यह सकारात्मकता की अतिशयता का युग है| हम बात बेबात में सकारात्मकता को पकड़ कर बैठ जाते हैं| हो यह रहा है कि नकारात्मकता का नकार जीवन पद्यति बन गया है, बिना यह समझे को नकारात्मकता को नकारने के चक्कर में हम स्वभाविक सकारात्मकता को छोड़ बैठे हैं|
एक बच्चे से शौचालय का दरवाज़ा खुला रह गया| कुछ हो देर में सारा परिवार उसे समझाने लगा कि शौचालय से नकारात्मक ऊर्जा निकलती है जिस कारण घर में दरिद्रता आती है| बेचारा न सकारात्मकता समझा न दरिद्रता, रोने लगा|
शौचालय का महत्त्व ही यह है कि तन-मन की नकारात्मकता को आप वहाँ निकाल आते हैं और वास्तविक सकार का अनुभव करते हैं| आप तरोताजा महसूस करते हैं| शयनकक्ष और शौचालय वास्तव में दो ऐसे स्थान है जहाँ बसे मौलिक विचार आप तक आते हैं| यह दोनों स्थान सकारात्मक है|
वास्तव में नकारात्मकता क्या है? विकास नकारात्मक है, क्योकि यह यथास्तिथि को नकारने से बनता है| क्या संतोष नकारात्मक है क्योंकि यह परिश्रम और विकास को नकार देता है; नहीं संतोष प्रायः सकारात्मक है और जीवन में शांति और स्थायित्व लाता है| पर जीवन में हम इस सब को सरलता से नहीं समझते|
वास्तव में जिसे हम स्वीकार करना चाहते हैं वह सकारात्मक लगता है| हमारा प्रिय नेता सकारात्मक और उसकी आलोचना नकारात्मक लगती है| जबकि सब जानते हैं चापलूसी, अंधविश्वास, किसी भी व्यक्ति के सही गलत को सम्यकता से न देख पाना नकारात्मकता है| यानि वास्तव में समालोचना और आलोचना जन्य प्रशंसा सकारात्मक है, चापलूसी और निंदा नकारात्मक| यहाँ भी एक मज़ेदार बात है, निंदा किसी को नकारात्मक नहीं लगती, बल्कि यह तो आज बड़ा व्यवसाय है जिसे गोसिप का नाम देकर मनोरन्जन के लिए बेचा जा रहा है| हम निंदा को पहचान ही नहीं पाते कि यह स्वस्थ मनोरंजन है या नकारात्मकता| वास्तव ने किसी अभिनेत्री का नृत्य सकारात्मक मनोरंजन है और किसी पुरुष से उनका नाम जोड़ना नकारात्मक|
शौचालय की बात पर वापिस जाते हैं – शौचालय यदि साफ़ है तो कोई कारण नहीं कि यह नकारात्मक ऊर्जा देगा| परन्तु यदि, हमारा मन शौचालय को लेकर अच्छे विचार नहीं रखता तो यह नकारात्मक महसूस होगा| परन्तु अपने आप में शौचालय सकारात्मक है, यह आपके तन मन के नकारात्मक अवशिष्ट को निकालने में मदद करता है|
शयनकक्ष और शौचालय वास्तव में दो ऐसे स्थान है जहाँ बसे मौलिक विचार आप तक आते हैं|
पुनश्च: कुछ मित्रों का कहना है कि शौचालय में जीवाणु विषाणु की अधिकता के कारण उसे नकारात्मक ऊर्जा युक्त माना जाना चाहिए; यह सब हमारी सोच है, घर में सबसे अधिक जीवाणु विषाणु रसोई के बर्तन मांजने के स्थान पर होते हैं, या हमारे तन में| शौचालय से तो आप उन्हें तुरंत बहा आते हैं|
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अति सुन्दर। बहुत तार्किक ढंग से आपने एक ऐसे मुद्दे को सामने रखा है जो हर रोज़ की दिनचर्या का अंग। इस वस्तुत: सकारात्मक आलेख के लिए बधाई।
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धन्यवाद
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