रविवार को रात उतरते उतरते जनता कर्फ्यू की सफलता का जोश उतरने लगा था| बहुत कम होता है सरकार गंभीर और जनता अधीर हो| कहाँ कर्फ्यू कहाँ लॉकडाउन है, यह चर्चा का विषय है| जनमानस में वास्तविकता तस्वीर ले चुकी है|
क्या समय है यह? कश्मीर के बाहर लॉकडाउन और कर्फ्यू के अंतर को किसी भारतीय ने अनुभव नहीं किया था| ऑडियो या विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के साथ सब के दफ़्तर बैठकों, दस्तरखानों और ख़्वाबगाहों में सज गए हैं| मैं अपने मुवक्किल कंपनियों के लिए ‘कोविद-१९ के प्रति लड़ने के तैयारी के घोषणापत्र” भर कर ऑनलाइन जमा कर रहा हूँ| क़ानून, सरकार और मुवक्किल करवट बदल रहे हैं| कुछ देर पहले अनिवार्य बताया गया यह घोषणापत्र अब मर्जी का मालिक हो गया है| राज आग्रह को भी राजहठ मानकर उसे जमा किया जा रहा है|
खबरें अच्छी नहीं हैं| शेयर बाजार लुढ़कने और गिरने की बात आज पुरानी हो चुकी थी – लगता था कि तीसवें माले के कूदने वाले को छब्बीसवें माले पर जैसे तैसे रोका गया है| महीने भर में बाजार चालीस हजार से छब्बीस हजार पर हैं| शेयर बाजार में लगा बहुत सारा पैसा डूब चुका है|
पिछले एक महीने में बहुत कुछ बदल चुका था और अब यह सुबह से शाम बदल जाता है| माहौल में अंदेशा था और सरकार राहत देने के लिए सुझाव मांग रही थी| राज्य सरकारें अपने आपातकालीन प्रयासों को युद्ध मान चुकी थीं| अगर सख्ती नहीं की तो देश बचाना मुश्किल होगा|
जिन्हें पैसे से सब कुछ खरीदने की आदत थी या जिन्हें हर रोज पानी पीने के लिए कूआँ खोदना था – अब भी गंभीरता समझने में नाकाम लगते थे| हर कोई मुख पर डर और दर्द लाने से बच रहा था| अभी भी नकारात्मक को नकार देने की सकारात्मकता चरम पर है| या शायद उम्मीद पर अभी भी दुनिया कायम थी|
यह एक भावहीन रात थी|
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मंगलकामना मंगलवार का प्रारंभ हुआ और बाजार में कुछ होने की उम्मीद थी| वित्तमंत्री को दोपहर और प्रधानमंत्री को शाम को देश में बात करनी थी| वित्तमंत्री के संयत और शान्त शब्दों में लम्बी लड़ाई के ठंडी आह थी| बहुत सारे पत्र-प्रपत्र भरने से राहत दे दी गई थी|
शाम होने को थी और मौसम ख़राब हो रहा था| ठंडी हवाओं वाली आंधी और उसके बाद बारिश| प्रधानमंत्री आठ बजे राष्ट्र के सामने थे| देश अपने आप को इक्कीस दिन के लिए बंद कर रहा रहा था| यह जनता कर्फ्यू नहीं, सरकारी लॉक डाउन है| अगर आप इक्कीस दिन घर में बंद नहीं रहते तो देश इक्कीस साल पीछे चला जाएगा| शांत संयत गंभीर शब्दों में इस दशक का सबसे प्रभावी वक्ता गंभीरतम खतरे से आगाह कर रहा था| परन्तु मन में एक टीस थी – अगर आप अनुशासित नहीं हुए तो और गंभीर कदम उठाने होंगे|
इस रात सम्वत्सर २०७६ दबे कदम इतिहास के काले पन्नों में गुम हो गया|