बचपन सुहाना होता है| परी देश की अलग दुनिया| कार्टून फ़िल्म की दुनिया| दुनिया की एक चहारदीवारी होती है| उसके पार बिगड़ा पाकिस्तान| समाज नहीं बदलता, न शहर| शहर की आबादी लाख दो लाख थी, शहर के बाहर परकोटा था| आज गाँव और कालोनी के बाहर परकोटा है| लोहे के दरवाज़े लगे हैं| शहर में कई शहर रहते है| मोहल्ले और पड़ोस की अपनी दुनिया होती है| आहातों में जहाँ बसता है| गली गली में दाग़ देहलवी, कूचे कूचे पंकज उधास, कमरा कमरा जगजीत सिंह, गुसल गुसल मुहम्मद रफ़ी|
आहाता को कंपाउंड, काम्प्लेक्स, अपार्टमेन्ट, काउंटी, सिटी तक कहने के शौक गुजरे हैं| नक्शा बदल जाने से नक़्शे भी बदल जाते हैं| आहाते में चारों ओर घर के घर, एक प्रवेशद्वार – जरूरत और वक़्त के हिसाब से बड़ा छोटा| एक जैसे लोग – परिवारीजन – अपना खानदान – बस हम लोग| कभी कभी इतने बिखरे या बड़े परिवार, कि आपसी रिश्तेदारी उलझी गुलझी|
बीच में बड़ा सा घेर, दालान, आँगन, मैदान, छोटी बगीची, बाबाजी का अखाड़ा, धुल- धक्कड़, ढेर सारा प्यार, घमाघम गपशप, डूब मरा दारू दर्शन, रात की अन्ताक्षरी, औरतों की चिकचिक, बारिशों का सामूहिक बच्चा स्नान, दावतों का हलवाईखाना, नवरात्रों का रात्रिजागरण, गली क्रिकेट का गिल्ली डंडा, हफ़्ता हफ़्ता गाली गलौज, होली दिवाली मिलन सम्मलेन, गर्मियों का सामूहिक शयन, बुआओं का हल्ला गुल्ला स्वागत, लड़कियों की रुंधी रुंधी विदाई, सब का सब मान का पान|
किस का बच्चा किस ने पाला? किस ने किस के चौके रोटी खाई? किस ने किस के पतीले की दाल उड़ाई? कच्ची इमली किस ने खाई? किस को क्या पता चलना? किस को इस का पता करना? मगर फिर भी हर हफ़्ते लड़ना झगड़ना|
आहाते जीते थे, जिन्दा थे, आबाद थे, गुल-ओ-गुलज़ार थे, चहकते महकते थे, साँझा विरासत थे, सब के बुज़ुर्ग थे, सब की जान-ओ-अमानत थे| सबका मिलाजुला मेला दशहरा थे| रेडियो सीलोन का सिबाका गीत माला और आकाशवाणी का विविध भारती थे| आहाते रेडियो की झुमरी तलैया थे|
आहाते दोपहर को औरत, तिपहर को बच्चे, शाम को आदमी, रात को परिवार, सुबह को बूढ़े, दिन निकलते शिशु होते थे|
आहाते आहत हो गए| बदलते वक़्त ने आहट न की| बदलता वक़्त हँसते मुस्कुराते चुपचाप आहातों में चला आया, गुपचुप टेलिविज़न बन गया| काला सफ़ेद टेलिविज़न आहातों को बूढ़ा कर गया| आहाते इतवार के इतवार भजन कीर्तन सुनने लगे| आहाते रामानंद सागर हो गए| आहाते के गले में चित्रहार पड़ गया|
आहातों का मरना बाकि रहा| आहाते धूल फाँकने लगे| आहाते किसी कड़वी दवा का कार्बनिक कंपाउंड हो गए| गिटिर पिटिर गिरमिटिया उन्हें कंपाउंड कहने लगे|
आहाते के दिल खाड़ी युद्ध हो गये| दुनिया छोटी होती गई| एमस्टरडम आगरा आ गया| आहाते दुकान बन गये| आहाते में बंधी गौ माता नारा बन गई और दूर गोवा में गुम हो गई| गौशाला में बाइक और आहते में कार पार्किग हुई|
“आहाते जब तक हते, अपने हते” अधेड़ होते एक इंसाननुमा एग्जीक्यूटिव ड्रेस ने बोतल के सहारे पीज़ा गटकते हुए कहा| दो चश्मे उस बूढ़ी कपिला गाय की याद में आँसू बहाने लगे, जिसके पैर छूकर नवीं में नकल से नब्बे नंबर आये थे| काफ लेदर के जूतों पर पड़े वो आंसू आज भी ओस की तरह चमकते हैं|