अगर दिल्ली मेट्रो को आधुनिक दिल्ली की शान कहा जाये तो शायद किसी को भी कोई आपत्ति नहीं होगी| यह एक बेहद सुविधा जनक सेवा है| दिल्ली पिछले पांच छः वर्षों से दिल्ली मेट्रो के नियमित प्रयोग के दौरान मुझे कई प्रकार के खट्टे मीठे अनुभव हुए है| एक भारतीय होने के नाते आप कह सकते है कि दिल्ली मेट्रो में अगर कोई भी असुविधा होती है तो देश में उपलब्ध अन्य सुविधाओं के मुकाबले आप इसे कम पाएंगे और शिकायत शायद नहीं ही करेंगे| अगर मैं दिल्ली मेट्रो के अपने “दुखद” अनुभवों की सूची बनाऊ तो मुझे लगता है कि यह दिल्ली मेट्रो प्रबंधन से अधिक साथी यात्रीयों की शिकायत अधिक होगी|
मेरे ७४ वर्षीय पिता इस सेवा को बेहद पसंद करते हैं और बेहद सुविधा जनक मानते हैं| इस महीने उन्हें दिल्ली मेट्रो को लेकर जो अनुभव हुए उन्हें मैं यहाँ सबके साथ बाँटना चाहूँगा|
१५ अक्टूबर २०१२ की बेहद प्रातः जब मेरे अलीगढ से ट्रेन द्वारा दिल्ली आने के क्रम में भारतीय रेलवे के दिल्ली – आनंद विहार टर्मिनल पर उतरे और वहां से उन्हें मेरे घर आने के लिए मेट्रो लेनी थी| आनंद विहार रेलवे टर्मिनल से दिल्ली मेट्रो के आनंद विहार स्टेशन पहुँचने के दो रास्ते हैं, जिनमे से एक पैदल पार पथ है जिसका छोर ढूँढना, किसी मार्ग निर्देशक के अभाव में नए व्यक्ति के लिए थोडा मुश्किल है और दूसरा रास्ता बेहद लंबा और उबड़खाबड़ है| इसी क्रम में पिताजी कहीं गिर गए और उनकी आँख पर कहीं चोट लग गयी| जब वह किसी तरह से मेट्रो स्टेशन पहुँचे तो वहां मौजूद, सुरक्षाकर्मियों और मेट्रो स्टाफ में उन्हें प्राथिमिक चिकित्सा दी और बाद में एम्बुलेंस में पिताजी की सलाह पर गुरु तेगबहादुर अस्पताल भी पहुँचा दिया| वहां पर उनकी दाँयी आँख के निकट और पलक पर कई टांके आये| मैं इस दुर्घटना के एक घंटे के बाद जब अस्पताल में पिताजी से मिला तब भी उनके लगातार खून बह रहा था| यह हमारे लिए दिल्ली मेट्रो से जुड़ी एक अच्छी याद है, जिनके मानवीय व्यव्हार से मुझे प्रेरणा मिली है|
इसके बाद जब १९ अक्टूबर जो जब पिताजी को पुनः अस्पताल जाना था तब एक बार फिर से हमने दिल्ली मेट्रो का प्रयोग किया| उन्हें जो दुखद अनुभव हुए वो इस प्रकार रहे:
१. कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन पर यलो लाइन से रेड लाइन के लिए जाते समय मुझे प्लेटफार्म तक पहुँचने के लिए लिफ्ट का पता नहीं चल पाया, और पिताजी को स्वचालित सीढ़ियों का प्रयोग करना पड़ा|
२. वापसी में झिलमिल से जब हम ट्रेन में पहुँचे तो वृद्धों के लिए सुरक्षित सीट पर दो अधेड़ महिलाये बैठी हुई थी और उन्होंने सीट देने से इनकार कर दिया जबकि निकट के महिला सीट पर बैठे पुरुष में उन्हें कहा कि वो दोनों महिला सीट पर आ जाएँ| खैर पिताजी महिला सीट पर बैठ कर कश्मीरी गेट तक पहुँचे|
३. जब निचले प्लेटफार्म पर जाने के लिए लिफ्ट तक पहुँचे तब वहां बेहद लंबी कतार लगी थी| खेद की बात है, पहले से मौजूद उन्नीस लोगों में से दस नवयुवा (२०-२५ वर्ष), पांच अन्य युवा या अधेड़ (२५-५०) और कुल चार वृद्ध थे| कोई भी विकलांग उस भीड़ में नहीं था| दुर्भाग्य की बात है कि एक वृद्ध सज्जन के इस अनुरोध को कि वो लोग पहले वृद्धों को लिफ्ट में जाने दें, एक कर्कश टिपण्णी के साथ नकार दिया गया| हमें लिफ्ट के पुनः आने का इन्तजार करना पड़ा| लिफ्ट अपने लिए निर्धारित क्षमता को ले जाने में असमर्थ थी| जब मैंने पुनः सभी लोंगों से अनुरोध किया कि हमें पहले लिफ्ट का प्रयोग करने दे तब लिफ्ट से बाहर निकलने वाले सभी लोग अधेड़ थे, युवा नहीं|
४. जब हम जोरबाग के लिए मेट्रो में सवार हुए तो इस बार एक नवयौवना वृद्धों वाली सीट पर सवार थीं और उन्होंने खतरे को भांपते हुए पिताजी को इस प्रकार देखा कि पिताजी कुछ नहीं कह पाए| परंतु, अधिक दुखद अभी बाकी था, जिन सज्जन ने पिताजी के लिए अपनी सीट छोड़ी और आशीर्वाद पाया; उन्होंने धीमे स्वर में उस नवयुवती पर बेहद शर्मनाक टिप्पणी की| मन कसैला हो गया|
आज २६ अक्टूबर को पुनः मेट्रो में पिताजी के साथ सुखद यात्रा की, परन्तु उन्होंने लोटते समय लिफ्ट का प्रयोग करने से मना कर दिया क्योकि दस ग्यारह वृद्ध लोगों से साथ गाँधी नगर से देर सारा सामान लेकर आये दो तीन लोग उनसे आगे पंक्ति में खड़े थे|
मुझे लगता है कि पूरी दिल्ली में दिल्ली मेट्रो उन कुछ स्थानों में से एक है जहाँ लोग सबसे अधिक अनुशासित नजर आते है| परन्तु लोगों के स्तर पर अभी काफी कुछ किया जाना शेष है|
मेरा दिल्ली मेट्रो से यह अनुरोध रहेगा कि अधिक भीड़ वाली जगह, विशेषकर कश्मीरी गेट स्टेशन पर लिफ्ट के बाहर सहायकों की नियुक्ति की जाये जो वृद्ध और विकलांग लोगों की सहायता करें और अवांछित लोगों को लिफ्ट के दुष्प्रयोग से रोकें| कश्मीरी गेट स्टेशन पर ऐसा करने की जरूरत इसलिए भी है क्योकि इस स्थान पर ही लोंगो, विशेषकर वृद्धों को लिफ्ट की सर्वाधिक आवश्यकता है|