भारतीय स्त्री निश्चित ही भारतीय संस्कृति की आधिष्ठाता देवी/देवता का वाहन है| हम संस्कृति रक्षा का हर भार उस पर डाल देते हैं| पश्चिमी परिधान परस्त पुरुषों के चलते भारतीय स्त्रियाँ अकेले ही भारतीय परिधान संस्कृति बचाने का जिम्मा उठाए हुये हैं| विडंबना, भारतीय पुरुष भारतीय परिधानों में कम ही दिखाई देते हैं पर छींटाकशी के लिए स्त्रियों को निशाना बनाया जाता है|
मुझे आज कार्यालयों में भारतीय संस्कृति के बड़े प्रतीक – परिधानों के बारे में बात करनी है| जब भी पारंपरिक परिधानों की बात होती है तो आश्चर्यजनक रूप से समारोहों, त्योहारों, उत्सवों, आयोजनों और कभी कभार कार्यालयों के “पारंपरिक परिधान दिवस” को गिन लिया जाता है|
स्त्रियों के लिए छोड़ दी गई सर्वाधिक आश्चर्यजनक ज़िम्मेदारी पारंपरिक भारतीय कार्यालय परिधानों को लेकर है| हमारी स्त्रियाँ सलवार कुर्ता, साड़ी और अन्य कई पारंपरिक भारतीय परिधान पहन कर सरलता से कार्यालय जाती हैं| कार्यालय के परिधान के रूप में भारतीय स्त्री परिधानों को आम स्वीकृति मिली हुई है|

मुझे आश्चर्य होता है कि कार्यालयों में पहने जाने वाले पारंपरिक भारतीय पुरुष परिधान (male indian office dress) कहाँ गायब है?
पुरातन व मध्ययुगीन भारत निर्विवाद रूप से विश्व की सर्वाधिक बड़ी अर्थव्यवस्था रहा| उस काल में हमारी स्त्रियों का कार्यालयों में दखल नगण्य था| कार्यालयों में उन्हें अधिकारी या कर्मचारी के रूप में नहीं, प्रायः लाभार्थी के रूप में ही देखा जाता था| इसलिए स्त्रियों के पारंपरिक भारतीय कार्यालय परिधान न हों, तो समझा जा सकता है| आज हमारी स्त्रियाँ अधिकारी, कर्मचारी व लाभार्थी तीनों रूप में कार्यालयों में जा रही हैं और प्रायः पारंपरिक भारतीय परिधानों में देखी जाती हैं| पश्चिमी कार्यालय परिधानों को स्त्रियों में कम ही स्वीकृति मिली है| यह पश्चिमी कार्यालय स्त्री परिधानों स्वीकृति अक्सर गणवेश संबंधी नियमों के दबाव में होती है|
इसके विपरीत हमारे पुरुष अक्सर पश्चिमी कार्यालय परिधानों में दिखाई देते हैं| पुरुषों में भारतीय कार्यालय परिधानों की स्वीकृति घटते हुये नगण्य हो गई है| “सेव द टाइगर” की तर्ज वाले “पारंपरिक परिधान दिवस” आयोजन हो रहे हैं| प्रायः यह आयोजन भारतीय पुरुषों में मज़ाक और मजे का प्रतीक बनकर सामने आते हैं| यह प्रश्न मुझे गंभीरता से सालता है कि क्या भारतीय कार्यालय परिधान पुरुष के लिए एकदम अनुपयुक्त है|
मैं पिछले कई वर्षों से अपने कार्यालय में भारतीय कार्यालय परिधान पहन रहा हूँ| अक्सर आगंतुक इसे गंभीरता से नहीं देखते| यदि मैं भारतीय गणवेश संबंधी विभिन्न नियम देखूँ तो पाता हूँ, भारतीय पुरुष और उनके परिधान बहुत तीव्रता से पश्चिम के मानसिक गुलाम बने हैं और उनमें भारतीय कार्यालय परिधानों के प्रति अरुचि है|
भारत में पुरुष वकीलों का वर्तमान गणवेश भारतीय कार्यालय परिधानों के प्रति सर्वाधिक समवेशी है| इसमें काले रंग का बंदगला, चपकन, अचकन, शेरवानी, के साथ सफ़ेद, काले, स्लेटी रंग की धोती शामिल है| सांप्रदायिक लोग चपकन, अचकन, शेरवानी आदि को भारतीय मुस्लिम उपसंस्कृति से जोड़ते हैं परंतु यह सभी सौ फीसदी भारतीय परिधान हैं| धोती को लेकर तो शायद ही किसी को शंका हो|
चार्टर्ड अकाउंटेंट का पुरुष गणवेश “भारतीय राष्ट्रीय परिधान” यानि धोती या चूड़ीदार पायजामे के साथ लंबे बंदगले की बात करता है| साथ ही इसमें ब्लेज़र को प्रोत्साहित करने की बात की गई है| कंपनी सचिव का पुरुष गणवेश कोट और बंदगला की बात करता है, परंतु इस में धोती या पायजामे की बात नहीं की गई है|
फिर भी यह देखने में आता है कि आधिकारिक गणवेश के भारतीय कार्यालय परिधानों के प्रति समान्यतः समवेशी होने के बाद भी हमारे पुरुष प्रायः पश्चिमी कार्यालय परिधानों के प्रति झुकाव रखते हैं| मेरा दुर्भाग्य है कि पिछले बीस वर्षों में मैंने किसी पेशेवर को भारतीय कार्यालय गणवेश में नहीं देखा|
क्या उचित समय नहीं है कि हम अपने कार्यालयों में भारतीय कार्यालय गणवेश और भारतीय कार्यालय परिधान को बढ़ावा दें| हमारे परिधान विशेषज्ञों को भी पुरुषों के लिए नए कार्यालय परिधान रचते समय भारतीय जलवायु और परंपरा पर एक निगाह डालनी चाहिए|