विश्व-बंदी २८ अप्रैल


उपशीर्षक – करोना काल का भोजन उत्सव

ग़लतफ़हमी है कि धर्म भारतियों को जोड़ता और लड़ाता है| हमारी पहली शिकायत दूसरों से भोजन को लेकर होती है| इसी तरह भोजन हमें जोड़ता भी है| करोना काल में भारतीयों को भोजन सर्वाधिक जोड़ रहा है| यहाँ तक कि रोज़ेदार भी भोजन और पाक-विधियों पर चर्चा में मशगूल हैं| पारिवारिक समूहों से लेकर मित्रों के समूह तक पाक विधियों की चर्चा है|

मैं परिवार में भोजन रसिक के रूप में जाना जाता हूँ, परन्तु इस समय देखता हूँ कि जिन्हें बैंगन पुलाव और बैगन बिरियानी का अंतर नहीं पता वह भी उबला-बैंगन बिरियानी और भुना-बैंगन बिरियानी के अंतर पर चिंतन कर रहे हैं| जिसे देखिये नई विधियाँ खोज रहा है और पारिवारिक और निजी स्वाद के अनुसार|

अभी पिछले सप्ताह परवल की चटनी बनाई थी तो मित्रों, सम्बन्धियों और रिश्तेदारों ने उसके तीन अलग अलग परिवर्धित संस्करण बनाकर उनके चित्र प्रस्तुत कर दिए| मैं गलत हो सकता हूँ, मगर स्वाद के हिसाब से लॉक डाउन के पहले ७-१० दिन साधारण घरेलू खाने के रहे, उसके बाद नए नाश्तों ने ७-१० दिन रसोई सजाई| उसके बाद भारतीय रसोइयों में दोपहर और शाम के पकवानों की धूम मची – मुगलई, पंजाबी, कायस्थ, लखनवी, बंगाली, उड़िया, गुजरती, मराठी, बिहारी, आन्ध्र, उडुपी, चेत्तिनाड, केरल, आदि अलग अलग पाक परम्पराओं को खोजा और समझा गया है| मगर गूगल बाबा जरूर सही जानकारी दे पाएंगे| अगर कोई सही दिशा निर्देशक जनता को सर्व-भारतीय पाक विधियों के बारे में बताने लगे तो राष्ट्रीय एकता को मजबूत होने में एक अधिक समय नहीं लगे| अब हम मिठाइयों की और बढ़ रहे हैं| मैं अगले महीने इटालियन, मेक्सिकन, थाई, जापानी आदि पाक-विधियों के भारत में प्रयोग की सम्भावना से इंकार नहीं कर सकता|

भोजन प्रेमी भारतीयों के लिए सबसे बड़ी कठिनाई पाक सामिग्री की कम उपलब्धता है तो सबसे बड़ा प्रेरक भी यही है – उपलब्ध सामिग्री के नए नवेले प्रयोग, नए स्वाद, नया आपसी रिश्ता|

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