प्रेम निवेदन


यह बसंत – वैलेंटाइन का प्रेमयुग नहीं है जिसमे इश्क़ इबादत था| ये वो वक़्त है जिसमें लवजिहाद और प्रेमयुद्ध है| सरफिरो के लिए प्रेम पूजा नहीं असामाजिकता है, यौन है, वासना है, बलात्कार है|

एक हिन्दू – एक मुसलमान| एक कायस्थ – एक शेख़| एक शाक्त – एक शिया| एक मंदिर – एक मस्जिद| एक संस्कृतनुमा हिंदी – एक फ़ारसीनुमाउर्दू| एक भैया – एक भाई| एक गाय – एक बकरा| एक गोभी – एक गोश्त| एक नौकरी – एक धन्धा| एक कंप्यूटर – एक कॉमर्स| एक मूँछ – एक दाढ़ी| एक चाकू – एक छुरा| एक ये – वो| एक यहाँ – एक वहाँ| एक ऐसा  – एक वैसा|

हमारे बीच में एक सड़क है जो जिसके फुटपाथ कभी नहीं मिलते, न ही सड़क के किनारे बने घर|

दो घर आमने सामने, जिनका हर रोज सूरज निकलते आमना सामना होता है| उनके बीच सड़क पच्चीस फुट और पच्चीस साल चौड़ी है| हर सड़क के बीच डिवाइडर रहता है, कई बार एक ऊँची दीवार रहती है, जो किसी को दिखती नहीं है, हर किसी को महसूस होती है| यह दीवार दिल में बनती है और सड़क पर जा खड़ी होती है| हर सड़क के बीच डिवाइडर रहता है, कई बार गहरा समंदर रहता है| समंदर ख्यालों में रहता है और दिल उसमें डूब जाता है|

प्यार समर्पण है, प्यार त्याग है मगर प्यार न तो आत्म – समर्पण है, न भागना है|

मगर वो प्रेम क्या जिसे जाहिर भी न किया जाये| प्रेम में इंकार हो या न हो, इजहार तो होना ही चाहिए| हम जानते है कि हम एक दूसरे को प्रेम करते है| न बोलना कई बार बहुत ज्यादा होता है और बोलना कम| मगर समाज बहरा होता है, क़ानून अँधा|

कई बार लगता है दो घर बहुत दूर हैं और उनके बीच में जो समंदर है उसमें तैरते हुए और दूर चले जायेंगे| उनके बीच में एक पुल बना देना चाहिए| उन्हें रस्सी से बाँध दिया जाना चाहिए| उनके बीच में लक्ष्मण रेखा नहीं लक्ष्मण झूला चाहिए|

बस तय किया है, इस वैलेंटाइन तय किया दोनों घरों को मजबूत रस्सी से बाँध कस कर बांध दिया जाए, हमेशा के लिए|

अपने एनसीसी के दिन याद आ रहे हैं| उन दिनों सीखा था कि किस तरह से दो उंची बिल्डिंगों या पेड़ों के बीच में रस्सियों का पुल बनाया जाये, जिससे कि दोनों के बीच आना जाना हो सके| इस नेक काम में भरोसे के दो लोगों की जरूरत है जिन्हें इस तरह के पुल बनाना आता है और जो सामने वाले घर की छत पर जा कर इस नेक काम को अंजाम दे सकें| अब यह तय है कि तीन मंजिल ऊँचे दोनों घरों के बीच में एक रस्सी का मजबूत पुल बना दिया जाये, अपना एक लक्ष्मण झूला|

वैलेंटाइन डे के दिन सुबह अपनी खास शेरवानी पहने मैं| रस्सी के उस पुल के बीच, बीचों बीच मैं… एक छोटा सा छोटा सा गुलदस्ता हाथों में, ताजा सफ़ेद गुलाब और तरोताजा लाल गुलाब का गुलदस्ता| वहाँ से उनके मोबाइल पर एक कॉल.. अब प्लीज छत पर आ जाओ..| और आसमान में उड़ती हुई बहुत सारी लाल और सफ़ेद पतंगों के बीच हवा में झूलते हुए रस्सियों के मजबूत झूले पर एक प्रेम निवेदन|

टिपण्णी : यह पोस्ट http://cupidgames.closeup.in/. के सहयोग से  इंडीब्लॉगर द्वारा किये गए आयोजन के लिए लिखी गई है|

कुलनाम


अभी हाल में “ओऍमजी – ओह माय गॉड” फिल्म देखते हुए अचानक एक संवाद पर ध्यान रुक गया| ईश्वर का किरदार अपना नाम बताता है “कृष्णा वासुदेव यादव”| इस संवाद में तो तथ्यात्मक गलतियाँ है;

 

१.      उत्तर भारत में जहाँ कृष्ण का जन्म हुआ था वहां पर मध्य नाम में पिता का नाम नहीं लगता| वास्तव में मध्य नाम की परंपरा ही नहीं है, मध्य नाम के रूप में प्रयोग होने वाला शब्द वास्तव में प्रथम नाम का ही दूसरा भाग हैं, जैसे मेरे नाम में मोहन|

 

२.      उस काल में कुलनाम लगाने का प्रचलन नहीं था|

 

'Vamana Avatar' (incarnation as 'Vamana') of V...

‘Vamana Avatar’ (incarnation as ‘Vamana’) of Vishnu and King ‘Bali’. (Photo credit: Wikipedia)

 

 

 

जाति सूचक शब्द में नाम का प्रयोग शायद असुर नामों में मिलता है, जैसे महिषासुर, भौमासुर| यह भी बहुत बाद के समय में| प्रारंभिक असुर नामों में भी इस तरह का प्रयोग नहीं है, जैसे – हिरन्यकश्यप, प्रह्लाद, बालि, आदि|

 

ऐतिहासिक नामों में मुझे चन्द्रगुप्त मौर्य के नाम में ही कुल नाम का प्रयोग मिलता है, स्वयं मौर्य वंश में भी किसी और शासक ने कुलनाम का प्रयोग नहीं किया है| विश्वास किया जाता है कि वर्धनकाल तक भारत में जाति जन्म आधारित न होकर कर्म आधारित थी| यदि उस समय जाति या कर्म सूचक कुलनाम लगाये होते तो हो सकता कि शर्मा जी का बेटा वर्मा जी हो| सामान्यतः, मध्ययुग तक कुलनाम का प्रयोग नहीं मिलता| हमें पृथ्वीराज चौहान का नाम पहली बार कुलनाम के साथ मिलता है|

 

 

स्त्रियों में कुलनाम लगाने की परंपरा बीसवीं सदी तक नहीं थी| स्त्रिओं में कुमारी, देवी, रानी आदि लगा कर ही नाम समाप्त हो जाता था| बाद में जब स्त्रिओं में कुलनाम लगाने की परंपरा आयत हुई तो बुरा हाल हो गया है| प्रायः सभी स्त्रिओं को विवाह के बाद अपना कुलनाम बदलकर अपनी पहचान बदलनी पड़ती है अथवा अपनी पुरानी पहचान में पति की पहचान का पुछल्ला जोड़ना पड़ता है|

 

पाठकों के विचारों और टिप्पणियों का स्वागत है|

 

दो ऑटोरिक्शा चालक


अभी गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में अपना पर्चा प्रस्तुत करने के लिए जाना हुआ| जाते समय अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से विश्वविद्यालय तक और लौटते समय दिल्ली कैंट से लोदी रोड तक ऑटो रिक्शा की सवारी का लुफ्त उठाया और सामायिक विषयों पर चर्चा हुई| दोनों रिक्शा चालकों की समाज और देश के प्रति जागरूकता और उस पर चर्चा करने की उत्कंठा ने मुझे प्रभावित किया|

गुजरात:

मुझे नियत समय पर पहुंचना कठिन लग रहा था और रास्ता भी लम्बा था| बहुत थोड़े से मोलभाव के बाद, मैं अपनी दाढ़ी और पहनावे से मुस्लिम प्रतीत होने वाले चालक के साथ चल दिया| मैंने सामान्य शिष्टाचार के बाद सीधे ही प्रश्न दाग दिया. अगले चुनावों में वोट किसे दोगे| बिना किसी लाग लपेट के उत्तर था, मोदी| मैंने दोबारा पूछा, भाजपा या मोदी? मोदी सर| मैंने कहा, वो तो कसाई है, उसे वोट दोगे| चालक ने शीशे में मेरी शक्ल देखी, आप कहाँ से आये है? मैंने कहा दिल्ली से, अलीगढ़ का रहने वाला हूँ| उसने लम्बी सांस ली और शीशे में दोबारा देखा| मैंने उचित समझा कि बता दूँ कि हिन्दू हूँ|

“हिन्दुओं से डर नहीं लगता सर, सब इंसान हैं|” थोड़ी देर रुका, सर ये गुजरात है, “जिन हिन्दुओं ने बहुत सारे मुसलामानों की जान बचाई थी वो भी सबके सामने मोदी ही बोलते है| बोलना पड़ता है सर| वोट का पता नहीं, अगर दिया तो मोदी को नहीं देंगे और कांग्रेस या और कोई हैं ही नहीं तो देंगे किसे?” अब मेरे चुप रहने की बारी थी|

काफी देर हम लोग चुप रहे, फिर उसने शुरू किया, “सरकार बड़े लोगों की होती है और हम तो बस वोट देते हैं| अगर वोट भी न दें तो ये लोग तो हमें कभी याद न करें| इस देश में वोट बैंक और नोट बैंक दो ही कुछ पकड़ रखते हैं| हम कोशिश कर रहे हैं, वोट बैंक बने रहें| इसलिए वोट देंगे|”

Drive thru

Drive thru (Photo credit: Nataraj Metz)

दिल्ली:

दिल्ली कैंट स्टेशन पर उतरने ऑटो रिक्शा दलाल से मीटर किराये से ऊपर पचास रुपया तय हुआ| ऑटो चालक सिख था| उसने बताया कि ज्यादातर जगहों पर अवैध पार्किंग ठेके है और ये लोग पचास रुपया लेते है| पुलिस इन ठेके वालों से हफ्ता वसूलती है और ये बिना रोकटोक ऑटो खड़ा करने की जगह देते हैं| दिल्ली एअरपोर्ट पर ऑटो के लिए कोई वैध – अवैध पार्किंग नहीं है क्योंकि ऑटो रिक्शा देश की शान के खिलाफ हैं| ऑटो पर विज्ञापन से लेकर पुलिस भ्रष्टाचार तक लम्बी चर्चा हुई| उसने भाजपा और कांग्रेस को सगा भाई बताया| “हिस्सा तय है जी सारे देश में इनका ७० – ३० का|” “कॉमनवेल्थ की समिति में दोनों के लोग थे साहब|” “क्रिकेट का रंडीखाना तो दाउद चलाता है साहब और भाजपा – कांग्रेस के लोग उसमें नोट बटोरने जाते हैं|” उसके मन और जुबान की कडुवाहट बढती रही और मेरे लिए सुनना कठिन हो गया|

अंत में उसने कहा, “साहब हमें नहीं पता कि केजरीवाल कैसा करेगा, क्या करेगा और उसके पास मंत्री बनाने लायक अच्छे समझदार लोग हैं या नहीं; मगर हम उसे वोट देकर जरूर देखेंगे|”

मैं सोचता हूँ, अगर देश की आम जनता के मन में लोकतंत्र की भावना मजबूत हैं, यही अच्छी बात दिखती है| वरना तो लोग हथियार उठाने के लिए भी तैयार ही जाएँ| कहीं पढ़ा था न इन्ही दो चार साल में “शहरी नक्सलाईट”|