रोटी, कपड़ा और मकान| दुनिया भर की तमाम तरक्की के बाद भी यह ही वो सपने है जिन्हें सारी दुनिया देखती है| इन्सान रोटी रूखी खाए या चुपड़ी, कपड़ा मारकीन हो या सूती, कोई फर्क नहीं पड़ता| अपना मकान जिन्दगी में एक मुकाम बनाता है, एक पता देता है और अगर जिन्दगी और परिवार साथ तो अपने मकान से अपना घर भी हो जाता है|
अपना मकान होना “नई जिन्दगी की शुरुवात” #StartANewLife होती है|
अपना घर तभी बनता है जब आपका अपना मकान हो| किराये का मकान घर तो होता है मगर अपना घर नहीं होता| पड़ोसी कभी आपको नहीं अपनाते| आपको प्रवासी परिंदे की तरह डेरा डाल कर रहना होता है| कभी बढ़ते किराये, मटकते मकान मालिक, और कभी अच्छे घर की तलाश आपको भटकाती रहती है| सबसे बड़ी बात है आपके पास कोई स्थाई पता नहीं होता| जो लोग सरकारी नौकरियों जैसे आईएएस, पीसीएस, बैंक, के लिए तैयारी कर रहे हों तो उनका तो यह हाल हो जाता है कि फॉर्म भरते वक्त का पता प्री तक ही पुराना हो जाता है और कई बार तो उसका ट्रैक भी खो जाता है|
एक ऐसा ही वक़्त था जब हमारे पिता को लगा की हमारा अपना मकान बने|
मकान का बनाया जाना, भले ही खरीदे जाने से कही कठिन हो मगर खरीदे गए पुराने मकान में “अपना” वाला तत्व और भावना, एलिमेंट और फील नहीं होता| बने हुए मकान आपको “बना” देते हैं, वो आपकी अपनी कहानी नहीं कहते| एक अच्छा मकान वही है जो आपकी अपनी कहानी कहता हो, भले ही इसे किसी रियल एस्टेट डेवलपर या बिल्डर ने बनाया हो|
सबसे पहले ज़मीन तलाशी गई| अपना मकान कोई रोज तो बनता नहीं है, सबसे बढ़िया ज़मीन तलाश करनी थी| छोटा शहर था, इन्टरनेट एक अनजान सा नाम था, प्रॉपर्टी साईट तो शायद नहीं थीं| छोटे शहरों में प्रॉपर्टी डीलर का भी कोई बड़ा तबका नहीं रहता था| खैर जैसे तैसे ज़मीन की तलाश पूरी की गई| जगह, इलाका, दिशा, पड़ोस, पहुँच, और पानी की तमाम कमीवेशी के बाद ज़मीन की तारीफ़ के तरीके ढूढ़ लिए गए|
जिन्दगी में अपना मकान रोज नहीं बनता| अपना मकान कोई ईंट पत्थर गारा चुना सीमेंट नहीं होता| सपना, ख्वाइश, खून – पसीना, पैसा और कई बार ईमान भी लगा होता है|
नक़्शे न सिर्फ नक्शानवीस से बनवाया गया बल्कि नए नवेले आर्किटेक्ट को भी पकड़ा गया| बाद में बढ़िया ठेकेदार से लेकर बढ़िया राजमिस्त्री के चक्कर लगाये गए| भगवान् से सीधा संपर्क रखने वाले पण्डित से दिन – दिनांक – समय – मुहूर्त निकलवा कर कार्य का शुभारम्भ हुआ| समय समय पर मजदूरी भी की गई| मकान का बनवाना, ईंट, रोड़ा, कंकर, पत्थर, बालू, रेता, गारा, पानी, सरिया सीमेंट लक्कड़ का एक श्रमसाध्य मगर फलदायक काम है|
जब आप अपने सामने ईंट ईंट जोड़कर मकान बनता देखते है तो आपका एक अलग सा जुड़ाव महसूस करते हैं| जिस तरह बच्चा बड़ा होता है उसी तरह से मकान बनता है; नींव, प्लिंथ, दीवार, लेंटर, प्लास्टर होते हुए| मकान कोई पत्थर नहीं होते, कविता होते है जो कहानी कहते हैं| हमारा और आपका मकान बनाया नहीं गया, मूर्ति की तरह गढ़ा गया है| भूमि पूजन से लेकर गृहप्रवेश तक मकान का बनना एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है|
सच तो यह है की मकान कभी पूरा नहीं होता, जिस दिन आप मकान को पूरा मान लेंगे, मकान बूढ़ा होने लगता है| कम से कम उसे रोज का प्यार देखभाल, संभाल – सहेज – सजावट, रंग रोगन तो चाहिए ही| भले ही आजकल की भागदौड़ में आप मकान को टाइम नहीं दे पायें|
प्यार और देखभाल से मकान कब घर बन जाता है आपको पता भी नहीं चलता| आप कब जमीं को मकान और मकान को घर कहना शुरू करते हैं, इसका कोई तरीका नहीं है|
अपने मकान का अपना घर बनना, जिन्दगी में ढेर सारे सुखद बदलाव लेकर आता है| आपका आस – पास, अपना पड़ोस, अपनी गली, अपना मोहल्ला, अपनी कॉलोनी, अपना शहर, अपना आप, अपनी पहचान और अपना पता, नहीं स्थाई पता|
पिगबैक: मकान का घर होना | गहराना