भारतीय पुलिस को के बार आतंकवाद के आरोपी गीदड़ पकड़ने के आदेश मिले| पुलिस वाले बस इतना ही जानती थी कि गीदड़ कोई जानवर होता है| साल भर कुर्सी तोड़ने के बाद भी उन्हें गीदड़ नहीं मिला| एक दिन थाने के सामने घास चरता हुआ गधा मिल गया| तो उसे गीदड़ बना कर पकड़ लिया|
लात घूसे और लाठियां खाते खाते गधे को पता चला कि इन पुलिसियों को गीदड़ चाहिए| तो मार से बचने के लिए उसने खुद का गीदड़ होना कबूल कर लिया| अपराध में अपने शामिल होने के बारे में एक कहानी सुना दी|
सरकारी वकील ने अदालत को बताया हुजूर जानवरों के बारे में लिखी सबसे बड़ी किताब में लिखा है गीदड़ के सींग नहीं होते और पूँछ होती है| जो कि आरोपी के है| तो अदालत ने गधे को गीदड़ करार दे दिया|
इस बीच मंत्रीजी ने लालदीवार से गीदड़ पकड़ने वाले पुलिसियों को पुरुस्कार घोषित कर दिया| उधर अगले दिन वकील सफाई ने दलील दी कि आरोपी के खुर है, जो गीदड़ के नहीं होते| तो मंत्रीसेवकों ने उनको देशद्रोहियों का साथी बताना शुरू कर दिया| देश भर में अपराध पीड़ितों के लिए न्याय की मांग जोर पकड़ गई|
अदालत ने देश की भावना का सम्मान किया और गधे को गधा मानते हुए खुर न होने की असमानता परन्तु अन्य समानता के आधार पर गीदड़ का भाई और उस के अपराध स्वीकार करने के आधार पर उसको अपराधी घोषित कर दिया|
मोमबत्तीवालों ने बड़ेदरवाजे जाकर मोमबत्ती जलाईं| मंत्रीजी ने पुलिसियों का मोरल डाउन करने के आरोप में मोमबत्ती वालो ने पीछे कुत्ते छोड़ दिए| और पटाखे वालों ने पटाखे फोड़े|
कहानी चलती रही| कहानी चलती रही| कहानी चलती रही| … कहानी यूँ ही चलती रही|
मंत्री जी की कुर्सी सालों साल बैठे रहने से चरमराने लगी| बढई ने बताया कुर्सी ठीक करने के लिए गीदड़ का खून लगेगा| पुलिस ने बताया, हमारे कब्जे में तो गीदड़ का भाई गधा है|
आनन फानन में मंत्री जी, अदालत, पुलिस, मोमबत्ती और पटाखे हरकत में आये|
****
अख़बार ने लिखा “नरक में जा गधे|” गीदड़ ख़ुश हुआ| मोमबत्ती और पटाखे बिके| मंत्री जी ने बिरयानी खाई| पुलिस का मोरल आसमां से चिपक गया| कुछ गधों को कुछ यकीन आया|
बाद में एक किताब आई….