करोनाकाल के कार्यालय योद्धा


पिछले दिनों मेरे सामने एक अजीब समस्या आई| एक कंपनी के क़ानून विभाग ने अपने मानव संसाधन विभाग की ओर से पूछा, करोना सम्बन्धी सावधानी के कारण कार्यालय बंद होने के बाद भी अगर कोई  कर्मचारी कार्यालय आने के लिए कंपनी पर दबाब बनाएं तो क्या करना चाहिए? यह मेरे लिये पाठ्यक्रम के बाहर के प्रश्न जैसा था|

फिर भी, मेरा हृदय गदगद हो उठा| मैंने कहा ऐसे कर्मयोद्धा के चरण धोने चाहिए और कार्यालय में उनके रहने खाने का प्रबंध किया जाए| इस से पहले मैं वास्तव में कुछ समझता, मानव संसाधन विभाग ने कहा, इनमें से आधे लोग तो वास्तव में कार्य ही नहीं करते – वास्तविक नाकारा है| मैं हैरान था| मैंने इस करोना काल में अपने कई क्लाइंट के साथ बात की| तीन श्रेणी विशेष के कर्मचारी कार्यालय आने की अनुमति माँगते पाए गए|

पहला, जिनके कार्यविवरणों के हिसाब से दिन के अंत में उन्हें कुछ भी रिपोर्ट करने के लिए नहीं था – खुद मानव संसाधन विभाग, प्रशासनिक इकाई, चपरासी, निजी सचिव, या ऐसे अन्य पद जिनमें दूसरों के कार्य करवाने या निगरानी रखने से अधिक कोई काम ही नहीं था| इनमें एक गर्भवती महिला प्रशासनिक अधिकारी शामिल थीं, जिन्हें काम अपना छूट जाने की बहुत अधिक चिंता थी|

दूसरा, जिन्हें कोई भी वास्तविक काम करते नहीं देखा गया था परन्तु चापलूसी, पारस्परिक सम्बन्ध, मिल बांटकर भोजन करना और टीम भावना इनके अच्छे गुण थे| यह किसी से भी काम करवा और निकलवा सकते थे| परन्तु दिक्कत यह थी कि घर से इनके लिए इनमें से कोई भी काम करना कठिन था| कुछ तो वास्तविक काम करने की आदत या गंभीरता नहीं थी, कुछ उनके परिवार उन्हें और उनके काम को इतना गंभीर समझ रहा था कि उन्हें घर पर काम करने का सही माहौल मिल पाता|

तीसरा और सबसे गंभीर वर्ग लोग थे जिन्हें अनियोजित अधिकारियों के साथ काम करना था| इन्हें दोपहर तक कुछ काम अपने मातहतों को बताने के लिए नहीं दिखाई देता, उसके बाद उन्हें रात दस बजे तक का काम थमा देते हैं| इन्हें हर काम में जीवन मरण का प्रश्न दिखाई देता है| कर्मचारी हमेशा इन्हें कामचोर लगते हैं| यह हर कर्मचारी को कार्यालय खुलने से पंद्रह मिनिट पहले कार्यालय में देखना चाहते हैं, पर खुद समय पर कार्यालय नहीं पहुँच पाते| इस तरह के अधिकारियों को करोना काल में सुबह से लेकर देर रात तक कभी भी कर्मचारियों को काम बताते देखा गया| इन्होने अपनी टीम में कभी तय नहीं किया कि दैनिक काम किस समय तक बता दिए जायंगे और किन कामों को गंभीर मान कर तुरंत बताया जा सकता है|

अधिकतर अधिकारी इस प्रशासनिक क्षमता की कमी का शिकार होते हैं| कोई भी अधिकारी जो महीने में एक दो बार से अधिक आधिकारिक कार्यालय समय के बाद में मातहत को कोई काम बताता है, उसको गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए| इन लोगों को सामान्य प्रशासन और घर से काम करने करवाने के प्रशिक्षण की आवश्यकता है| इस तीसरी श्रेणी के कर्मचारियों से मेरी सहानुभूति है| दुःख है कि इस प्रकार के अधिकारियों को अक्सर बेहतर मन लिया जाता है|

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