क्षमा पत्र -प्रदूषण जी के नाम


आदरणीय प्रदूषण जी,
सादर प्रणाम व सहृदय आभार,

क्षमा प्रार्थी हूँ, मैं उन लोगों में रहा जिन्होंने बहुत पहले, लगभग बीस बरस पहले से आप की कोप दृष्टि पाई और संभावित मृत्यु से बचने के लिए आपकी छत्र छाया से दूर जाने की चिकित्सीय सलाह पाई। यह वह समय था जब प्रदूषण जी आप समस्या तो थे आपकी भयाभयता दूर की बात हुआ करती थी। अलीगढ़ से आते हुए दनकौर तक आसमान आसमानी नहीं तो आसमानी सा हुआ करता था। इसलिए जिस समय चिकत्सीय मास्क के अलावा किसी भी मास्क को नहीं जाना जाता था उस समय मैंने आपकी कृपा से प्रदूषण रोधक मास्क को जाना-पहना और शूकर-मुखी कहलाया। इस कारण आपका निरंतर अपमान करता रहा।

माननीय, अब मैं उन लोगों में भी हूँ, जिनका जीवन फिलहाल आपके कारण बच गया है। मैं जानता हूँ, आप किसी और को मेरे किसी कष्ट का श्रेय किसी और कुटिल को नहीं लेने देंगे प्रभु।

प्रभों! इस सोमवार 10 नवंबर 2025 की दोपहर दिल्ली के बारहखंबा मार्ग पर एक कामकाजी मुलाक़ात के लिए गया था। मेरी जीभ लपलपाने लगी। पुरानी दिल्ली की दौलत की चाट याद आने लगी। साथ याद आने लगा मृदुला गर्ग जी का वह संस्मरण जिसमें उन्होंने पुरानी दिल्ली अन्य बातों के अलावा दौलत चाट का इतिहास भी दर्ज किया है। आप तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में सर्वव्यापी हैं और पूरे आर्यवृत्त पर आप की अनन्य कृपा बनी रहती है। अतः आप जानते हैं, यह कायस्थ कुल कलंक भले ही “पीना” नामक सिद्धि न पा सका “खाना” “जीभ लपलपाना” और “लार टपकाना” नामक जिह्वाहिक सिद्धि उसे सहज प्राप्त होकर उस के मानस पर अधिकार कर बैठीं है।

माँ अन्नपूर्णा की इस कु-कृपा से हे स्वामी, उस दिन मेरी भ्रष्ट बुद्धि पुरानी दिल्ली की राह चलने लगी थी। जैसे तैसे भागते दौड़ते अधमन होकर जब मैं उस बैठकी से बाहर निकला – आप अपने वायुतत्त्व रूप में मेरे समक्ष प्रगट होकर कृपामान व्याप्त सहज प्राप्त थे। आप की अपरंपार क्षमता के आगे मेरा मास्क मात्र कपड़े की तुच्छ कतरन मात्र बनकर रह गया। हे सर्वव्यापी, मैं खाँसने लगा। मेरा गला दुखने लगा और सीना भारी होने लगा। फिर भी जिह्वा अपना रसना नाम साकार सार्थक कर ने से बाज नहीं आ रही थी। मुँह से लार टपकते हुए उदर पार उदरांत तक जा रही थी। मगर कुछ वार्तालाप करने के लिए जब मैंने मुख संचालन किया – आपने मेरे मुख में सार्थक प्रवेश किया।

हे आनंददाता! तत्क्षण मेरा मुख सूख गया – जिह्वा सूखे पात की भाँति उलटने लगी। जल के अभाव में जलन का एहसास होने लगा। मान्यवर मैं दिल्ली गेट नामक मेट्रो स्टेशन से आगे न जा सका और घर की ओर लौट चला। तब मन में असंतोष था, खीज थी, कहे तो आप से मानव मात्र को मुक्त करने की भावना भी थी।

हे महाकृपालू दयावान – जिस समय मैं घर पहुँच कर अदरक इलयाची युक्त चाय नामक काढ़ा पीकर अपने आप को संतुष्ट करने का प्रयास कर रहा था। मेरा मोबाइल छमछमाने लगा। और साथ में दयावान वह चमचमाने भी लगा। समाचार आ रहे थे कोई बड़ा विस्फोट हुआ था – कई लोग मारे गए। और उसके बाद वह सब हो इस तरह की घटना के बाद होता है।

माननीय कृपालू – इस के बाद अगले तीन दिन तक अपने आप को संयत करते के प्रयास करते हुए अब आकर आपका आभार व्यक्त करने में सक्षम हो पा रहा हूँ। दयानिधान, आप क्षमाशील हैं, मेरा मनोभाव समझेंगे।

अपनी गति – यात्रा स्थान – भीड़ आदि की गणना और अनुभव से मैं जानता हूँ – यदि आप कृपा न करते – उस दिन मेरा उस समय लगभग उस स्थान पर या उसके बेहद निकट होना तय ही था जब यह धमाका हुआ – लोग मारे गए।

हे मेरे जीवन दाता प्रदूषण, मैं आपका आभारी हूँ। जिस प्रकार आने मेरा जीवन इस समय बचाया है आप अपने आप से भी मुक्त करें और आपने जिन रोगों से मुझे उपकृत किया है – प्रभो उनसे भी मुझे बचाए।

आपका आभारी क्षमाप्रार्थी
ऐश्वर्य मोहन गहराना

नमक की कमी


नमक का नाम चीनी के साथ एक आवश्यक जहर की तरह हमारे आधुनिक जीवन में आता है। इन्हें अपनी ख़ुराक में कम करने और इनसे डरने में हमारा जीवन जाया होता है।

दो साल पहले मेरी चिकित्सक द्वारा नमक की कमी के प्रति चेताया जाना मेरे लिए विस्मयकारी था। आँकड़े की माने तो मैंने इसे आवश्यक गंभीरता से नहीं लिया।

इस माह यह मारक सबक बनकर सामने आया जब पापा को सिर्फ सोडियम पोटेशियम की बेहद कमी के कारण तीन दिन आईसीयू सहित कुल पाँच दिन अस्पताल में बिताने पड़े। वह आज भी यह मानने के लिए तैयार नहीं है कि नमक की कमी नामक कोई स्वास्थ्य समस्या इस रहती दुनिया में मौजूद है। वह सोचते हैं हम उनका मन बहलाने के लिए यह बचकाना बहाना रच रहे हैं। फिलहाल चिकित्सक और उनका नुस्खा उनके सरकारी संदेह के दायरे में है।

मैं पुश्तैनी/जाति तौर पर कम मिर्च मसाला खाने वाला परिवार से आता हूँ। जब कम मिर्च मसाला खाया जाए स्वाद के लिए नमक की आवश्यकता स्वतः कम हो जाती है। फिर भी चटनी, अचार, सलाद और नमकीन के शौक नमक की आपूर्ति का ज़रिया होते हैं। वह इस भगदड़ की ज़िंदगी में कब और कहाँ पूरे होते हैं।

तीन दशक पहले जब मेरी माँ को थोड़ा रक्तचाप बढ़ा तो पहले मैंने और बाद में सारे परिवार ने दही, सलाद आदि से शुरू करते हुए किसी भी खाद्य में ऊपरी नमक डालना बंद कर दिया।

इसके बाद बाद उच्च रक्तचाप और मधुमेह से बचाव की चिंता के चलते चीनी नमक के पारिवारिक उपभोग में और भी कमी आई।

उधर बढ़ती उम्र के साथ हमारी ख़ुराक कम होती जाती है तो कुल पारिवारिक उपभोग के अनुपात में अधिक उम्र और कि कम ख़ुराक वाले लोग वास्तव में कम नमक ले पाते हैं।

अब फिलहाल पापा को कुछ दिन के लिए प्रतिदिन पाँच ग्राम अतिरिक्त नमक खाने के लिए कहा गया है। हर दो घंटे बाद मैं उनपर नमक उपदेश झाड़कर आ रहा हूँ।

मगर रक्त जांच के अनुसार मेरा खुद का सोडियम और क्लोरीन दोनों काफी कम है और आदत के कारण नमक जीभ पर नहीं चढ़ रहा। मेरी चिकित्सक के अनुसार थायराइड की संभावित समस्या के कारण मुझे वापिस आयोडीन नमक भी खाना है। लाहौरी, सेंधा, लाल गुलाबी, काले पीले जैसे किसी पाकिस्तानी नमक के पंगे में ही नहीं फंसे रहना है।

नमक यानि सोडियम पोटेशियम की इस भारी कमी से होने वाले दुष्प्रभाव आप सब खुद ढूंढ ही लेंगे। 

प्रेपी के पत्र


क्या ही बेहतर होता मैंने वह किताब ही नहीं खरीदी होती? गुनाह हुआ खरीदी और पढ़ी। किताब में डूब कर मर सा ही जाता मगर समझ कहीं कहीं साथ छोड़ देती थी। गुम हो जाता था उस स्वप्न संसार में और उसके स्वर्गाभास और नरक अनुभवों में जो लेखिका अपने प्रेपी को लिखे चली जा रही थी।

यह एक गहन लोक की लिखाई है, वह किताब जो प्रकाशित न हो सकी, कैसी होती, कितना होती, सब मेरे दिमाग में घूम रहा है, मैं समझ ही नहीं पा रहा हूँ, मगर समझ है कि उसमें कुछ उतरता जाता है। वह किताब जो लिखी गई, वह अनुवाद जो किया गया, वह जिस पर कानूनी हुकूक के सवाल दीवार बनकर खड़े हुए। और वह किताब जो मेरे हाथ न आ सकी, उफ़ यह भी हमारे साथ होना था।

मैं लगातार सोचता जा रहा हूँ, वह पत्र कैसे होंगे, उनमें क्या खुशबू होगी, क्या गमक उठती होगी जो लेखिका को लिखे गए थे।

एक दुराग्रह सा आग्रह कि पढ़ा जाए उन पत्रों को, किसी एक पत्र को ही सही, बस एक पत्र चल जाएगा। हाल तो यह था कि पूरा पत्र नहीं एक सिर्फ़ एक लफ़्ज़ ही पढ़ लूँ। अरे सिर्फ़ एक हर्फ़ भी चल जाएगा।

किताब पूरी हुई, मन नहीं भरा, दो बार तीन बार पढ़ना चाहता था। तभी एक पूरा पत्र पढ़ने के लिए मिल गया। लेखिका ने अपने को लिखे गए एक पत्र का अनुवाद मुझे भेजा। भले ही पूर्व प्रकाशित था, मगर मैं इस से वंचित था।

उफ़, यह भी नया जुल्म संगीन होना था मुझ पर। यह एक नया तिलिस्म रच गया। अब सही बताऊँ, किताब एक तरफ रखी है, तीन बार पढ़े जाने के उस वादे के पूरा होने का इंतजार करते हुए, जिसे मैंने हर घंटे इस किताब के कान में गुनगुनाया था। और अब मैं बेवफ़ा हो गया। अब वह दिन है और आज का दिन, छह बार पत्र पढ़ चुका हूँ।

दिल कहता है, उस दिन अगर तुम, नाक सुड़कते गुटटे और कंचे खेलते बालक न रहे होते तो यह पत्र तुम्हारे लिए ही लिखा हुआ होता। जिसे यह पत्र पहले पहल यह पत्र मिला होगा, अगर वह कवि न होती तो और क्या ही रही होती। मैं जलन के मारे मरा जा रहा हूँ। पत्र पढ़ा जा रहा हूँ।

रो रहा हूँ इस दुख से कि पत्र मुझे नहीं लिखा गया, रो रहा हूँ इस सुख से आखिरकार एक पत्र पढ़ सका हूँ मैं।

शुक्रिया तेजी ग्रोवर – आपका बहुत बहुत बहुत ज्यादा शुक्रिया।

शुक्रिया आशुतोष दुबे का जिनकी एक फेसबुक पोस्ट पर कुछ बड़बड़ाहट से शब्दों में उस पत्र को पढ़ पाने की इच्छा व्यक्त की और तेजी ग्रोवर तक बात जा पहुँचीं।

तेजी, आपकी किताब के साथ यह बेवफ़ाई खत्म कर सका तो दोबारा जरूर पढ़ूँगा, तिबारा पढ़ूँगा, किसी दिन जरूर बताऊंगा कैसी लगी। अभी तो एक जादू सा तारी है।