हलवा परांठा एक ऐसा पकवान है जिसे ठीक से बनाया या खाया न जाए तो बेहद खराब लगता है| जिन लोगों ने इसे नहीं खाया है तो घर पर लूचई या लूची (मैदा की पूड़ी) को देशी घी में थोड़ा करारा सेक कर सूजी के हलवे के साथ खाकर अनुभव कर सकते हैं| बढ़िया हलवा परांठा देशी घी में ही बनता है|
देशी घी के सूजी या रवा हलवे के बारे में हम सब जानते हैं| परंतु, हलवा परांठा का परांठा घर पर बनना मुश्किल है| ऐसा इसलिए कि पहले तो इसका आकार बहुत बड़ा होता है और दूसरा यह तवे पर घी चुपड़ कर सिका हुआ परांठा नहीं है, बल्कि तला हुआ परांठा है|
यहाँ यह बात समझने की है कि परांठा परतों से तय होता है न कि सिकने और तलने के ढंग से| यह बात कहते सुनते समय आप आलू कचौड़ी और आलू पराँठे का ध्यान कर सकते हैं| कायदे से आलू पराँठे में में पिट्ठी की परत है आलू कचौड़ी में पर्त नहीं| परतों वाली यही बात तवा परांठा, तंदूरी परांठा और कड़ाई वाले तले हुए पराँठे को परांठा बनाती है|
वैसे हलवे पराँठे का परांठा दिल्ली की परांठा वाली गली के पराँठे के मुक़ाबले पूरी तरह से परांठा है|
इसमें मैदा की बहुत सारी परतें होती हैं जैसे किसी भी सादे पराँठे में हो सकती हैं| मैदा के परते बार बार बनाना थोड़ा कठिन हो जाता है, इसलिए बड़े आकार का परांठा बनाया जाता है| आम तौर पर इस बार में आधा किलो तक मैदा ली जा सकती है| दुकानदार इसे काटकर हलवे के साथ तौल कर बेचते हैं|
मुझे अलीगढ़ शहर का देशी घी वाला हलवा परांठा पसंद है| इसका पहला कारण है इसका लगभग कुरकुरा सिंका होना, ठीक ठाक संख्या में परतें रहता और देशी घी का प्रयोग| यह बात हलवे को लेकर भी है| हर दाना पूरी तरह घुला हुआ होता है|
सभी जगह हलवा परांठा तौल कर बेचा जाता है| अगर आप पाव भर (250 ग्राम) हलवा परांठा लेते हैं तो लगभग एक बड़ा दौना भरकर हलवा और शेष परांठा मिलता है| परंतु हलवा परांठा को लेकर मेरी एक शिकायत हमेशा बनी रही| बड़ी बड़ी दुकानों में भी हलवा परांठा अखबार पर रख कर देते का चलन आज भी बना हुआ है| पहले यह पत्तल और दौने पर दिया जाता था| आज भी कोई हलवाई इसे थाली में देना पसंद नहीं करता| मुझे लगता है कि अगर थाली का प्रयोग नहीं करना है तो पत्तल का प्रयोग किया जाना चाहिए|
