विश्व-बंदी २१ अप्रैल


उपशीर्षक – प्रतिरोधक क्षमता का दुःख

यह लगभग सुखद परन्तु अत्यंत दुःखद समाचार था| भारत में ८० फ़ीसदी लोगों में करोना के लक्षण नहीं दिखाई दे रहे| यह शायद वैसा ही है कि जैसा एचाईवी पॉजिटिव होना एड्स होना नहीं होता, पर संवाहक होना हो सकता है| सुखद यह है कि आप शायद विषाणु का मुकाबला करने में अभी तक सफल हैं या आप जीत चुके हैं या विषाणु को शांत तो कर ही सके हैं| हो सकता है, विषाणु शांत रहकर पुनः हमला करे या आपके शरीर को छोड़ जाए| परन्तु एड्स के मुकाबले यह मामला इसलिए अधिक ख़तरनाक है कि उसमें विषाणु का प्रसार यूँ ही नहीं हो जाता, जैसा कि करोना विषाणु के मामले में हो सकता है| बिना किसी लक्षण के आपको नहीं पता लगता कि आप के शरीर में विषाणु का घर या युद्ध स्थल है| आप अनजाने ही बीमारी फैला सकते हैं या आपके अपने शरीर में ही बाद के लिए यह बाद के लिए रुक सकता है|

क्या अपनी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना नुक्सान तो नहीं कर जाएगा? रोज सुबह साबित लहसुन के साथ समभाग अदरक चबाने के बाद चाय पीने से फ्लू का ख़तरा कम रहता है यह मेरे परिवार का पुराना अनुभव है| भारत में तो फ्लू से बचने के लिए तुलसी-अदरक-काढ़ा चाय है ही| फेंफड़ों की मजबूती के लिए मैं हर जाड़ों में ५०० ग्राम शहद २५ ग्राम छोटी पिप्पली मिलाकर उसकी माशा भर लेता ही हूँ| अन्य भारतवासियों के पास भी अलग अलग बहुत से उपाय हैं – हल्दी सौंठ का दूध से लेकर कबूतर का शोरबा तक| आजकल के साफ पर्यावरण में जब वायु प्रदूषणजन्य बीमारियाँ नहीं हैं, पता कैसे चले कि श्वास या फेफड़ों को पुराना कष्ट है या नया करोना? शायद सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता का विकास होने तक हमें लम्बी और धीमी लड़ाई लड़नी होगी| यह थकाऊ और उबाऊ नहीं होना चाहिए|

अब द्रुत जाँच किट को भी बेअसर पाया जा रहा है| राजस्थान सरकार के बाद अब भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद ने इनके प्रयोग को दो दिन के लिए रोक दिया है| कई बार लगता है काम पर वापिस जाएँ शेष सब भाग्य पर छोड़ दिया जाए|

खैर हम भारतीय हैं तो घर पर नए नए खाने पीने के प्रयोग चल रहे हैं| कुछ किताबें, कुछ फ़िल्में, कुछ गाने और बचे हुए बहुत से काम धाम|

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