जलता देश – आधार और नागरिकता


देश जलता है धूआँ धूआँ| क्या यह अचानक है? क्या देश को जलने की अनुमति दी जा सकती है? जब देश अपनी उत्पादकता के सबसे नीचे पायदान पर हो तो तब क्या इस प्रकार के अराजक माहौल को पैदा होने की अनुमति दी जा सकती है? जिस समय देश गरीबी और बेरोजगारी के सबसे ख़राब पायदान पर खड़ा है, उस समय हम विदेशियों को नागरिकता देने की घोषणा कर रहे हैं| यह सब उस समय हो रहा है जब लाखों लोग विदेशी कहकर अस्थाई जेलों में बंद कर दिए गए हैं और उन में से कुछ को सरकार नागरिकता देना चाहती है, बाकी लोगों का सरकार क्या करेगी उसे खुद नहीं पता|

राष्ट्रीय नागरिकता पंजी कोई आसाम में लागू होने के साथ पूरे भारत में क्यों नहीं लागू हुई मुझे यह पूछना है| शेष भारत में हमने हास्यास्पद आधार/अद्वितीय पहचान संख्या को चुना| आखिर क्यों हमने  देश के सभी वैध अवैध वासियों को आधार उपलब्ध कराया? क्या यह देश के संसाधनों की बर्बादी नहीं थी? साथ ही हमने आधार के हित में जो तर्क दिए वो भी आज तक गलत साबित हुए हैं जैसे सरकारी योजनाओं के लाभ के सीधे हस्तांतरण की बात| यह अलग बात हैं कि हमें दुश्मनों की सुविधा के लिए देश के नागरिकों और निवासियों का पूरा बायोमेट्रिक्स डाटा तैयार कर दिया है| आधार अभी तक ऐसा ताला साबित हुआ है जिससे सुरक्षित की जाने वाले संपत्ति का कुल मूल्य कम था| आधार पूरी तरह से संसाधनों तकनीक जनविश्वास और जनसहयोग के दुरूपयोग का मामला है| आखिर में नागरिकता पंजी के समय में आधार पर प्रश्न क्यों कर रहा हूँ?

क्योंकि सरकार और ठेकेदारों की नीयत किसी सही कानून और निष्कर्ष पर पहुँचने की नहीं है| सरकार नागरिकता कानून और नागरिकता पंजीकरण को उसी प्रकार के भावनात्मक नारेबाजी में प्रयोग करना चाहती है जैसा आधार  या अन्य पुरानी योजनाओं का दुरूपयोग सरकारें करती रहीं हैं|

नागरिकता पंजीकरण के बारे में हास्यास्पद तर्क पिछले कई दशकों से सरकारें दे रहीं हैं –  कि यह नाम मात्र का राष्ट्रीय हैं और सरकार समर्थक सत्ता बने रहने तक उस पर अंधविश्वास भी करते रहे हैं| अगर यह राष्ट्रीय नहीं है तो चिंता का पहला विषय होना चाहिए क्योंकि असम में अपनी नागरिकता साबित न कर पाने वाले लोग अन्य राज्यों में आकर बस सकते थे और बसे भी हैं| असम में मात्र वह लोग ही रुके जिन्हें या तो अपनी नागरिकता साबित करने की क्षमता पर यकीन था या उनके पास बहार संसाधन अन्य राज्यों में आने के संसाधन नहीं थे या फिर वह जिन्हें सरकार पर यकीन था की उनकी सुधबुध ली जाएगी| लाखों अवैध साबित हुए हिन्दू आप्रवासी इस तीसरी कतार में आते हैं| वर्तमान सरकार ने अपने इस नवीनतम (पहले ये कांग्रेस के साथ माने जाते थे) वोटबैंक का हित साधने के लिए नागरिकता संशोधन क़ानून भी पारित किया|

इस का दोहरा विरोध है| पहला विरोध आसाम में है| यह आसाम समझौते और उच्चतम न्यायालय के आदेश की अवहेलना का मार्ग खोलता है और उन लोगों को जिन्हें आसाम से निकाला जाना था आसाम में बनाए रखने का रास्ता देता है| साथ ही यह आसाम के सामान रूप से अवैध मुस्लिम आप्रवासियों को संकट में, देश में और बंदीघर में बनाये रखता है| यह भेदभाव पूर्ण और देश के लिए दुर्भाग्य पूर्ण है|

दूसरा इस नागरिकता संशोधन कानून को दूरगामी प्रभाव के स्थान पर तात्कालिक राजनैतिक लाभ के हिसाब से बनाया गया है| यहाँ तक कि ऐतिहासिक उदाहरणों का भी ध्यान नहीं रखा गया है| श्रीलंका और म्यान्मार में हिन्दूओं पर अत्याचार के मामले बांग्लादेश के मुकाबले अधिक माने जाते हैं मगर इन दोनों देशों के हिन्दुओं का ध्यान नहीं रखा गया है| साथ ही यूगांडा जैसी स्थितियों से निपटने का कोई उपाय नहीं किया गया है जबकि फ़िजी और कई अन्य देशों के भारतीय मूलक हिन्दू मुस्लिम खतरनाक परिस्तिथियों में रहने के लिए मजबूर हैं|आप यह तर्क दे सकते हैं कि हम दुनिया की ठेकेदारी नहीं ले सकते मगर इन देशों में रहने वाले भारतीय मूलक हिन्दू मुस्लमान भारत भूमि के ही मूल निवासी हैं|

हिन्दुत्ववादी तत्व अक्सर यह कहते हैं कि हिन्दूओं के लिए भारत के अलावा कोई देश नहीं तो मुझे उनकी अधकचरी समझ पर दया आती हैं| दूसरा यह गैर भारतीय हिन्दुओं पर उनके अपने देश के प्रति देशभक्ति पर शंका जताता है| किसी को गैर भारतीय हिन्दुओं की उनके अपने देश के प्रति देशभक्ति पर शक करने और उनको बिना किसी प्रमाण भारत भक्त मानने का कोई आधार नहीं| यह इस प्रकार है कि मक्का मदीना सऊदी अरब में होने से कोई मुस्लिम सऊदी का देशभक्त नहीं हो जाता वरन सऊदी अरब के अलावा किसी मुस्लिम राष्ट्र का अस्तित्व नहीं होता और प्राचीन भारत भी कभी टुकड़ों में नहीं बंटा होता| यह बात माननी चाहिए कि जो भारत में रह रहा हैं उसका स्वभावतः भारत से प्रेम होगा| यह भी समझना चाहिए कि देश में मौजूद किसी कमी के प्रति इशारा करने से कोई देशद्रोही नहीं हो जाता|

नागरिकता कानून में कई अजीब पेंच हैं| क्या कोई पाकिस्तानी या बंगलादेशी देशभक्त हिन्दू भारत में जासूसी के इरादे से भारत नहीं आ सकता? क्या कोई पाकिस्तानी या बंगलादेशी देशभक्त मुस्लिम धर्म परिवर्तन कर कर पीड़ित होने का नाटक कर जासूसी के इरादे से भारत नहीं आ सकता?

दूसरा एक प्रश्न भी है – अगर “हमारे मेहुल भाई” के नाम से “सज्जन” भारत के नागरिक होने के सबूत नहीं देते तो उनके प्रत्यावर्तन पर इसका क्या असर होगा (नोट – वह पहले ही नागरिकता त्याग चुके हैं)| क्या विजय माल्या की नागरिकता ख़त्म होने से उनके प्रत्यावर्तन पर कोई असर होगा?  लेकिन इससे सम्बंधित एक प्रश्न और भी है| अगर कोई अप्रवासी भारतीय जो लम्बी अवधि के रोजगार वीजा पर विदेश में हैं और नागरिकता पंजी में नाम लिखाने के लिए पूरे सबूत जुटाने में असफल रहता है तो उसकी नागरिकता और वीजा पर क्या असर होगा?

अभी के लिए इतना ही|

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