घर वही होता है जहाँ आपका बचपन भंवरे की तरह गूंजा हो, जवानी माँ की तरह पिघली हो और जिसकी याद से बुढ़ापा सावन – भादों की तरह पनीला हो जाये| जिन्दगी की जिद्दोजहद में इंसान भले ही कितना दूर चला जाये, खो जाये और खुद को भूल जाए, उसे याद आता है, अपना घर| आज की पीढ़ी के ज्यादातर लोग, रोजी – रोटी, काम और नाम की तलाश में अपने इसी घर से दूर चले जाते हैं| यह दूरी कुछ सौ किलोमीटर से लेकर हजारों किलोमीटर तक हो सकती है| इस साल का पहला बड़ा त्यौहार आ चुका है होली|
जो लोग हमेशा अपने घर में रहते हैं उनके लिए त्यौहार की तैयारी दो चार हफ्ते पहले शुरू होती है मगर प्रवासी पंछियों के लिए यह छः महीने पहले शुरू होती है| सबसे पहले रिजर्वेशन की तारीख नोट की जाती है कि सही दिन सही समय आप रिजर्वेशन करा सकें, एजेंट को पकड़ सकें और रुपये पैसे का इंतजाम रख सकें| दो महीने पहले आपको ट्रेन का आरक्षण करना होता है (अब यह भी चार महीने पहले कराना होगा)| ज्यादातर लोग अपना रिजर्वेशन वेटिंग लिस्ट में देख कर यात्रा शुरू होने से दो घंटे पहले तक परेशानी में पड़े रहते हैं|
यात्रा के दिन आपको रेलवे स्टेशन पर जाने के लिए ऑटो – टैक्सी का इंतजाम रखना होता है, जो उस दिन मुश्किल भरा काम हो जाता है| मेट्रो में भीड़ बहुत रहती है तो उसे हिम्मतवालों के लिए ही छोड़ देना चाहिए| दिन दिनों ऑटो की प्रतीक्षा का समय १० मिनिट से बढ़कर पौन घंटा हो जाता है|
आप एक घंटा पहले रेलवे स्टेशन पहुँचते हैं| अगर आप सही प्लानिंग करने के साथ साथ भाग्यशाली हैं तो आपके पास कन्फर्म रिजर्वेशन होता है|
रेलवे स्टेशन पर कुम्भ मेले से भी ज्यादा भीड़ होती है| उत्तर प्रदेश – बिहार जाने वाली ट्रेनों में भीड़ इतनी होती है कि उनके यात्री कई घंटों से पंक्तिबद्ध होकर ट्रेन में चढ़ने की प्रतीक्षा करते हैं| अगर आप सामान्य अनारक्षित (जिसे कुछ लोग भेड़ – बकरी क्लास कहते हैं) या गैर – वातानुकूलित आरक्षित डिब्बे में यात्रा कर रहें हैं तो यह शायद आपके शिक्षा कालीन – चुनाव कालीन पापों का फल है| यह आपका आम जनता होने का सीधा सरल प्रमाण है| अगर आप वातानुकूलित तीसरे या दुसरे दर्जे में हैं तो शायद आप ठीक ठाक नागरिक है| मगर किसी भी डिब्बे में चढ़ना इतना आसन नहीं है, जितना होना चाहिए| हर किसी को ट्रेन लगने के बाद पहले पंद्रह मिनिट में ही ट्रेन में चढ़ना होता है भले ही सामान रखने के बाद आप बाहर चिप्स, पानी, पेपर, चेतन भगत (दिखाने के लिए) और वेद प्रकाश शर्मा (पढ़ने के लिए) खरीद लायें|
इसके बाद ट्रेन अपने समय से प्लेटफ़ॉर्म छोड़ देती है और बाहर आकर रुक जाती है| भारतीय ट्रेन को देखकर मेरा मन करता है: कोई गाना लिखूं: “ मेरा मन मंथर – मंथर, चलूँ डगरिया रोती – सोती”|
अगर भारतीय ट्रेन किसी त्यौहार के दिन हर घंटे में पांच मिनिट लेट न हो तो रेलमंत्री को शायद त्यागपत्र देना पड़ जाये| आप जब अपने घर के स्टेशन पर पहुँचते है तो लोग इन्तजार कर कर थक चुके होते हैं| त्यौहार भूल कर आपके देर से आने के चर्चे करते हैं| आपको लगता है, कितना प्यार है सबको, कोई आपको आने में हुई देरी को सहन नहीं कर पा रहा|
जब आप घर में घुसते है तो पडौसी चाची देख कर पूछती हैं, “बेटा, कब आये?” पैर छूने और गले मिलने में जो प्यार और आनंद उमड़ता है, उस के लिए हो तो आप भागते दौड़ते घर आये थे|
चलिए होली की गुजिया, कांजी, ठंडाई, रंग उमंग भंग भड्दंग की बधाईयाँ|
टिपण्णी: यह पोस्ट इंडीब्लॉगर द्वारा https://housing.com/lookup के लिए किये गए आयोजन के लिए लिखी गयी है|