विश्व-बंदी १० अप्रैल


उपशीर्षक – स्व-मुंडन 

अगर लॉक डाउन नहीं होता तो अपने शहर अलीगढ़ पहुँचे होते| शिब्बो की कचौड़ी, जलेबी हो चुकी होती और चीले का भी आनंद लेने का प्रयास चल रहा होता| शायद अपने किस्म की कुछ खरीददारी जो दिल्ली में अक्सर संभव नहीं होती, उसे अंजाम दिया गया होता| इस से अधिक यह भी कि मिलने जुलने के भूले बिसरे कुछ पुराने वादे निभाने की जुगत की जाती या फिर उन्हें अंजाम न दे पाने के कारण नई शिकायतें पैदा होतीं| पुराना घर दो चार दिन के लिए गुलजार होता, खुश होता और कहता – आते रहा करो बेटा| मैं पुराने घर की ऊँगली पकड़ कर दो रात सोता| पति पत्नी दिल्ली छोड़ कर अलीगढ़ या किसी और छोटे मझौले शहर लौट जाने के अपने पुराने संकल्प पर कुछ चर्चा करते| पुराने दिन एक बार फिर से बिसरा दिए जाते|

जनता कर्फ्यू वाले रोज बाल कटवाने जाने का इरादा था| कुछ इच्छा नहीं हुई फिर हिम्मत| बाल बहुत बढ़ गए थे| कुछ दिन पहले संदीप पारीख ने ट्विटर पर लिखा था कि उन्होंने इलेक्ट्रिक रेज़र के ट्रिमर का प्रयोग कर कर बाल काटें हैं| आज उनका अनुभव प्रयोग में  लाया गया| स्वयं बाल काटे गए| थोड़ी सहायता बेटे से लेनी पड़ी| बदले में उसका कटोरा कट करना पड़ा| कौन बाप बेटे का कटोरा कट करता कराता है? बात यह भी है कि उसके विद्यालय में कटोरा कट की अनुमति नहीं है तो जल्दी ही उसको सादा कटिंग करवानी पड़ेगी| कुछ दिन खुश रहेगा| पिताजी ने भी अपनी कटिंग का आग्रह किया है|

देवदत्त पटनायक की मेरी गीता आज समाप्त हो गई| यह मेरे लिए पहली ऑडियो बुक थी| यह अनुभव अच्छा रहा| झाडू पौछा और टहलते समय इसे सुना गया| ज्ञान और समझ में वृद्धि महसूस हुई| दूसरी ऑडियोबुक खरीद ली गई| इन दिनों में सुनने सुनाने का काम बढ़िया चल रहा है| परन्तु जो काम होने से रह गए हैं उनकी बड़ी चिंता हो रही है| दिल भी तो ठीक से काम करने में नहीं लगता|

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