स्कूल के दिनों में मेरे एक शिक्षक कहा करते थे कि अपने आलोचकों और विरोधियों के साथ आदर का व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि वह हमेशा मित्रों से बढ़कर आपके बारे में सोचते हैं| आपके मित्र यदा कदा आपकी कमियों को छिपाकर आपको तात्कालिक संकट से बचा तो लेते हैं परन्तु बड़ा संकट सदा तैयार रहता है| विरोधी आपकी कमियों का इतना प्रचार करते हैं कि आपको किसी भी संकट से पूर्व अपनी कमी दूर करने और अपने को हमेशा तैयार रहने में मदद मिल सकती है|
सामाजिक व्यवहार हमारे लिए कई मित्र और विरोधी उत्पन्न करता है| मित्र समय की कमी और भौगोलिक दूरी के कारण प्रायः दूर के ढोल हो जाते हैं| कभी कभार आप मित्रों के साप्ताहिक अवकाश और तीज – त्यौहार से भी जोड़ कर देख सकते हैं| मित्र कई वर्ग के होते हैं; मोहल्ले वाले, कार्यालय वाले, बस – ट्रेन – मेट्रो वाले, बचपन वाले, फेसबुक वाले और चलते – फिरते वाले| विरोधी ऐसा नहीं करते और वह न सिर्फ भौतिक – मानसिक वरन साइबर रूप में भी आपके आगे पीछे रहते हैं| कह सकते हैं कि परछाई साथ छोड़ सकती है मगर विरोधी और मृत्यु नहीं|
यह कई बार स्तिथि बहुत ही प्रसन्नता दायक हो जाती है| अभी हाल में मेरी भेंट अपने एक विरोधी समूह से बहुत दिनों बाद हुई| उन्हें देख कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई, इसलिए नहीं की मुझे विरोधीगण बहुत प्रसन्न हैं| एक कारण से मुझे यह भ्रम हो रहा था कि वह लोग मित्रता करना चाहते हैं| मगर मिलते ही शहद मिश्रित कटुवचन मुझे प्रदान किये गए| धीरे धीरे मुझे यह अहसास होने लगा कि मैं नितांत असफल, मित्र विहीन, इन्टरनेट का लती किताबी कीड़ा हूँ| मुझे वहाँ रुकना लगभग असंभव हो रहा था और वो लोग उस समय आलोचना से भाग खड़े होने वाले अशिष्ट असामाजिक लोगों के बारे में चर्चा करने लगे थे| मैं अब भाग जाने में भी संकोच अनुभव कर रहा था|
मगर अचानक मुझे समझ आया कि वह लोग मेरे सफल आलोचक इसलिए हैं कि वह पूरी तरह से हर स्थान पर मेरा अनुसरण करते हैं| उन लोगों में मेरे एक एक फालतू ट्वीट को अक्षर मात्र के साथ पढ़ा हुआ था| मेरे कई ब्लॉग उन्हें जबानी याद थे| मेरे असामाजिक व्यवहार और असामाजिक सोच पर उनके पास व्याख्यान तैयार थे|
मैंने अचानक ही उनमें से दो को मेरे ब्लॉग इतना ध्यान से पढने के लिए धन्यवाद दिया और वह सभी तुरंत ही हवा में विलीन हो गए| इस आलेख को लिखना प्रारंभ करते समय मैंने अपने ब्लॉग की अनुसरण सूची देखी तो पाया मेरे सभी विरोधी और आलोचक सादर यथा स्थान उपस्थित हैं|
मगर मित्र…. लगता है अभी और घनिष्ट मित्रता पर मुझे ध्यान देना होगा|