यह प्रेममयी सप्ताह है| प्रेम आज सबसे कम चर्चित और सबसे अधिक विवादास्पद शब्द है| धार्मिक कट्टरपंथियों ने इसे ममता, वात्सल्य, स्नेह, मित्रता और आदर का पर्याय बनाने का प्रयास किया है तो सांसारिक अतिवादियों ने कामुकता का|
विवाह और प्रेम की आपसी स्तिथि तो और भी खराब है| विवाह जहाँ धार्मिक या अधिक से अधिक सामाजिक सम्बन्ध है तो प्रेम हार्दिक या आत्मिक|
प्रेम विवाह के बाद भी प्रेम बरकरार रहेगा अथवा विवाह में प्रेम उत्पन्न होगा?
प्रेम में कामुकता आएगी या कामुकता में भी प्रेम बना रहेगा?
जीवन की वास्तिविकता को स्वीकार करें या न करें, परन्तु स्तिथि कुछ इस प्रकार है:
सप्रेम अवैवाहिक कामुक सम्बन्ध!
अप्रेम अवैवाहिक कामुक सम्बन्ध!
सप्रेम वैवाहिक कामुक सम्बन्ध!
अप्रेम वैवाहिक कामुक सम्बन्ध!
सप्रेम वैवाहिक सामाजिक सम्बन्ध!
अप्रेम वैवाहिक सामाजिक सम्बन्ध!
सप्रेम विवाहेतर कामुक सम्बन्ध!
अप्रेम विवाहेतर कामुक सम्बन्ध!
सप्रेम विवाहेतर सामाजिक सम्बन्ध!
अप्रेम विवाहेतर सामाजिक सम्बन्ध!
मैं न तो विवाह की संस्था पर प्रश्न उठता हूँ, न प्रेम की वास्तविकता पर| परन्तु क्यों प्रेमपूर्ण सम्बन्ध समाज की वयवस्था दम घोंट दिया जाता है|
क्या हमें प्रेम की कद्र करना नहीं आना चाहिए?
यदि विवाह बहुत पवित्र है तो संन्यास का पलायन क्यों है?
यदि संन्यास संसार की पूर्णता है तो स्त्री का त्याग क्यों है? घर छोड़कर भागना क्यों है?
यदि विवाह की संस्था इतनी पवित्र है तो तलाक का बबाल क्यों है?
यदि तलाक, विवाह का कलंक है तो विवाह में कुंठा क्यों है?
प्रेम को जीवन की पूर्णता मानने से हमारा इन्कार क्यों हैं? केवल विवाह को ही प्रेम मानने की हठ क्यों है?