कैद में सृजन


अभी हाल में मध्य प्रदेश की जेलों के कैदियों द्वारा सृजित की गई कलाकृतियों को प्रदर्शनी देखने का अवसर प्राप्त हुआ| हम बीस मार्च को भोपाल के भारत भवन में घूम रहे थे| कोई इरादा नहीं था कि इस प्रदर्शनी में जाएँ| अचानक पुलिसिया सरगर्मी की तरफ ध्यान गया और उस हॉल के अन्दर की तरफ निगाह डालने पर कुछ आकर्षण पैदा हुआ| साथ में मौजूद पत्रकार मालिक साहब का ध्यान तो एक कलाकृति पर टिक गया, जो बाद में उनका बटुआ हल्का के होने में परिवर्तित हुआ| बताया गया कि इस प्रदर्शनी का समापन होने वाला है| परन्तु हमें समय दिया गया|

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यह कला एवं चित्र प्रदर्शनी मध्य प्रदेश के आठ केन्द्रीय कारावासों के रहवासियों की भिन्न भिन्न माध्यमों पर की गई रचनाओं का छोटा सा संसार था|

यहाँ विषय की विविधता और बहुलता है| कैदी श्रृंगार, भक्ति, देशप्रेम, प्रकृति, गाँधी, इन्तजार आदि महत्वपूर्ण विषयों पर अपना संसार रच रहे हैं| लकड़ी पर उकेरे गए गाँधी जी के तीन बन्दर एकदम अलग और भिन्न रचना है, एकदम अनूठी| पहले से ही बिक चुकी थी| इसकी रचना में कल्पना शीलता और सादगी का अनूठा संगम है|

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ब्रह्मा – विष्णू – महेश की त्रिमूर्ति और शिव परिवार का चित्रांकन निराला था|

IMG_20160320_173321IMG_20160320_173543 कैदियों में विषय की गहराई में उतरने और डूबने की अद्भुद क्षमता दिखाई देती है| समकालीन समाज पर उनके शांत मगर गंभीर व्यंग देखते ही बनते हैं| जब हम चलने लगे तब तक जेल अधीक्षक शैफाली राकेश पहुँच गईं| संक्षिप्त बातचीत हो पाई| उन्होंने बताया कि कैदियों में लिखने और रचने की शानदार क्षमता है| उनके लिए माध्यम की कमी और स्वतंत्रता कोई बाधा नहीं बनते|

अंत में, यह चित्र मेरे मन में बस गया जो किसी कैदी की जिन्दगी का महत्वपूर्ण आत्मकथ्य बन गया है|

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सभी चित्र: ऐश्वर्य मोहन गहराना

अलीराजपुर का भगोरिया


होली के एक सप्ताह पूर्व भारत के प्राचीनतम निवासी भील और भिलाला आदिवासी जातियां अपने सदस्यों को अपना जीवनसाथी चुनने का अवसर प्रदान करतीं है| यह वह सुविधा है, जो आज सभ्य भारतीय समाज में सुलभ नहीं है, माँगनी पड़तीं है| भगोरिया एक अनुशासित प्रक्रिया है, जिसमें होली से ठीक पहले के सप्ताह में लगने वाले स्थानीय हाट (साप्ताहिक बाजार) भगोरिया मेले और उत्सव में बदल जाते हैं| खरीददारी, उत्सव, नाचगाना, और छोटे छोटे मनोरंजन के साथ प्राचीनता का नवीनता के साथ संगम देखते ही बनता है| इस वर्ष मुझे भगोरिया मेलों में शामिल होने का अवसर मिला|

चित्रों में भगोरिया – भ्रमण

भगोरिया के साथ प्रचलित रूप से मध्यप्रदेश के झाबूआ जिले का नाम जुड़ा हुआ है| झाबूआ दरअसल जिला बन जाने के कारण प्रसिद्ध हुआ और प्राचीन अलीराजपुर राज्य को अपना महत्व हासिल करने के लिए 2008 में स्वतंत्र जिला बनने तक इन्तजार करना पड़ा| प्राचीन भील राज्य आली और मध्यकालीन राजपुर मिलन से अलीराजपुर की नीव पड़ी|[i] वैसे भगोरिया का आयोजन मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के सभी आदिवासी बहुल जिलों झाबूआ, धार, खरगौन, अलीराजपुर आदि में होता है| जितना दूर दराज क्षेत्र में जाते हैं, भगोरिया अपने अधिक मूल रूप में दिखाई देता है|

चांदी के महत्वपूर्ण भारी भरकम गहनों के लदी असाधारण सौंदर्य की धनी भील और भिलाला कन्याएं एक सामूहिक गणवेश में झुण्ड के झुण्ड मेले का आनंद लेने आतीं हैं| हर झुण्ड की लडकियां आज भी एक जैसे रंग के भिलोंडी लहंगे और ओढ़नी पहनतीं हैं| परन्तु इस सामूहिकता में एकलता की थाप भी यदा कदा दिखाई देती है| जैसा कि हमेशा होता है, लड़कों में आधुनिक परिधानों का शौक मेले के पारंपरिक सौंदर्य को थोड़ा कम कर देता है| परन्तु कुछ लड़के फैंटे, कड़े और कंडोरे पहने दिखाई देते हैं|

उमरिया के भगोरिया में आती भिलाला कन्यायें

उमरिया के भगोरिया में आती भिलाला कन्यायें

मध्यमवर्गीय आधुनिकता के थपेड़े, सार्वजानिक प्रेम अभिवयक्ति को कम कर रहें हैं| पहली निगाह के प्रेम का स्थान अब पुराने प्रेम की कभी कभार वाली अभिव्यक्ति ने ले लिया है| ज्यादातर सम्बन्ध पारवारिक और सामाजिक पूर्व स्वीकृति से ही तय होने लगे हैं| दापा (वर पक्ष द्वारा दिया जाना वाला वधुमूल्य) कई बार भगोरिया से भागने के बाद भी देना पड़ता है|

यदि आप उस प्राचीन रूमानी इश्क़ और स्वयंवर के लिए भगोरिया आना चाहते हैं तो न आयें| न ही यह दिल्ली के प्रगति मैदान में होने वाले बड़े मेलों की तरह सजावटी है| मगर बहुत कुछ है भगोरिया में जो देखने और शामिल होने लायक है|

उमरिया:

सोंडवा विकासखंड का उमरिया गाँव बढ़िया सड़क और बाजार के कारण आकर्षित करता है| यह आम भारतीय कस्बों के बाजार जैसा ही है| सम्पन्नता के कारण यहाँ पर आने वाले लोगों में आत्मविश्वास दिखाई देता है| हम भारतवासी मेलों में सबसे अधिक भोजन की ओर आकर्षित होते हैं| यहाँ पर बढ़िया पकौड़े हर पांचवी दुकान पर मिल रहे थे| हाट में दुकान सँभालने और हाथ बंटाने वाली महिलाओं का काफी अच्छा अनुपात था| यहाँ पर भगोरिया के लिए निर्धारित मैदान भीड़ के कारण छोटा पड़ रहा था और आपात स्तिथि के लिए निकास नहीं था| पास के गांवों से भील और भिलाला समुदाय के लड़के लड़कियों के जत्थे लगातार आ रहे थे| जिन परिवार में बच्चे छोटे हैं वह ही पारवारिक इकाई के रूप में आते देते हैं| वृद्ध दंपत्ति में साथ आते में दिखाई दिए| लड़के लड़कियां अपने अपने अलग अलग समूह में आते हैं| आप सौन्दर्यबोध और सम्पन्नता के आधार पर आसानी से भील और भिलाला लड़कियों को पहचान सकते हैं|

यहाँ हम जैसे पर्यटकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है| बड़े बड़े कैमरे सबसे अधिक फोकस उन भारी भरकम चांदी के गहनों की ओर कर रहे हैं, जिन्हें खरीदना आज आसान काम नहीं है| हाट में आये स्थानीय दुकानदार जागरूक हैं|  आदिवासी सामान की दुकान पर आदिवासियों और बाहरी लोगों का जमघट है| हमने यहाँ के स्थानीय गायकों के भगोरिया गीत भी पेन ड्राइव में खरीदकर लिए|[ii]

वालपुर:

इस से पहले वालपुर गाँव में मुझे अपेक्षागत रूप से अधिक ग्रामीण झलक दिखाई दी| इस छोटे से गाँव में इसके आकर से दो तीन गुना बड़ा हाट लगा था| बहुत से लोगें ने भगोरिया के उसी तरह से पंडाल लगाये थे जैसे दिल्ली में भंडारों के लगते हैं| यह शायद भील बहुल इलाका है, सम्पन्नता कम है और स्वभाव की सरलता अधिक| टूटी फूटी सड़क, बहुत सारी धूल के बाद भी वालपुर मुझे आकर्षित करता है| यहाँ स्थानीय जरूरत का साधारण सामान अधिक है| मैं मुख्य चौराहे पर रखे पत्थर पर खड़ा होकर चारों तरफ देख रहा हूँ| भीड़ अनुशासित है, मगर पुलिस भी अधिक है| ताड़ी पीकर आये लड़के लड़कियां भी अधिक है| एक पुलिसकर्मी मुझे कहता है, जब तक आप शांत है, बहुत सुरक्षित है; किसी की भावना को हल्की सी चोट आपके लिए बहुत हानिकारक हो सकती है| यहाँ लोग जब तक सरल हैं, सब ठीक है मगर क्रोध जगाने के स्तिथि में बहुत भड़क सकते हैं| लड़कियां बहुत शांत शर्मीली सहमी हुई और कम आत्मविश्वास में हैं| लड़के हर कदम पर पुलिस से बचकर चलते हैं| थोड़ी थोड़ी दूर छोटे छोटे समूह में लोग मस्ती में नाच रहे हैं| झाबूआ नर्मदा ग्रामीण बैंक के परिसर में भी दो बड़े ढ़ोल, लम्बी बांसुरी और अन्य वाद्य बज रहे हैं| लोग नाच रहे है| इसके बराबर में तरह तरह के आधुनिक और प्राचीन झूले लगे हैं| थोड़ी दूर मैदान में कई बड़े बड़े ढ़ोल हैं और उनके चारों ओर घूम घूम कर नाच चल रहा है| धुल कदम ताल के साथ बहुत ऊपर तक उठ रही है| धूल के अलावा प्रदूषण नहीं है|

वालपुर भगोरिया में बांसुरी

वालपुर भगोरिया में बांसुरी

रतालू बहुत बिक रहा है| रतालू दक्षिण अमेरिका से आलू के आने तक भारत का मुख्य खाद्य रहा है| सब्जियाँ, मछलियाँ, मांस, सूखी मछलियाँ सब अलग अलग गलियों या इलाकों में बिक रहीं है| पकोड़े और बड़ी बड़ी जलेबियाँ सबसे अधिक भीड़ बटोर रहे हैं| मैं खांड के कंगन और हार देख कर उधर जाता हूँ| यह होली की पूजा में देवता पर चढ़ेंगे, प्रसाद में खाए जायेंगे| मैं बताता हूँ दिल्ली में खण्ड के खिलौने  दिवाली पर बिकते है; दुकानदार कहता है… पढ़ लिख कर तो सब लोग उल्टा काम करते हैं, दिल्ली वाले पढ़े लिखे होते है| उसकी पत्नी “इनका” मुझे फ़ोटो लेने के लिए आग्रह करती है| बाद में हँसकर कहती है, भगोरिया नाचने गाने का त्यौहार है, लड़कियों के फ़ोटो लेने का नहीं|

हल्की सी बातचीत पर लोग अपनेपन से बात करते हैं| आपके गुलाल लगाते हैं और आपसे लगवाते हैं| पुलिस शाम की साढ़े पांच बजे मेले को बंद करा देगी| पूरे प्रशासनिक अमले को अगले दिन अगले गाँव के भगोरिया इंतजाम भी करना है| हम लोग चल देते हैं| अगले दिन पता चलता है, हम लोगों के निकलते ही पुलिस ने लाठियां चलाई, कुछ लड़की छेड़ने का मामला था| बताने वाला लड़का पूछता है अगर लड़की से बात भी नहीं कर पाएंगे तो भगोरिया कैसे होगा? साथ ही मानता है कि लड़की छेड़ने के मामले बढ़ते जा रहे हैं|

पर्यटकों से:

पर्यटक अपनी सुविधा से भगोरिया के लिए किसी भी स्थान होने वाले हाट में जा सकते हैं| आपको सुविधा और संस्कृति में सामंजस्य बिठाने की कोशिश करनी होगी| मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम भगोरिया के अवसर पर स्विस टेंट की व्यवस्था करता हैं| जहाँ सुविधाजनक रूप से रहा जा सकता है| अगर आप साथ में कट्ठीवाड़ा जाने का कार्यक्रम बनाते हैं तो यह सुखद अनुभव होगा|

सुझाव:

विकास और जनसँख्या विस्फ़ोट के साथ आज मेले आदि के लिए बड़े मैदान की कमी होती जा रही है| इसके लिए मेले स्थल के निकट बड़े मैदान की व्यवस्था की जरूरत है| हर हाट में आदिवासी हस्तशिल्प और खान-पान आदि को थोड़ा प्रोत्साहन मिलना चाहिए| आदिवासी गीत संगीत पर वालीवुड का असर देखा जा रहा है, मगर उसके प्रोत्साहन के लिए भगोरिया मेले माध्यम बन सकते हैं| क्या ताड़ी को गोवा की फैनी की तरह प्रोत्साहित किया जा सकता है?

सभी चित्र: ऐश्वर्य मोहन गहराना

[यह यात्रा मध्य प्रदेश पर्यटन विकास निगम द्वारा आयोजित की गई थी]

[i] आली और राजपुर से मिलकर बने अलीराजपुर शब्द में मुस्लिम हस्तक्षेप न खोंजें| यह भील राज्य आली का अवशेष है|

[ii] लगभग १०० भगोरिया गीत हमें मानसी ट्रेवल के दुर्गेश राजगुरु (सिसोदिया) – डिम्पी भाई ने खरीदकर उपहार में दिए| आपका हार्दिक धन्यवाद|

उत्तर भारत खोज-चित्रमाला


[पिछले महीने ११ अप्रैल के दिन ख्यातिप्राप्त चिट्ठाकार जिओ पार्किन ने अपने भारत भ्रमण के दौरान बनाये गए रेखाचित्र “North India explorer Sketchbook” प्रकाशित किए| रुचिपूर्ण लगने के कारण उनकी अनुमति के साथ मैं इस आलेख को यहाँ हिंदी में प्रस्तुत कर रहा हूँ, साथ में रेखाचित्र भी उपलब्ध हैं – आनन्द लीजिये, टिप्पणियों का स्वागत है|   

 

हम इस बार गर्मियों की छुट्टियों पर जल्दी ही निकल पड़े, यह गंतव्य ही कुछ ऐसा था कि अजीब सा समय चुनना पड़ा| हम बहुत समय से भारत जाना चाहते थे, परन्तु अगर आपको भीषण मानसूनी बारिश के प्रति विशेष रूचि नहीं है तो अगस्त में दो सप्ताह के लिए भारत जाने की सम्भावना नगण्य है|

 

हमारा यह भ्रमण जाँची – परखी साहसिक यात्रा कंपनी Exploreने आयोजित किया था, जिसने हमें अभी तक निराश नहीं किया है| हमारा १५ दिन का “उत्तर भारत खोज’ यात्रा कार्यक्रम राजधानी दिल्ली से प्रारंभ हुआ और हमने उदयपुर, पुष्कर, जयपुर, आगरा, वाराणसी, और अंत में कोलकाता को यात्रा की|

 

इस यात्रा में ग्रहण करने के लिए काफी चीजें थीं, हमें वापस आये एक सप्ताह हो गया है पर मेरे दिमाग में यह अनुभव अभी तक घूम रहा है| इस तरह की जगह मैंने पहले कभी नहीं देखी, सर्वथा वास्तविक से लेकर उत्कृष्ट अपरिचित और असाधारण छवियाँ लगातार बिना रुके इस सामने आ रहीं हैं कि आप पहले देखी हुई को इतनी जल्दी समझ ही नहीं पाते| यदि आप थोडा भी दृश्यपरक व्यक्ति है तो यह आपके लिए छवियों का विस्फ़ोट है|

 

कहने की आवश्यकता नहीं है कि भारत छाविकारों के लिए सुनहरा सपना है और मैं अपने मेमोरी कार्ड को भर कर लाया हूँ| मैं अभी भी इनका संपादन कर रहा हूँ, अभी समय लेगा| हमेशा की तरह, मैंने रेखाचित्र पुस्तिका भी साथ रख ली थी –  जब भी मुझे अवसर मिला मैंने इसका प्रयोग किया|

 

हमारे यात्रा की गति काफी तेज थी और ज्यादातर जगह तो बैठ कर कुछ रेखाएं खींचने का भी समय नहीं मिल पाया| फिर भी, इस चक्कर में बहुत यात्रा की – ट्रेन से (तीन – तख्ती ट्रेन सहित, जो कि अपने में खास है), बस, नाव —  और इन सभी मौकों पर मैंने अपने सामने से कुछ न कुछ उकेर लेने का प्रयास किया| साधारणतः, इनमें मेरे साथी यात्री हैं जो किताबों और मोबाइल फ़ोन पर समय बर्बाद कर रहे हैं|

हाँ, भारतीय सड़कें भी ऐसी हैं, कि उन पर यात्रा करते हुए रेखाचित्र बनाना भी किसी रोलर कोस्टर राइड जैसा है न कि किसी आर्ट स्टूडियो जैसा शांत – सुशील माहौल| कोई फर्क नहीं पड़ता – सारे टेढ़े – मेढ़े अपूर्ण और विषय के दुहराव वाले रेखा चित्रों से उन स्तिथियों और माहौल का सही सही पता चल जाता है जिसमें यह बनाये गएँ हैं और एक ही विषय बने रेखाचित्र विभाजित प्रौस्तैन छायाचित्रकारी की तमाम विविधता के बाद भी नहीं लुभाते हैं|

जिन पृष्ठों में मैं आपको खालीपन दिखाई दे वहां मैंने अपने नोट्स मिटाए हैं – आपको उन्हें झेलने की कोई इच्छा नहीं होती – और मैंने स्कैनिंग के बाद फोटोशोप के द्वारा फ्लैट टोन जोड़ दी है|

नमस्ते!