किसान!! उसने पूछा?
ये कैसा किसान है, इसने तो सूट पहन रखा है?
यह कोई साधारण प्रश्न नहीं था| मंत्रालय के अधिकारी का आधिकारिक प्रश्न था| बनाई जा रही उत्पादक कंपनी के कागजात पर आधिकारिक लिखत थी|
क्या हमें नया फ़ोटो लगाना है? क्या किसान का मतलब खेत मजदूर होता है या कि हर साल फसल बर्बाद होती रहे|
नेता मोटी खद्दर का कुर्ता पायजामा छोड़ कर लखकरोड़ी परिधान पहनने लगे| मगर दो चीज़ नहीं बदलीं:
- छोटे बच्चों की सीनरी – झोंपड़ी, नदी, पहाड़ और पहाड़ के पार उगता सूरज; और
- किसान – फटे धोती कुर्ता, कंधे पर बैलों वाला हल और कभी कभी साथ में बैल|
हम रटरट कर बड़े हुए हैं| हमारे बूढ़े अध्यापक जी भी और हमारे बच्चों की मैडम जी भी| किताबों में फ़ोटो पुराने हैं, शरीरों में पुराने दिमाग|
देश में यदि थोडा बहुत विकास हुआ तो फ़ोटोशॉप में और रहा सहा दिल्ली मुंबई की सड़कों पर| इसके अलावा तो विकास बस लड़कों का नाम ठहरा और लड़के बेरोजगार ठहरे| हिन्दुस्तानी दिमाग से ज्यादा विकास तो बीमारू बिहार के जिला जमुई के गाँव गमरुआ का हो गया| इस नाते किसान की हालत हिंदुस्तान में बदतर और हिन्दुस्तानी दिमाग में बदतम रही| इधर विकास की सरकार दिल्ली में बैठकर किसान को कंपनी का डायरेक्टर बनाने में लगी| उधर विकास की इल्ली दफ्तर में बैठ कर किसान को फटा पायजामा पहनाने लगी|
हुआ तो यूँ कि शहर दिल्ली और भोपाल में किसान जब ट्रेक्टर लेकर घूमने निकले तो विकास की इल्लियाँ सकते में आ गईं, अरे! ये कैसे किसान हैं कि थीम पार्क वाली गाड़ी में घूम रहे हैं? तुर्रा ये कि कुछ किसान तो आगरा शहर के मंगल बाज़ार से खरीदी हुई पिकनिक ड्रेस भी पहने हुए थे – क्या कहें बे उन्हें जींस टॉप| पुलिस वालों के बड़े आका तो इतना घबराये कि कहीं मंगलग्रह वालों ने हमला तो नहीं कर दिया| और क्या क्या कहें|
इधर सुना है किसानी में उपज आमदनी भी बहुत बढ़ गई| कुछ किसान साहब तो ऐसे कि दो बीघा ज़मीन में चार करोड़ का देशी घास फूंस उगा कर बैठ गए| अब इन किसान साहब से को कौन पंगा ले| मगर मुद्दा बाज़ार यह गरम हुआ कि करचोरी का महकमा आत्महत्या करते किसान के गले पड़ गया कि अन्नदाता मरते मरते करदाता भी बनते जाइये| सुना कि आत्महत्या के लिए जो जहर पीया था उस पर पूरा बीस टका जी-यस-टी लगा था| सो मामला निपटा|
खैर छोडिये, इस जानेमानेशहर में हमारी कौन सुनता है| कागज पर किसान का फ़ोटो बदलवा दिए| किसान डायरेक्टर हुए और हम उनके छोटे दीवान मुनीम| किसान जी ढूढ़ रहे हैं कि नीरव्वा मिले तो पूछे कि उधार कहाँ कहाँ से उड़ायें भैया| हमारे ग्रामीण बैंक में तो ठेठ देहाती किसान को ही खैराती उधार मिलेगा, वो भी बेनामी की जमीन रहन रखकर|
बाकि जो गप्प वो है, सच तो हम न बताये कभी|
