हर दिवाली घर द्वार की साफ़ सफाई, हम उत्तर भारतीयों का सालाना उत्सव है|
इस दिवाली जब मैं घर पर कुछ झाड़ – पौंछ में लगा था तो मुझे ध्यान दिलाया गया कि साहब सो रहे हैं| साहब यानि मेरे दो साल का बेटा| अब मुझे सारा काम इस तरह से निपटाना था कि काम भी हो जाये और साहब के जाग जाने और हमारी शामत आने की नौबत न आये|
मुझे अपने वो दिन याद आये अब मैं नौकरी कर रहा था| तब जब भी कोई खास काम होता तो वरिष्ठ कर्मी सलाह देते कि काम इस तरह से हो कि साहब को ये तो लगे कि कुछ लगातार हो रहा है मगर वो अपना नाग फन उठा कर बाहर न आ जाये|
कुल मिला कर किसी भी काम को सफलता पूर्वक संपन्न करने के लिए शांति पूर्ण माहौल की जरूरत होती है| अगर हम वरिष्ठ अधिकारिओं को बार बार हस्तक्षेप करने देते है तो वह काम कभी भी अपने सही अंजाम तक नहीं पहुँचता| साथ ही सभी सह कर्मियों का उत्साह भी जाता रहता है; कभी कभी तो यह नकारात्मक भावना में भी बदल जाता है| अधिकारी को कभी भी काम होते देखने में प्रसन्नता का अनुभव नहीं होता वरन उसे सारे काम या उसके किसी एक चरण के पूरा होने पर ही संतोष होता है|
संयोग से मेरा बेटा काम ख़त्म होने के बाद तक सोता रहा| जगने के बाद जब उसने निरिक्षण किया तो कमरे के बदले हुए रूप पर उसकी प्रसन्नता देखते ही बनती थी|