अस्सी – पिच्यासी साल खूसट सनकी सठियाए बूढ़े के बारे में राय बना रहा था|

अचानक बोलना शुरू कर दिया और कौने में टाइपराइटर की खटखट शुरू हो गई| जमींदारी, परिवार और अफ़सरी शान को नाक पर रखने वाले मेरे पिता पूरे रूआब के साथ मगर शांत बैठे वहीँ तिपाही पर रखी कोई किताब पढ़ रहे हैं| मैं जानता हूँ, स्वतंत्र भारतीय सामंतवादी अलीगढ़ी समाज में इस समय मेरा काम मात्र चौकन्ने होकर बैठना है| अचानक उनका बोलना और टाइपराइटर की खटखट रुक गई|

“क्या पढ़ रहे हो आजकल” मुझे पता था, यह प्रश्न मेरे लिए हैं| “कॉन्ट्रैक्ट एक्ट”| “बेयर??” “जी, बेयर के साथ दो एक कमेन्ट्री भी है”| “ज़रा, साहबजादे को कागज देखने के लिए दे दो|” ताजा टाइप किये हुए कागज मेरे हाथ में थे| मैं नहीं जानता क्या करना है| मगर पूछना तब तक गलत है, जब तक पूछने के लिए न कहा जाए| अपने हिसाब से व्याकरण, कहानी की तारतम्य और टाइप की गलतियों के हिसाब से पढ़ने लगा| कुछेक ही सुधार करने थे, ज्यादातर टाइप के| “पूरी फाइल पढ़ कर कल इन्हें दोबारा देखना, फिर बताना|” फाइल हिंदी में थी, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय का कोई निर्णय था, जिसकी अपील होनी थी|

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जब मैं क़ानून की पढाई के पहले साल में परीक्षा देने गया तो बोले अगर जबाब ठीक न आये तो मत लिखना, जितना सही आये उतना लिखना| कम बोलना बचपन से सीखा था तो मैं उन दिनों भुलाने की कोशिश कर रहा था| वो कम शब्द लिखने और बोलने के कायल थे| मगर एक भी तथ्य छूटना नहीं चाहिए|

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यह उनका तरीका था| जब क्लाइंट आता, तो उस से पूरी कहानी जुबानी जरूर सुनते| वो जज और बाकी हम सब जूरी| क्लाइंट की बात में से बहुत प्रश्न पूछे जाते और नोट किये जाते| अधिकतर उन्हें घड़ी भर में पता लग जाता कि मामला क्या है और उसका आगे क्या होने वाला है| झूठे मुक़दमे वाले मामलों में लोग खुद ब खुद भाग खड़े होते| एक हफ्ते में एक ही नया मामला पकड़ते| उनके पास काम करने वाले लोग अक्सर बहुत सीधे सादे थे| थोडा भी चालाक चतुर आदमी उनके पास नहीं टिकता| यहाँ तक कि उनके अपने बच्चे भी नहीं| उन्हें होशियार लोग बहुत पसंद थे मगर होशियारी बिलकुल नहीं| उनके हिसाब से चालाक चतुर होशियार लोग कंपनी में जाकर गंजे को कंघा बेचने के लिए पैदा होते हैं|

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लगभग दो साल मैं हर हफ्ते उनके पास जाता था| दिन भर उनके साथ बैठना, सुनना, समझना, सीखना, और काम ख़त्म होने पर टहलना या कुछ देशी किस्म का नाश्ता| वो राजनीति से ज्यादा क़ानून की चर्चा करते| कानून पढने की चीज नहीं है, अक्सर कहते और साथ में चार पांच किताब पकड़ा देते| जब पढ़ लेते तो पढ़ा हुआ भूल जाने के लिए कहते| मगर उन्हें ढेरों कानूनी किताबे खुद याद थीं| बहुत से मुक़दमे याद थे| जब हम खाली होते तो किसी पुराने मुक़दमे को कहानी की तरह सुनाते| क़ानून के नुक्ते और नुस्खे कहानी में आते जाते रहते|

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उनके किसी काम में कोई गलती नहीं होती थी| उनकी बात कोई नहीं काटता| सिविल जज जूनियर डिवीज़न से लेकर जिला जज तक के पूरे जीवन में उनका कोई निर्णय कभी नहीं पलटा| उनके जो निर्णय उच्च न्यायालय में बदले तो उच्चतम न्यायालय में बहाल हो गए| वो कभी क्रोधित नहीं होते, सिर्फ अपने हिसाब से काम करते| उनकी सलाह आदेश होते और आदेश वो देते नहीं थे| वो अलीगढ़ से उच्चतम न्यायालय रोज जाते और मृत्यु से कुछ दिन पहले तक रोज ही जाते रहे| उनकी शाही सादगी, अनगढ़ परिपक्वता सब काबिले तारीफ| वो #MadeOfGreat थे|

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